কৃষ্ণনীতি ই ক্রিশ্চিয়ানিটি - ধর্ম্মতত্ত্ব

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স্বাগতম

10 January, 2022

কৃষ্ণনীতি ই ক্রিশ্চিয়ানিটি

 প্যাগানদের মিথ্রাস দেবতার জন্মদিন ছিল পঁচিশে ডিসেম্বর, তাই প্যাগনরা ডিসেম্বরের পঁচিশ তারিখ তাঁর জন্মদিন পালন করত। প্যাগনরা এই উৎসব কে বলত "Dies Natalis Solis Invicti".এর মানে হলো- "The Birthday of Unconquerable Sun". পৃথিবীর ইতিহাসে চতুর্থ শতাব্দীর আগে ক্রিসমাস ডে উদযাপনের কোনো প্রমাণ পাওয়া যায় না। এই কথাটি ক্রিশ্চিয়ান চার্চের অক্সফোর্ড ডিকশনারি এভাবে লিখেছে, 'Though speculation as to the time of the year of Christ's birth dates from the early 3rd century.... the celebration of the anniversary does not appear to have been general till the later 4th century.' ক্যাথলিক এনসাইক্লোপিডিয়া লিখেছে এরকম, 'Christmas was not among the earliest festivals of the Church’ খেয়াল করো, যিশুর জন্মের আরও তিনশো বছর পরে এসে হঠাৎ করে ক্রিসমাস ডে পালন করা শুরু হলো। এর আগে এরকম কোনো উৎসবের নাম-গন্ধও খ্রিষ্টানদের ইতিহাসে ছিল না। 

क्रिश्चियनिटी (ईसाइयत ) कृष्ण नीति है | इस पुस्तक के लेखक हैं : P.N.Oak

কৃষ্ণনীতি ই ক্রিশ্চিয়ানিটি

प्राक्कथन

इस पुस्तक के शीर्षक 'क्रिश्चियनिटी कृष्ण-नीति है' से पाठकों में मिश्रित प्रतिक्रिया उत्पन्न होने की सम्भावना है। उनमें से अधिकांश सम्भवतया छलित एवं भ्रमित अनुभव करते हुए आश्चर्य करेंगे कि कृष्ण नीति क्या हो सकती है और यह किस प्रकार क्रिश्चियनिटी की ओर अग्रसर हुई होगी ।

यह सामान्य मानव धारणा है। किसी भी नई पुस्तक को उठाने पर यह समझा जाता है कि इसमें कुछ नया कहा गया है। और जब वह पुस्तक वास्तव में कुछ नया कहती है तो उसकी प्रतिक्रिया होती है - "क्या हास्यास्पद कथन है, ऐसी बात हमने कभी सुनी ही नहीं।" कहना होगा कि भले ही कोई उसे समझने का बहाना बना रहा हो, किन्तु वह अपने मन और बुद्धि से उससे तब सहमत होता है जबकि वह उसकी अपनी धारणाओं से मेल खाता हो ।

यहाँ पर यह सिद्धान्त लागू होता है कि यदि किसी को स्नान का भरपूर आनन्द लेना हो तो उसे पूर्णतया नग्न रूप में जल में प्रविष्ट होना होगा। इसी प्रकार यदि किसी नए सिद्धान्त को पूर्णतया समझना है तो उसे अपने मस्तिष्क को समस्त अवधारणाओं, अवरोधों, शंकाओं, पक्षपातों, पूर्व धारणाओं, अनुमानों एवं सम्भावनाओं से मुक्त करना होगा।

ऐसी सर्वसामान्य धारणाओं में आजकल एक धारणा यह भी है कि ईसाइयत एक धर्म है, जिसकी स्थापना जीसस क्राइस्ट ने की थी। यह पुस्तक यह सिद्ध करने के लिए है कि 'जीसस' नाम का कोई था ही नहीं, इसलिए कोई ईसाइयत भी नहीं हो सकती। यदि इस प्रकार की सम्भावना से आपको किसी प्रकार की कंपकंपी नहीं होती है तो तभी आप इस पुस्तक के पारदर्शी सिद्धान्तरूपी जल में अवगाहन का आनन्द उठा सकते हैं, जोकि गरमागरम साक्ष्यों और मनभावन तर्कों से सुवासित किया गया है।

कुछ लोगों को यह आत्म-प्रकाश हो सकता है कि 'क्रिश्चियनिटी' संस्कृत का क्राइस्ट-नीति है जिसका अभिप्राय है क्राइस्ट द्वारा उपदिष्ट, प्रतिपादित या आचरित जीवन-दर्शन।

इस पुस्तक में हमने अपनी उन खोजों की व्याख्या की है कि क्राइस्ट कोई ऐतिहासिक व्यक्ति था ही नहीं, अतः क्रिश्चियनिटी वास्तव में प्राचीन हिन्दू संस्कृत शब्द कृष्ण-नीति का प्रचलित विभेद है, अर्थात् वह जीवन दर्शन जिसे भगवान् कृष्ण, जिसे अंग्रेजी में विभिन्न प्रकार से लिखा जाता है, ने अवतार धारण कर प्रचलित प्रतिपादित अथवा आचरित किया था।

कृष्ण, जिसको क्राइस्ट उच्चरित किया जाता है, यह कोई योरोपीय विलक्षणता नहीं है। यह भारत में आरम्भ हुआ। उदाहरणार्थ- भारत के बंग प्रदेश में जिन व्यक्तियों का नाम कृष्ण रखा जाता है उन्हें क्राइस्ट सम्बोधित किया जाता है।

हम इस खोज का श्रेय नहीं लेते कि जीसस क्राइस्ट कोई ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं है, क्योंकि कम से कम विगत दो सौ वर्षों से असंख्य जन यह सन्देह करते रहे हैं कि क्राइस्ट की कथा औपन्यासिक है। नेपोलियन जैसे अनेक प्रमुख व्यक्ति समय-समय पर स्पष्टतया इस सन्देह को उजागर करते रहे हैं। हाल ही में अनेक योरोपीय भाषाओं में, योरोपियन विद्वानों द्वारा अपने परिपूर्ण शोध-प्रबन्धों में कृष्ण-कथा की असत्यता को प्रकाशित किया है।

किन्तु हम अपनी निम्न विशिष्ट खोजों का श्रेय लेते हैं- (१) क्राइस्ट कथा का मूल कृष्ण है, (२) यह कि बाइबल धार्मिक ग्रन्थ से सर्वथा पृथक् एक कृष्ण-मत से भटके प्रकीर्ण, संहतीकृत लाक्षणिक लेखा-जोखा है, (३) यह कि जीसस की यह औपन्यासिक गाथा सेंट पोल के जीवन के उपरान्त ही प्रख्यात की गई, और (४) यह कि नए दिन का प्रारम्भ मध्यरात्रि के बाद मानने की योरोपीय परम्परा उनमें कृष्ण-पूजा के आधिक्य के कारण प्रचलित हुई।

हिन्दू परम्परा में कृष्ण का जन्म दैत्यों के अत्याचार एवं अनाचार के अन्धकारमय दिनों का स्मरण कराता है। कृष्ण का जन्म शान्ति सम्पन्नता और सुखमयता के नवयुग के नवप्रभात का अग्रदूत है। मध्यरात्रि से दिन के आरम्भ की योरोपियन पद्धति वास्तव में हिन्दू भावना का ही प्रस्तुतीकरण है जो अपनी ही प्रकार से यह सिद्ध करती है कि योरोप हिन्दू-अंचल था।

योरोपीय विद्वानों की यह खोज कि जीसस क्राइस्ट कोई काल्पनिक चरित्र है, केवल अर्धसत्य है जो कि और अधिक भ्रम उत्पन्न करता है। क्योंकि यह बताने में यह खोज असफल रही है कि जीसस क्राइस्ट कथा क्यों और कैसे आरम्भ हुई।

सर्वाधिक आश्चर्य तो इस बात का है कि यदि जीसस क्राइस्ट जैसा कोई चरित्र था ही नहीं तो फिर क्रिश्चियनिटी के विषय में यह सब संभ्रम क्यों फैला ?

• प्रस्तुत पुस्तक उसी अन्तिम सूत्र को निर्दिष्ट करती हुई बताती है कि | क्रिश्चियनिटी और कुछ नहीं अपितु हिन्दुओं के कृष्ण-मत का योरोपियन तथा पश्चिम एशियाई विकृति है।

इसी प्रसंग में हम इस पुस्तक में यह भी सिद्ध करना चाहते हैं कि क्योंकि जीसस कोई जीवित व्यक्ति नहीं था, अतः बाइबल भी धर्मग्रन्थ किचित् भी नहीं अपितु जेरुसलम और कौरिथ स्थित कृष्ण मन्दिरों के संचालकों के परस्पर मतभेद का कुछ संहतीकृत और कुछ लाक्षणिक कथामात्र एवं उसका परवर्ती संस्करण है।

पृथक् हुए भाग ने कृष्ण मन्दिर की व्यवस्था को हथियाने के सीमित से निमित्त के लिए एक विद्रोहात्मक आन्दोलन आरम्भ कर दिया। सौल | अथवा पील इसका नेता था। यह पौल ही है जिसका वृत्तचित्रण बाइवल में किया गया है। बारह देवदूत यहूदी समुदाय के वे बारह वर्ग हैं जिनकी सहायता की पौल ने इच्छा की थी। इसलिए जीसस के छद्मवेश में पौल हो बाइबल का मुख्य पात्र है।

यथातथा उनकी बड़ी-बड़ी अपेक्षाओं से कहीं परे पौल, पैटर, स्टीफन आदि द्वारा संचालित आन्दोलन एक प्रवाह में परिवर्तित होकर असहाय आन्दोलनकर्ताओं को कृष्ण-मत से दूर ले जाता हुआ और उनको किसी अज्ञात तट पर, जिसे वे अब भी भयाक्रान्त-से कृष्ण-नीत ही मानते रहे, जो अब क्रिश्चियनिटी कही जाती है।
बाइबल उस संघर्ष का लाक्षणिक लेखा-जोखा है जिसे आन्दोलनकर्ताओं ने किया, यहूदी नागरिकों तथा रोमन अधिकारियों को खतरा बन गए यहूदियों यह भय यदि ये क्रिश्चियन बन गए यह विशिष्ट संस्कृति जाएगी। ओर रोमन अधिकारियों को भय होने कि कृष्ण मन्दिर-विवाद इस परिमाण बढ़ गया कि वह के भयावह हो रहा है।

उनका कि कालान्तर में इसने जुडाइज्म को अन्धकार विलीन क्रिश्चियनिटी को स्थापित किया और रोम क्रिश्चियन की संस्कृति तहस-नहस कर भूमिसात् कर दिया।

चार शताब्दों की अराजकता अवधि में विद्रोहियों ने, जैसा यहूदियों अधिकारियों सूचित किया, समय-समय पर उन्हें उनके अपराधों लिए दण्डित

यहूदी सूचित करते क्योंकि जीसस मिथक उन्मत्तता हिंसा उनकी को रहे इस दिशा रोमन अधिकारी उनके विरुद्ध कार्य करके उन नए दंगों रोककर अथवा शान्त उपकृत कर थे।

यह आन्दोलन स्पष्टतया झड़पों, मुठभेड़ों, हत्याओं, सामूहिक निष्कासनों, देना जैसा मन्दिर भीतर धन-विनिमय कारों खातों से विदित था, बड़े जोरों से फैल और प्रश्न उत्पन्न हो कि जो कर है क्या उसे सीजर पास जमा करा दिया जाय ? उस विद्रोह को समाप्त करने प्रयास में विद्रोहियों को इतने

पत्थर गए कि मर अथवा उन्हें फाँसी पर लटका गया। यही वह जो बाइवल अंकित और वर्णित यही कारण है कि तथा अन्य उस प्रकार से सम्मिलित थे, बाइबल में उनका व्यवहार भी समाहित है।

cont..




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