অথর্ব্বেদ ১৯/২৭/৮ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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21 November, 2021

অথর্ব্বেদ ১৯/২৭/৮

देवता: त्रिवृत् ऋषि: भृग्वङ्गिराः छन्द: अनुष्टुप् स्वर: सुरक्षा सूक्त

आयु॑षायु॒ष्कृतां॑ जी॒वायु॑ष्माञ्जीव॒ मा मृ॑थाः। प्रा॒णेना॑त्म॒न्वतां॑ जीव मा मृ॒त्योरुद॑गा॒ वश॑म् ॥

 ও৩ম্ আয়ুষায়ুষ্কতাং জীবায়ুষ্মাঞ্জীব ম মৃথাঃ।

প্রাণেনাত্মন্বতাং জীব মা মৃত্যোরুদগা বশম্‌।। ---অথর্ব্বেদ-১৯/২৭/৮
বঙ্গানুবাদঃ (আমি সংকল্প গ্রহণ করছি) আমি যেন মৃত্যুর বশিভূত না হই। কর্মশীল ও আত্মবল যুক্ত হয়ে ঈশ্বরভক্ত, মহাপুরুষের অনুকরণ করিয়া আমি আমার জীবণের আয়ু বৃদ্ধি করিব এবং সারা জীবন শ্রেষ্ঠ কর্ম করে যশ প্রাপ্ত হইব।
অথর্ব্বেদ ১৯/২৭/৮
पदार्थान्वयभाषाः -(आयुष्कृताम्) जीवन बनानेवाले [विद्वानों] के (आयुषा) जीवन के साथ (जीव) तू जीवित रह, (आयुष्मान्) उत्तम जीवनवाला होकर (जीव) तू जीवित रह, (मा मृथाः) तू मत मरे। (आत्मन्वताम्) आत्मावालों के (प्राणेन) प्राण [जीवनसामर्थ्य] से (जीव) तू जीवित रह (मृत्योः) मृत्यु के (वशम्) वश में (मा उत् अगाः) मत जा ॥-पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

भावार्थभाषाः -मनुष्यों को योग्य है कि बड़े जितेन्द्रिय पुरुषार्थी महात्माओं के समान अपने जीवन को पुरुषार्थी बनाकर यशस्वी होवें ॥

टिप्पणी:८−(आयुषा) जीवनेन (आयुष्कृताम्) ब्रह्मचर्यादितपसा आयुषोऽलङ्कुर्वताम् (जीव) प्राणान् धारय (आयुष्मान्) उत्तमजीवनयुक्तः सन् (जीव) (मा मृथाः) प्राणान् मा त्यज (प्राणेन) जीवनसामर्थ्येन (आत्मन्वताम्) अ०४।१०।७। आत्मन्-मतुप्, नुडागमः। सात्मकानां दृढजीवनवताम् (मृत्योः) मरणस्य (मा उत् अगाः) इण् गतौ-लुङ्। मा प्राप्नुहि (वशम्) अधीनत्वम् ॥


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