देवता: परमात्मा देवता ऋषि: स्वयम्भु ब्रह्म ऋषिः छन्द: निचृत्त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः
ও৩ম্ স নো বন্ধুর্জনিতা স বিধাতা ধাতানি বেদ ভূবানানি বিশ্বা।
য়ত্র দেবা অমৃতমানশানাস্ততীয়ে ধামন্নধ্যৈরয়ন্ত।-[যজুর্বেদ-৩২।১০]
स नो॒ बन्धु॑र्जनि॒ता स वि॑धा॒ता धामा॑नि वेद॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑। यत्र॑ दे॒वाऽ अ॒मृत॑मानशा॒नास्तृ॒तीये॒ धाम॑न्न॒ध्यैर॑यन्त ॥
पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्यो ! (यत्र) जिस (तृतीये) जीव और प्रकृति से विलक्षण (धामन्) आधाररूप जगदीश्वर में (अमृतम्) मोक्ष सुख को (आनशानाः) प्राप्त होते हुए (देवाः) विद्वान् लोग (अध्यैरयन्त) सर्वत्र अपनी इच्छापूर्वक विचरते हैं, जो (विश्वा) सब (भुवनानि) लोक-लोकान्तरों और (धामानि) जन्म, स्थान, नामों को (वेद) जानता है, (सः) वह परमात्मा (नः) हमारा (बन्धुः) भाई के तुल्य मान्य सहायक (जनिता) उत्पन्न करनेहारा, (सः) वही (विधाता) सब पदार्थों और कर्मफलों का विधान करनेवाला है, यह निश्चय करो ॥
अन्वय:
(सः) (नः) अस्माकम् (बन्धुः) भ्रातेव मान्यः सहायः (जनिता) जनयिता। अत्र जनिता मन्त्र इति ॥ (अष्टा०६.४.५३) णिलोपः। (सः) (विधाता) सर्वेषां पदार्थानां कर्मफलानां च विधानकर्त्ता (धामानि) जन्मस्थाननामानि (वेद) जानाति (भुवनानि) लोकलोकान्तराणि (विश्वा) सर्वाणि (यत्र) यस्मिन् जगदीश्वरे (देवाः) विद्वांसः (अमृतम्) मोक्षसुखम् (आनशानाः) प्राप्नुवन्तः (तृतीये) जीवप्रकृतिभ्यां विलक्षणे (धामन्) धामन्याधारभूते (अध्यैरयन्त) सर्वत्र स्वेच्छया विचरन्ति ॥
भावार्थभाषाः -हे मनुष्यो ! जिस शुद्धस्वरूप परमात्मा में योगिराज, विद्वान् लोग मुक्तिसुख को प्राप्त हो आनन्द करते हैं, उसी को सर्वज्ञ, सर्वोत्पादक और सर्वदा सहायकार मानना चाहिये, अन्य को नहीं ॥
পদার্থঃ-হে মনুষ্যগণ (সঃ) সেই পরমাত্মা (নঃ) আমাদের সকলের (বন্ধুঃ) ভ্রাতার ন্যায় সুখদায়ক,(জনিতা) সকল জগতের উৎপাদক। (সঃ) তিনি (বিধাতা) সর্বকামনার পূরক,(বিশ্বা) সম্পূর্ণ (ভূবনানি) লোক-লোকান্তর (ধামানি) নাম,স্হান ও জন্মকে (বেদ) জানেন এবং (য়ত্র) যে (তৃতীয়ে) সাংসারিক সুখদুঃখহীন, নিত্যানন্দময় (ধামন্) মোক্ষস্বরূপের ধারণকর্তা পরমাত্মাতে (অমৃতম্) মোক্ষ (আনশানাঃ) প্রাপ্ত হউয়া (দেবাঃ) বিদ্বান্ ব্যক্তিরা ( অধ্যৈরয়ন্ত) স্বেচ্ছায় বিচরণ করেন,সেই পরমাত্মাই আমাদের গুরু , আচার্য,রাজা ও ন্যায়ধীশ। আমরা সকলে মিলিয়া তাঁহারই উপাসনা করিব।।
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