সামবেদ ২৫৪ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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21 November, 2021

সামবেদ ২৫৪

ऋषि: - रेभः काश्यपःदेवता - इन्द्रःछन्दः - बृहतीस्वरः - मध्यमःकाण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्

 য়া ইন্দ্র ভুজ আভরঃ স্বর্বাꣳ অসুরেভ্যঃ।

স্তোতারমিল্মঘববন্নস্য বর্ধয় য়ে চ ত্বে বৃক্তবর্হিষঃ।।-[সামবেদ ২৫৪]
ভাবার্থঃ- হে পরমাত্মান্ আপনি অসুরদের বঞ্চিত করুন। পরমেশ্বর আপনি আমাদের জন্য বিশেষ আনন্দময় সুখের দাতা। তিনি যেমন ধার্মিক উপাসকদের জ্ঞান প্রকাশ ও দিব্য অনন্দ দ্বারা সমৃদ্ধ করেন, তেমন রাজারও উচিত দেশপ্রেমিদের সমৃদ্ধ ও রাষ্ট্রদ্রোহীদের দন্ডিত করা।।
সামবেদ ২৫৪
या꣡ इ꣢न्द्र꣣ भु꣢ज꣣ आ꣡भ꣢रः꣣꣬ स्व꣢꣯र्वा꣣ꣳ अ꣡सु꣢रेभ्यः । स्तो꣣ता꣢र꣣मि꣡न्म꣢घवन्नस्य वर्धय꣣ ये꣢ च꣣ त्वे꣢ वृ꣢क्त꣡ब꣢र्हिषः ॥२५४॥

पदार्थ -
(इन्द्र) हे परमात्मन्! तू (स्वर्वान्) हमारे लिये विशेष सुख वाला—सुख देने वाला होता हुआ (असुरेभ्यः) ‘असुरान् अतिरिच्य ल्यब्लोपे पञ्चम्युप-संख्यानम्’ मानवता से अस्त व्यस्त हुये जनों को अतिरिक्त कर—छोड़कर वञ्चित कर (याः-भुजः-आभरः) जो भोगने वाली सामग्री ‘भुज् धातोः क्विप् कर्मणि’ समन्तरूप से तू धारण कर रहा है (अस्य) ‘आभिः’ ‘विभक्तिवचनव्यत्ययः’ इन भोगसामग्रियों से (मघवन्) धनवन् परमात्मन्! (स्तोतारम्-इत्) ‘स्तोतर्निं्-वचनव्यत्ययः’ अवश्य स्तोताओं को (वर्धय) बढ़ा (च) और (ये) जो (त्वे) ‘त्वे-एके’ कोई (वृक्तबर्हिषः) प्रवृक्त प्रकट किया ज्ञान अग्नि जिन्होंने “बर्हिः—अग्निः” [निरु॰ ८.९] ऐसे असुरविरोधी देववृत्ति वाले हैं।

भावार्थ -
हे परमात्मन्! तू असुरों को वञ्चित कर ले जो प्रशस्त भोग सामग्रियाँ धारण करता है उनके विपरीत ज्ञानाग्नि प्रदीप्त करने वाले स्तोता जन हैं उनको उनसे प्रवृद्ध करता है॥ भाष्य: (स्वामी ब्रह्ममुनि परिव्राजक)

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