ऋषि: - अर्बुदः काद्रवेयः सर्पःदेवता - ग्रावाणःछन्दः - विराड्जगतीस्वरः - निषादः
ए॒ते व॑द॒न्त्यवि॑दन्न॒ना मधु॒ न्यू॑ङ्खयन्ते॒ अधि॑ प॒क्व आमि॑षि ।
वृ॒क्षस्य॒ शाखा॑मरु॒णस्य॒ बप्स॑त॒स्ते सूभ॑र्वा वृष॒भाः प्रेम॑राविषुः ॥
ऋग्वेद १०.९४.३
পদার্থ-(এতে) যে বিদ্বানগণ( অবিদন্) শুধুমাত্র যথন পরমাত্মাকে জানে ( উনা বদন্ত্য) তারা তাদের মুখ দিয়ে প্রচার করে ( বৃক্ষস্য পক্কে) বৃক্ষের পরিপক্ক ( আমিষি অধি) সম্ভাব্য ফলের ভিতরে ( মধু ন্যুংখয়ন্তে) মধুর রস যেমন গ্রহণ করি বা খাওয়া হয় ( সুভর্বাঃ) শোভন খাবার তৈরীতে যে ( বৃষভাঃ) জ্ঞান-বর্ষক ( অরুণস্য শাখম্) ফুল ও ফল বৃক্ষের শাখায় লাগানো (বপ্সতঃ) সেই ফলেন ন্যায় জ্ঞানের ফল আমরা যেন ভক্ষন করি।।
ভাবার্থ- বিদ্বানরা পরমাত্মাকে জানলেই তৎক্ষণাৎ তাঁকে প্রচার করে। ফুল ও ফল বৃক্ষের ভিতর যেমন রসের স্বাদ ও খাদ্য থাকে, তেমনি জ্ঞানীরা আলোকিত পরমাত্মার জ্ঞানের ফল ভক্ষণ করে অন্যকে প্রচার করেন।।
पदार्थ -(एते) ये विद्वान् (अविदन्) जब परमात्मा को जानते तब ही (अना वदन्ति) उसका मुख से उपदेश करते हैं (वृक्षस्य पक्वे) वृक्ष के पके हुए (आमिषि-अधि) सम्भजनीय फल के अन्दर (मधु न्यूङ्खयन्ते) मधुर रस अन्न के समान सेवन करते हैं या अन्न बनाते हैं (सुभर्वाः) शोभन भोजनवाले (वृषभाः) ज्ञानवर्षक (अरुणस्य शाखाम्) आरोचमान पुष्पित फलित वृक्ष की शाखा पर लगे (वप्सतः) फल के समान ज्ञानफल का भक्षण करते हैं (ईं प्र-अराविषुः) उस परमात्मा को और उसके ज्ञान को बोलते हैं, उपदेश करते हैं ॥-ब्रह्ममुनि
भावार्थ - विद्वान् जन जैसे ही परमात्मा को जानते हैं, तुरन्त उसका उपदेश किया करते हैं। पुष्पित फलित वृक्ष के अन्दर जैसे रस का आस्वादन-भोजन करते हैं, ऐसे ही प्रकाशमान परमात्मा के ज्ञानफल को ज्ञानी जन सेवन करते हैं और अन्य को उपदेश देते हैं ॥
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