देवता: रुद्रा देवताः ऋषि: परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः छन्द: स्वराडार्षी बृहती स्वर: मध्यमः
নমঃ শম্ভবায় চ ময়োভবায়চ নমঃ শঙ্করায় চ।
ময়স্করায় চ নমঃ শিবায় চ শিবতরায়চ।।[যজুর্বেদ ১৬।৪১]
পদার্থঃ (নমঃ) নমস্কার (শম্ভবায়) কল্যাণ দাতাকে (চ) এবং সুখপ্রাপ্তির জন্য বিদ্যান (ময়োভবায়) সুখদাতাকে (চ) এবং (নমঃ শঙ্করায়) মঙ্গলময়কে (চ) এবং (ময়স্করায়) সুখ-স্বরূপকে (চ) এবং (শিবায়) মঙ্গল স্বরূপকে (চ) এবং (শিবতরা) কল্যাণ স্বরূপকে (চ) এবং।
ভাবার্থঃ- কল্যাণ ও সুখের কারণ পরমেশ্বরকে নমস্কার ! কল্যাণ দাতা ও সুখদাতাকে নমস্কার ! কল্যাণময় ও সুখময় পরমেশ্বর কে নমস্কার। মনুষ্যের উচিৎ প্রেমভক্তির সাথে সব মঙ্গলের দাতা পরমেশ্বরেরই উপাসনা ও বিদ্যানের সৎকার করা।
नमः॑ शम्भ॒वाय॑ च मयोभ॒वाय॑ च॒ नमः॑ शङ्क॒राय॑ च मयस्क॒राय॑ च॒ नमः॑ शि॒वाय॑ च शि॒वत॑राय च ॥
पदार्थान्वयभाषाः -जो मनुष्य (शभ्मवाय) सुख को प्राप्त कराने हारे परमेश्वर (च) और (मयोभवाय) सुखप्राप्ति के हेतु विद्वान् (च) का भी (नमः) सत्कार (शङ्कराय) कल्याण करने (च) और (मयस्कराय) सब प्राणियों को सुख पहुँचानेवाले का (च) भी (नमः) सत्कार (शिवाय) मङ्गलकारी (च) और (शिवतराय) अत्यन्त मङ्गलस्वरूप पुरुष का (च) भी (नमः) सत्कार करते हैं, वे कल्याण को प्राप्त होते हैं ॥-स्वामी दयानन्द सरस्वती
भावार्थभाषाः -मनुष्यों को चाहिये कि प्रेमभक्ति के साथ सब मङ्गलों के दाता परमेश्वर की ही उपासना और सेनाध्यक्ष का सत्कार करें, जिससे अपने अभीष्ट कार्य्य सिद्ध हों ॥
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