देवता: प्राणादयो देवताः ऋषि: प्रजापतिर्ऋषिः छन्द: विराड्जगती स्वर: निषादः
प्रा॒णाय॒ स्वाहा॑पा॒नाय॒ स्वाहा॑ व्या॒नाय॒ स्वाहा॑। अम्बे॒ऽअम्बि॒केऽम्बा॑लिके॒ न मा॑ नयति॒ कश्च॒न।
सस॑स्त्यश्व॒कः सुभ॑द्रिकां काम्पीलवा॒सिनी॑म् ॥
প্রাণায় স্বাহাপানায় স্বাহা ব্যানায় স্বাহা। অম্বেহঅম্বিকেহম্বালিকে না মা নয়তি কশ্চন।
সসসত্যশ্চকঃ সুভদ্রিকাং কাম্পীলবাসিনীম্।।
যর্জুবেদ ২৩/১৮
পদার্থঃ হে (অম্বে) মাতা (অম্বিকে) মাতামহ ( অম্বালিকে) বা প্রমাতামহ (কশ্চন) কোনো (অশ্বকঃ) ঘোড়ার মত শীঘ্রগামী ব্যক্তি যে (কাম্পীলবাসিনীম্) সুখের-সংগ্রহণে নিবাসী ও (সুভদ্রিকাম্) উত্তম কল্যাণকারী লক্ষ্মীকে গ্রহণ করে ( সসস্তি) আরামে শুয়ে থাকে , সেই জন (মা) আমাকে (নয়তি) নিজের অধীনে আনবে (ন) না , এর দ্বারা আমি (প্রাণায়) প্রাণের পোষণের জন্য ( স্বাহা) সত্য বাণী বলি (অপানায়) দুঃখকে দূর করার জন্য (স্বাহা) সুশিক্ষিত বাণী বলি আর ( ব্যানায়) পুরো শরীরে ব্যপ্ত স্বীয় আত্মার সংরক্ষণের জন্য (স্বাহা) সত্য বাণীকে যুক্ত করছি ।
ভাবার্থঃ হে মনুষ্য! মাতা , মাতামহ আা প্রমাতামহ যেমন সন্তানকে ভালো শিক্ষা দেন , তেমনি আপনিও আপনার সন্তানকে শিক্ষিত করুন । ধন-অর্থের স্বভাবই হল যেখানে জড়ো হয় সেখানেই সে লোকেদের নিদ্রালু , অলস ও কর্মহীণ করে তোলে , তাই মানুষের উচিত সে যেন অর্থ পেয়ে পুরুষার্থ সাধন করে ।
पदार्थान्वयभाषाः -हे (अम्बे) माता (अम्बिके) दादी (अम्बालिके) वा परदादी (कश्चन) कोई (अश्वकः) घोड़े के समान शीघ्रगामी जन जिस (काम्पीलवासिनीम्) सुखग्राही मनुष्य को बसानेवाली (सुभद्रिकाम्) उत्तम कल्याण करनेहारी लक्ष्मी को ग्रहण कर (ससस्ति) सोता है, वह (मा) मुझे (न) नहीं (नयति) अपने वश में लाता, इससे मैं (प्राणाय) प्राण के पोषण के लिये (स्वाहा) सत्य वाणी (अपानाय) दुःख के हटाने के लिए (स्वाहा) सुशिक्षित वाणी और (व्यानाय) सब शरीर में व्याप्त होनेवाले अपने आत्मा के लिये (स्वाहा) सत्य वाणी को युक्त करता हूँ ॥
भावार्थभाषाः -हे मनुष्यो ! जैसे माता, दादी, परदादी अपने-अपने सन्तानों को अच्छी सिखावट पहुँचाती हैं, वैसे तुम लोगों को भी अपने सन्तान शिक्षित करने चाहियें। धन का स्वभाव है कि जहाँ यह इकट्ठा होता है, उन जनों को निद्रालु, आलसी और कर्महीन कर देता है, इससे धन पाकर भी मनुष्य को पुरुषार्थ ही करना चाहिये ॥-स्वामी दयानन्द सरस्वती
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