যর্জুবেদ ১/৫ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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27 December, 2021

যর্জুবেদ ১/৫

 ऋषि: - परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिःदेवता - अग्निर्देवताछन्दः - आर्ची त्रिष्टुप्स्वरः - धैवतः

অগ্নে ব্রতপতি ব্রতং চরিষ্যামি তচ্ছকেয়ং তন্মে রাধ্যতাম্৷ 

ইদমহমনৃতাৎ সত্যমুপৈমি||-(যর্জুবেদ - ১/৫)

ভাবার্থঃ পরমেশ্বর সকল মনুষ্যকে কর্তব্যের সাথে সেবন করার যোগ্য ধর্মের উপদেশ করেছেন৷ যা ন্যায় যুক্ত,পরীক্ষা (সত্যতা বিচার)করা,সত্য লক্ষণে প্রসিদ্ধ এবং সবার হিতকারী তথা এই লোক অর্থাৎ সংসারী এবং পরলোক অর্থাৎ মোক্ষ সুখে প্রাপ্তির পথ৷ এটাই সবার আবরণ করার যোগ্য এবং এর বিরুদ্ধ হলে তাকে অধর্ম বলা হয়,যা কখনোই কারোর গ্রহণযোগ্য হবে না,এজন্যই সর্বদা অধর্মের ত্যাগ করা প্রয়োজন৷ আমাদের এইভাবে প্রতিজ্ঞা করা উচিত,হে পরমেশ্বর! আমরা সর্বদা বেদে প্রকাশিত আপনার সত্যধর্মই গ্রহণ করব৷ হে পরমাত্মন্ আপনি আমাদের প্রতি এমন কৃপা করুন যাতে আমরা সবসময় সত্য ধর্মের পালন করে অর্থ,কাম এবং মোক্ষরূপ সুখকে প্রাপ্ত করতে পারি৷ যেমন সত্য পালনে আপনি পতিব্রত, তেমনি আমরা আপনার কৃপায় এবং নিজের পুরুষার্থের মাধ্যমে সত্যব্রত পালনকারী হবো তথা ধর্ম পালনের ইচ্ছায় নিজের সৎকর্মের মাধ্যমে সমস্ত সুখকে প্রাপ্ত করে ,সকল জীবকে সুখ প্রদানকারী কর্ম করবো৷ এমন ইচ্ছা সকল মনুষ্যের করা উচিত৷
[ভাষ্যকার- মহর্ষি দয়ানন্দ সরস্বতী]

अग्ने॑ व्रतपते व्र॒तं च॑रिष्यामि॒ तच्छ॑केयं॒ तन्मे॑ राध्यताम्।इ॒दम॒हमनृ॑तात् स॒त्यमुपै॑मि॥


पदार्थ -
हे (व्रतपते) सत्यभाषण आदि धर्मों के पालन करने और (अग्ने) सत्य उपदेश करने वाले परमेश्वर! मैं (अनृतात्) जो झूंठ से अलग (सत्यम्) वेदविद्या, प्रत्यक्ष आदि प्रमाण, सृष्टिक्रम, विद्वानों का संग, श्रेष्ठ विचार तथा आत्मा की शुद्धि आदि प्रकारों से जो निर्भ्रम, सर्वहित, तत्त्व अर्थात् सिद्धान्त के प्रकाश करनेहारों से सिद्ध हुआ, अच्छी प्रकार परीक्षा किया गया (व्रतम्) सत्य बोलना, सत्य मानना और सत्य करना है, उसका (उपैमि) अनुष्ठान अर्थात् नियम से ग्रहण करने वा जानने और उसकी प्राप्ति की इच्छा करता हूं। (मे) मेरे (तत्) उस सत्यव्रत को आप (राध्यताम्) अच्छी प्रकार सिद्ध कीजिये जिससे कि (अहम्) मैं उक्त सत्यव्रत के नियम करने को (शकेयम्) समर्थ होऊं और मैं (इदम्) इसी प्रत्यक्ष सत्यव्रत के आचरण का नियम (चरिष्यामि) करूंगा॥

भावार्थ - परमेश्वर ने सब मनुष्यों को नियम से सेवन करने योग्य धर्म का उपदेश किया है, जो कि न्याययुक्त, परीक्षा किया हुआ, सत्य लक्षणों से प्रसिद्ध और सब का हितकारी तथा इस लोक अर्थात् संसारी और परलोक अर्थात् मोक्ष सुख का हेतु है, यही सब को आचरण करने योग्य है और उससे विरुद्ध जो कि अधर्म कहाता है, वह किसी को ग्रहण करने योग्य कभी नहीं हो सकता, क्योंकि सर्वत्र उसी का त्याग करना है। इसी प्रकार हमको भी प्रतिज्ञा करनी चाहिये कि हे परमेश्वर! हम लोग वेदों में आप के प्रकाशित किये सत्यधर्म का ही ग्रहण करें तथा हे परमात्मन्! आप हम पर ऐसी कृपा कीजिये कि जिससे हम लोग उक्त सत्यधर्म का पालन कर के अर्थ, काम और मोक्षरूप फलों को सुगमता से प्राप्त हो सकें। जैसे सत्यव्रत के पालने से आप व्रतपति हैं, वैसे ही हम लोग भी आप की कृपा और अपने पुरुषार्थ से यथाशक्ति सत्यव्रत के पालनेवाले हों तथा धर्म करने की इच्छा से अपने सत्कर्म के द्वारा सब सुखों को प्राप्त होकर सब प्राणियों को सुख पहुंचाने वाले हों, ऐसी इच्छा सब मनुष्यों को करनी चाहिये॥

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