অথর্ববেদ ৮/২/২১ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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21 November, 2021

অথর্ববেদ ৮/২/২১

অথর্ববেদ ৮/২/২১

 देवता: आयुः ऋषि: ब्रह्मा छन्द: सतःपङ्क्तिः स्वर: दीर्घायु सूक्त

श॒तं ते॒ऽयुतं॑ हाय॒नान्द्वे यु॒गे त्रीणि॑ च॒त्वारि॑ कृण्मः।
इ॑न्द्रा॒ग्नी विश्वे॑ दे॒वास्तेऽनु॑ मन्यन्ता॒महृ॑णीयमानाः ॥
সতং তেহয়ুগে হায়নান্ দ্বেযুগে ত্রীণি চত্বাতি কৃণ্মঃ।
ইন্দ্রাগ্নী বিস্বেদেবাস্তেনু মন্যস্তামহ্নণীয়মানাঃ।।
অথর্ব- ৮।২।২১
পদার্থ- হে মনুষ্য! ( তে) তোমাদের জন্য ( শতম্) শত ( অয়ুতম্) দশ হাজার (হায়নান্) বর্ষের ক্রম দ্বারা ( দ্বেযুগে) দুই যুগ ( ত্রীণি) তিন যুগ এবং ( চত্বারি) জার যুগ ( কৃণমঃ) আমি করিয়া থাকি। আর ( ইন্দ্রাগ্নী) বায়ু এবং অগ্নি ( তে) এই প্রসিদ্ধ ( বিশ্বে দেবাঃ) সমস্ত দিক্য পদার্থকে চন্দ্র,সূর্য ইত্যাদি পদার্থকে ( অহ্নণীয়মানাঃ) সংকোচ বা প্রলয় না করিয়া ( অনু মন্যস্তাম্) অনুকূলে মনস্তত্ত্ব দ্বারা ধারণ করে।
ভাবার্থ-পরমেশ্বর এই সৃষ্টির কাল চক্রকে মনুষ্যের উপকারের জন্য নার্মাণ করিয়াছে। বিজ্ঞানী মনুষ্য পরমেশ্বরের অপার মহিমায় নিজের পরাক্রম বৃদ্ধি করিয়া নতুন-নতুন আবিস্কার করিয়া অমর নাম করিয়া থাকেন।
এই মন্ত্র উত্তরার্দ্ধে আসিয়াছে -অথর্ব-১।৩৫।৪
এই মন্ত্রে পূর্বার্দ্ধে সৃষ্টির সময় মোট আয়ু ৪,৩২,০০০০০ বর্ষ। মন্ত্রে বর্ণিত তথ্য অনিসারে সাত শূন্যের বাম পাশে যথাক্রমে দুই,তিন এবং চার সংথ্যা লিখিলে সৃষ্টির মোট আয়ুর পরিমাণ বাহির হইয়া যায়। সৃষ্টিতে মোট ১০০০ চতুর্যুগী হইয়া থাকে। ১০০০ চতুর্যুগীতে মোট ১৪ টি মন্বস্তর হইয়া থাকে। বর্তমন ৭ মন্বস্তর চলয়মান আছে। সপ্তম বৈবস্বত মনু্র ২৮ তম চতুর্যুগী কলিযুগ চলমান আছে। বর্তমান কলিযুগে বর্ষ গতি চলয়মান আছে। সূর্যসিদ্ধান্ত এবং মনুস্মৃতির হিসাব অনুসারে বেদমন্ত্রের আলোকে হিসাব করিলে সৃষ্টির বয়স হইবে [ ১ অরব ৯৭ কোটি ৩৮ লক্ষ ১৩ হাজার ১২২বর্ষ ] এবং বেদ প্রকাশের কাল [ ১ অরব ৯৬ কোটি ০৮ লক্ষ ৫৩ হাজার ১২২ বর্ষ ] যাহারা ইহা হইতে অধিক তধ্য চান তাহারা সরাসরি বেদ, মনুস্মৃতি, সূর্যসিদ্ধান্ত অধ্যয়ন করিতে পারেন।।
पदार्थान्वयभाषाः -[हे मनुष्य !] (ते) तेरे लिये (शतम्) सौ और (अयुतम्) दश सहस्र (हायनान्) वर्षों को [क्रम से] (द्वे युगे) दो युग, (त्रीणि) तीन [युग] और (चत्वारि) चार [युग] (कृण्मः) हम करते हैं। (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि और (ते) वे [प्रसिद्ध] (विश्वे देवाः) सब दिव्य पदार्थ [सूर्य, पृथिवी आदि] (अहृणीयमानाः) संकोच न करते हुए (अनु मन्यन्ताम्) अनुकूल रहें ॥२१॥ भावार्थभाषाः -परमेश्वर ने यह सृष्टि और काल चक्र मनुष्य के उपकार के लिये बनाये हैं। विज्ञानी पुरुष परमेश्वर की अपार महिमा में अपना पराक्रम बढ़ाकर नये-नये आविष्कार करके अमर नाम करते हैं ॥२१॥ इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध आ चुका है-अ० १।३५।४ ॥ मन्त्र के पूर्वार्द्ध में सृष्टि का समयक्रम कलियुग, द्वापर, त्रेता और सत्ययुग और वर्षों का अर्थ दैववर्ष जान पड़ता है, सो इस प्रकार है− सन्धिकाल युगकाल १००*१=१०० १०,०००*१=१०,००० १००*२=२०० १०,०००*२=२०,००० १००*३=३०० १०,०००*३=३०,००० १००*४=४०० १०,०००*४=४०,००० योगसन्धि १,००० वर्ष योगयुग १,००,००० योगसन्धि और युग १,०१,००० १-अथर्ववेद काण्ड ८ सूक्त २ मन्त्र २१ के अनुसार युगवर्ष गणना ॥ सूचना−मन्त्र में केवल [सौ, दश सहस्र, वर्षे, दो युग, तीन और चार] पद हैं, कलि आदि पदों की कल्पना की गयी है। एक दैववर्ष में ३६० [तीन सौ साठ] मानुष वा सौर वर्ष होते हैं ॥ सन्धि कलि द्वापर त्रेता कृतयुग चतुर्युगी और दैव वर्ष मानुष दैव वर्ष मानुष दैव वर्ष मानुष दैव वर्ष मानुष दैव वर्ष मानुष युग वा सौर वर्ष वा सौर वर्ष वा सौर वर्ष वा सौर वर्ष वा सौर वर्षसन्धि १०,००० ३६,००० युग १००३६,००,००० २००२०,००० ७२,०००७२,००,००० ३००३०,००० १,०८,०००१,०८,००० ४००४०,००० १,४४,०००१,४४,००,००० १,०००१,००,००० ३,६०,०००३,६०,००,०००योग १०,१०० ३६,३६,००० २०,२०० ७२,७२,००० ३०,३०० १,०९,०८,००० ४०,४०० १,४५,४४,००० १,०१,००० ३,६™३,६०,०००२-मनु अध्याय १ श्लोक ६९-७० और सूर्य सिद्धान्त अध्याय १ श्लोक १५-१७ के अनुसार युग वर्ष गणना ॥सन्धिऔर युग कृतयुग श्रेतायुग द्वापरयुग कलियुग चतुर्युगी दैव वर्ष मानुष वा सौर वर्ष दैव वर्ष मानुष वा सौर वर्ष दैव वर्ष मानुष वा सौर वर्ष दैव वर्ष मानुष वा सौर वर्ष दैव वर्ष मानुष वा सौर वर्षसन्ध्या वर्षयुग वर्षसंध्यांशवर्ष ४००4000४०० १,४४,०००१४,४०,०००१,४४,०००3003000३०० १,०८,०००१०,८०,०००१,०८,००० २००2000२०० ७२,०००७,२०,०००७२,००० १००1000१०० ३६,०००३,६०,०००३६,००० १०००10000१,००० ™३,६०,०००३६,००,०००३,६०,०००योग ४,८०० १७,२८,००० ३,६०० १२,९६,००० २,४०० ८,६४,००० १,२०० ४,३२,००० १२,००० ४३,२०,०००[आगे मनु श्लोक ७१, ७२ के अनुसार बारह सहस्र चतुर्युगी का एक दैव युग और एक सहस्र दैव युग का ब्रह्मा का एक दिन, और इतनी ही रात्री। अर्थात् १२,००० दैव वर्ष*१००० युग*३६० मानुष वर्ष= ४,३२,००,००,०० [चार अरब बत्तीस करोड़] मानुष वर्ष का एक दिन और इतनी वर्षों की ब्रह्मा की रात्री है, परन्तु मन्त्र का संबन्ध इससे नहीं है] ॥ टिप्पणी:२१−(शतम्) कलिसन्धेः शतदैववर्षाणि (ते) तुभ्यम् (अयुतम्) कलियुगस्य दशसहस्रदैववर्षाणि (हायनान्) अ० ३।१०।९। संवत्सरान् (द्वे युगे) द्विगुणितं शतं चायुतं च द्वापरस्य सन्धियुगयोर्दैववर्षाणि (त्रीणि) त्रिगुणितं शतं चायुतं च त्रेतायुगस्य सन्धियुगयोर्दैववर्षाणि (चत्वारि) चतुर्गुणितं शतं चायुतं च कृतयुगस्य सन्धियुगयोर्दैववर्षाणि (कृण्मः) कुर्मः। अन्यद् यथा-अ० १।३५।४। (इन्द्राग्नी) वाय्वग्नी (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यगुणाः पदार्थाः (ते) प्रसिद्धाः (अनुमन्यन्ताम्) अनुकूला भवन्तु (अहृणीयमानाः) असंकुचन्तः ॥-पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

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