देवता: ब्रह्मणस्पतिः ऋषि: अथर्वा छन्द: उपरिष्टाज्ज्योतिष्मती त्रिष्टुप् स्वर: सुमङ्गलदन्त सूक्त
व्री॒हिम॑त्तं॒ यव॑मत्त॒मथो॒ माष॒मथो॒ तिल॑म्।
ए॒ष वां॑ भा॒गो निहि॑तो रत्न॒धेया॑य दन्तौ॒ मा हिं॑सिष्टं पि॒तरं॑ मा॒तरं॑ च ॥
ও৩ম্ ব্রীহি মত্তং যবমত্তমথো তিলম্ ।
এষ বাং ভাগো নিহিতো রত্ন ধেয়ার দন্তৌ মা হিংসিষ্টং পিতর মাতরং চ ॥
অথর্ববেদ- ৬/১৪০/২
पदार्थान्वयभाषाः -[हे दाँतों की दोनों पङ्क्तियो !] (व्रीहिम्) चावल (अत्तम्) खाओ, (यवम्) जौ (अत्तम्) खाओ, (अथो) फिर (माषम्) उरद, (अथो) फिर (तिलम्) तिल [खाओ], (वाम्) तुम दोनों का (एषः) यह (भागः) भाग [चावल जौ आदि] (रत्नधेयाय) रत्नों के रखने योग्य कोश के लिये (निहितः) अत्यन्त हित है, (दन्तौ) हे ऊपर नीचे के दाँतो ! (पितरम्) बालक के पिता (च) और (मातरम्) माता को (मा हिंसिष्टम्) मत काटो ॥
भावार्थभाषाः -माता पिता दाँत निकलने पर बालक को चावल, जौ आदि सामान्य अन्न और फिर अधिक पौष्टिक उरद आदि और चिकने तिल आदि चटावें, जिससे बालक पुष्ट होकर माता-पिता को सुख देवे और उन्नति करे ॥२॥
टिप्पणी:२−(व्रीहिम्) इगुपधात् कित्। उ० ४।१२०। इति वृह वृद्धौ−इन्, पृषोदरादिरूपम्। आशुधान्यम् (अत्तम्) खादतम् (यवम्) यु मिश्रणामिश्रणयोः−अप्। अन्नविशेषम् (अथो) पश्चात् (माषम्) मष वधे−घञ्। अन्नविशेषम् (तिलम्) तिल स्नेहने−क। अन्नविशेषम् (एषः) व्रीहियवादिभोगः (वाम्) युवयोः (भागः) सेवनीयोंऽशः (निहितः) अत्यन्तहितः (रत्नधेयाय) रत्न+डुधाञ् यत्। रत्नधारणयोग्याय कोशाय (दन्तौ) उपरिनीचस्थदन्तगणौ (मा हिंसिष्टम्) मा पीडयतम् (पितरम्) पालकं जनकम् (मातरम्) मान्यां जननीम् (च) ॥
-মাতা পিতার উচিৎ বাচ্চার দাঁত বের হলে তাকে চাউল, যব মাষ আদি নরম অন্ন খাওয়ান। রমণীয়তার জন্য ইহাই তোমাদের জন্য বিহিত হইয়াছে! তারপর আরও পুষ্টিকর খাদ্য এবং মসৃণ তিল ইত্যাদি খাওয়াতে হবে, যাতে শিশু সবল হয় ।
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