শুভাশুভফলং কর্ম মনোবাগ্দেহসংভবম্।
কর্মজা গতয়ো নৃণাং উত্তমাধমমধ্যমঃ।। ১২/৩
शुभाशुभफलं कर्म मनोवाग्देहसंभवम् ।कर्मजा गतयो नॄणां उत्तमाधममध्यमः
অনুবাদঃ- মন, বচন এবং শরীর দ্বারা কৃতকর্ম, শুভ-অশুভ ফল প্রাপ্ত করায় এবং সেই কর্মের অনুসারে মনুষ্য উত্তম, মধ্যম এবং অধম এই তিন গতি প্রাপ্য হয়।
पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मन, वचन और शरीर से किये जाने वाले कर्म (शुभ-अशुभ-फलम्) शुभ-अशुभ फल को देने वाले होते है, और उन कर्मों के अनुसार मनुष्यों की उत्तम, मध्यम और अधम ये तीन गतियाँ=जन्मावस्थाएं होती है ।
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