देवता: ईश्वरो देवता ऋषि: गोतम ऋषिः छन्द: स्वराड्बृहती स्वर: मध्यमः
स्व॒स्ति न॒ऽइन्द्रो॑ वृ॒द्धश्र॑वाः स्व॒स्ति नः॑ पू॒षा वि॒श्ववे॑दाः। स्व॒स्ति न॒स्तार्क्ष्यो॒ऽअरि॑ष्टनेमिः स्व॒स्ति नो॒ बृह॒स्पति॑र्दधातु ॥
স্বস্তি নSইন্দ্রো বৃদ্ধশ্রবাঃ স্বস্তি নঃ পুষা বিশ্ববেদাঃ।
স্বস্তি নস্তার্খ্যোS অরিষ্টনেমিঃ স্বস্তি নো বৃহস্পতির্দধাতু।।
পদার্থঃ (নঃ) আমাদের (বৃদ্ধশ্রবা) কীর্ত্তিমান্ (ইন্দ্রঃ) ঐশ্বর্যময় (বিশ্ববেদাঃ) জ্ঞানের অধীশ্বর (পূষা) পুষ্টিদাতা (অরিষ্ট নেমিঃ) শুদ্ধ গতিবান্ (তার্ক্ষ্যঃ) অতি বেগবান্ বৃহৎ লোক লোকান্তরের আধার (স্বস্তি) সুখকে (দধাতু) ধারণ করুক।
বঙ্গানুবাদঃ- অনন্ত কীর্ত্তিমান্ ঐশ্বর্যময় জ্ঞানের অধীশ্বর পুষ্টিদাতা, শুদ্ধ গতিমান্, তীব্র বেগবান, লোক লোকান্তরের আধার, পরমাত্মা আমাদের জন্য সুখের বিধান করুন।
ভাবার্থঃ বৃদ্ধশ্রবা ইন্দ্র আমাদের মঙ্গল করুন। সর্বজ্ঞানাধার জগত পরিপালক দেবতা পূষা আমাদের মঙ্গল করুন। হিংসা নিবারক গরুড় আমাদের মঙ্গল করুন এবং দেবগুরু বৃহস্পতিও আমাদের সকলের মঙ্গল বিধান করুন।
पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्यो ! जो (वृद्धश्रवाः) बहुत सुननेवाला (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान् ईश्वर (नः) हमारे लिये (स्वस्ति) उत्तम सुख जो (विश्ववेदाः) समस्त जगत् में वेद ही जिस का धन है, वह (पूषा) सब का पुष्टि करनेवाला (नः) हम लोगों के लिये (स्वस्ति) सुख जो (तार्क्ष्यः) घोड़े के समान (अरिष्टनेमिः) सुखों की प्राप्ति कराता हुआ (नः) हम लोगों के लिये (स्वस्ति) उत्तम सुख तथा जो (बृहस्पतिः) महत्तत्त्व आदि का स्वामी वा पालना करनेवाला परमेश्वर (नः) हमारे लिये (स्वस्ति) उत्तम सुख को (दधातु) धारण करे, वह तुम्हारे लिये भी सुख को धारण करे ॥
भावार्थभाषाः -मनुष्यों को चाहिये कि जैसे अपने सुख को चाहें, वैसे और के लिये भी चाहें, जैसे कोई भी अपने लिये दुःख नहीं चाहता, वैसे और के लिये भी न चाहें ॥-स्वामी दयानन्द सरस्वती
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