সৃষ্টি উৎপত্তি এবং ধর্মোৎপত্তি বিষয়ে আলোচনা করা হয়েছে।
সৃষ্টি বিষয়ে প্রায় সকলেই জানার আগ্রহ দেখায়, তাঁদের মনে প্রথমেই প্রশ্ন জাগে যে সৃষ্টির পূর্ব অবস্থা কেমন ছিল। এর উত্তরে মনুস্মৃতি প্রথম অধ্যায়ে বলা হয়েছে -
आसीदिदं तमोभूतं अप्रज्ञातं अलक्षणम् ।अप्रतर्क्यं अविज्ञेयं प्रसुप्तं इव सर्वतः
আসীদিদং তমোভূতং অপ্রজ্ঞাতং অলক্ষণম্।
অপ্রতর্ক্যং অবিজ্ঞেয়ং প্রসুপ্তং ইব সর্বতঃ।। ১/৫
পদার্থঃ (ইদম্) এই সমস্ত বিশ্ব (তমোভূতম) সৃষ্টির পূর্বে প্রলয়কালে অন্ধকারে আবৃত, আচ্ছাদিত ছিল, সেই সময় (অবিজ্ঞেয়ম্) না কাউকে জানার যোগ্য (অপ্রতর্ক্যম্) না তর্কে আনার যোগ্য আর (অলক্ষণম্ অপ্রজ্ঞাতম্) না প্রসিদ্ধ চিহ্নগুলো ছিলো (সর্বতঃ) সব (প্রসুপ্তম্ ইব) নিদ্রিতাবস্থায় ছিলো।
অনুবাদঃ- এই সমস্ত বিশ্ব সৃষ্টির পূর্বে অন্ধকার (প্রকৃতি) দিয়ে আবৃত ছিল। তখন কাউকে জানার যোগ্য ছিল না, তর্কে আনার যোগ্য ছিল না, বিখ্যাত চিহ্নগুলিও ছিল না, সব নিদ্রিতাবস্থায় ছিলো।
पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. (इदम्) यह सब जगत् (तमोभूतम्) सृष्टि के पहले प्रलय में अन्धकार से आवृत्त - आच्छादित था ।................... उस समय (अविज्ञेयम्) न किसी के जानने (अप्रतक्र्यम्) न तर्क में लाने और (अलक्षणम् अप्रज्ञातम्) न प्रसिद्ध चिन्हों से युक्त इन्द्रियों से जानने योग्य था और न होगा । किन्तु वर्तमान में जाना जाता है और प्रसिद्ध चिन्हों से युक्त जानने के योग्य होता और यथावत् उपलब्ध है । (स० प्र० अष्टम स०) (सर्वतः) सब ओर (प्रसुप्तम् इव) सोया हुआ - सा पड़ा था ।
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यह सब जगत् सृष्टि के पहले प्रलय काल में अन्धकार (प्रकृति) से आवृत आच्छादित था। उस समय यह न किसी से जानने योग्य, न प्रसिद्ध चिह्नों से युक्त, न तर्क में लाने योग्य और न इन्द्रियों से जानने योग्य था। एवं, यह सर्वत्र गाढ़ निद्रित सा प्रलीन था।१ १. सांख्यदर्शन में ‘तमस्’ प्रकृति के लिए प्रयुक्त है। स० स० ८
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