द्रष्टव्य जगत का यथाथ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

সাম্প্রতিক প্রবন্ধ

Post Top Ad

স্বাগতম

10 January, 2022

द्रष्टव्य जगत का यथाथ

 प्राक्कथन

द्रष्टव्य जगत का यथाथ

अब यह बात सर्वमान्य और सर्वविदित है कि हमारी पृथ्वी सौरमंडल का एक हिस्सा है और वह अपनी धुरी पर चार मिनट प्रति अंश की गति से घूमती हुई सूर्य की परिक्रमा करती है तथा इस परिक्रमा में उसे एक साल (365 दिन, 5 घंटा, 48 मिनट और 45.51 सेकंड) लगता है। हमें यह भी पता है कि सौरमंडल का कौन सा ग्रह कितनी दूरी पर है, इसका व्यास क्या है और उस तक पहुँचने में किस गति से कितना समय लग सकता है। पूरे सौरमंडल को एक किनारे से दूसरे किनारे तक दौड़कर पार करना हो तो प्रकाश की गति, यानी एक लाख छियासी हजार दो सौ बयासी मील प्रति सेकंड की रफ्तार से दौड़ने पर लगभग दो वर्ष का समय लगेगा। गति-सीमा और गंतव्य को माप सकने की जो इकाई अब तक सबसे अधिक तेज मानी जाती थी, वह थी प्रकाशगति (रोशनी के पहुँचने की रफ्तार), अब उससे तीन सौ अधिक तेज चलनेवाली इकाई को न्यूजर्सी के लिजन वांग नामक अनुसंधानकर्ता ने खोज निकाला है, जिसे 'लाइट पल्स' यानी 'प्रकाश-तरंगों की गति' कहते हैं। यह गुना खोज जुलाई 2000 में प्रकाश में आई है। इस खोज से जो दूरी ‘प्रकाशवर्ष' में पढ़ी और समझी जाती थी, अब वह 'प्रकाश तरंग गति' से कुछ घंटों में आकर सिमट गई है। ये सारे रहस्य हमारी पारंपरिक और अत्याधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान-संपदा के लगातार हुए विश्लेषणों के जरिए खुल सके हैं और खुलते जा रहे हैं। इस तरह हम 'द्रष्टव्य जगत् का यथार्थ' समझ सकने में सक्षम हो रहे हैं। हमारी यह ज्ञान-राशि इतनी अधिक बिखरी हुई है कि उसको किसी एक जगह संचित किए बिना किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सकता। 'ऋग्वेद' का कथन 'एकम् सद्विप्रा बहुधा वदन्ति' केवल दार्शनिक चिंतन और आत्मा-परमात्मा संबंधी सत्यों के बारे में ही नहीं, सृष्टि के तमाम रहस्यों, ब्रह्मांड की विभिन्न स्थितियों, जैविक प्रस्फुटन की तमाम गूढ़ताओं, मानवीय प्रजातियों के क्रमिक विकास, भाषा और लिपियों के संस्कार और यहाँ तक

कि प्रलय की उद्भावनाओं तक सच साबित होता है। लेकिन इसे सच साबित करने के लिए जिस विलक्षण प्रतिभा और अथक का परिचय देना पड़ता है, वह दुर्लभ गया श्री ओम प्रकाश पांडेय 'द्रष्टव्य जगत् यथार्थ' वह समाहित यह एक विश्वकोश है, जिसमें वेदों, उपनिषदों, संहिताओं, ब्राह्मण और अगणित संस्कृत संदर्भ ग्रंथों का निचोड़ तो विभिन्न अनुसंधान-ग्रंथों, शोध-पत्रों, इतिहास, भूगोल, साहित्य और दर्शन साक्ष्यों का समुच्चय हमारे लोकमानस में तमाम अनुभूतियों का उत्स कितना सघन साक्ष्य-संपन्न और प्रामाणिक है-यह पांडेय के इस शोधग्रंथ सिद्ध हो जाता है। श्री पांडेय का संस्कृत और अंग्रेजी भाषाओं समान अधिकार उनके महत्त्वपूर्ण शोधग्रंथ का मूलाधार जिसके जरिए वैदिक ऋचाओं में बिंधा भी सामने ला अंग्रेजी माध्यम उस दिशा किए वैश्विक ऋषि-मुनियों और के चिंतन-मनन को परखकर उसकी प्रामाणिकता प्रदर्शित कर सके हैं।


श्री पांडेय की विलक्षण रूप में तब हमारे सामने आती है, जब वैदिक उद्भावनाओं वैज्ञानिक अनुसंधानों के साँचे में ढालकर देखते हुए हमारे सामने उस की प्रामाणिकता को हैं। इसी क्रम तमाम शब्दों के रहस्य खोल देते जिन्हें सुनते तो अनंत आ लेकिन उनके पीछे का अर्थ और उस अर्थ का यह नहीं जानते। उदाहरणतः हमने बचपन ही रखा था ज्योतिब्रह्म और नादब्रह्म आलंकारिक विशेषण शब्द की अभ्यर्थना के, लेकिन यह समझने में मेघों आपसी घर्षण से निःसृत विद्युत् और गर्जना, ऊर्जा और नाद-दोनों ही एक-दूसरे पूरक और सृष्टि निर्माण में दोनों सहभागिता से उत्पत्ति परम ब्रह्म है। ब्रह्मज्योति और ब्रह्मनाद एक शक्ति की अभिव्यक्ति के दो भिन्न रूप 'बहुधा वदन्ति' एक उदाहरण। ऐसे रहस्यों समझा सकने के जिस सहज क्रमिकता की आवश्यकता है, उसका सहज उपयोग प्रकाश पांडेय इस मिलता है। जिस दिशा भी बढ़े, अद्यावधि मान्यताओं पहुँचाया। कालगणना के प्राचीन सिद्धांतों का विश्लेषण करते हुए वे निमेष (0.27 सेकंड), क्षण (0.51 सेकंड), घटिका (24 मिनट), प्रहर (तीन घंटा) जैसी है और मानवी सभ्यताओं में प्रचलित संवत्सरों का ब्योरा प्रस्तुत करते हैं। प्रलय पर दृष्टि-प्रक्षेप करते हैं तो प्रलय की मान्यताओं का उल्था करते हुए उसके विभिन्न रूपों-बाह्य प्रलय (LUniversal dissolution), नैमित्तिक प्रलय (Solar-disannul), युगांतर प्रलय (External/Internal collision), नित्य प्रलय (Periodical catas (trophe). लघु प्रलय (Routine disaster), जल प्लावन (Deluge) व गैसों से पहनेवाले प्रभाव (Global warming and Green house effect) को जाँचते हुए भारत की स्थितियों तक से हमारा परिचय कराते हैं। पितरों और ब्रह्मा के मानस पुत्रों की खोज करते हुए उनके औरस पुत्रों और वंशजों का ब्योरा देते हैं और नारायण वंश का पटाक्षेप क्यों और कैसे हुआ, इसकी जानकारी देते हैं।


हिंदी में ऐसे विद्वान् अध्येताओं की अब कमी होती जा रही है, वह वंश-परंपरा विरल हो गई है। श्री ओम प्रकाश पांडेय ने अपने इस ग्रंथ से यह प्रमाणित किया है कि वह परंपरा समाप्तप्राय भले मानी जाए, समाप्त नहीं हुई। इस अनूठे और विरल ग्रंथ का हिंदी में प्रकाशन इस धारणा को भी पुष्ट करेगा कि अद्यतन जटिल वैज्ञानिक अवधारणाओं को व्यक्त करने में भी हमारी भाषा की क्षमता अद्वितीय है।

इस अध्ययनपूर्ण शोधग्रंथ से जो ज्ञानवर्धक और रोचक सामग्री हमारे सामने आई है, उसे हिंदी संसार खुली बाँहों से स्वागत करेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।


132, कैलाश हिल्स नई दिल्ली-110065


ओ३म प्रकाश पांडेय

(पद्मश्री डॉ. कन्हैयालाल नंदन)


॥ प्रार्थना ॥


शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्रा आ ये धामानि दिव्यानि तस्थुः - श्वेताश्वतरोपनिषद् (2/5)


हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्, सदाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम। य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवाः, यस्य छायामृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम ।। - ऋग्वेद ( 10 / 121 )


यो ब्रह्माणं विदधाति पूर्व यो वै वेदांश्च प्रहिणोति तस्मै । तं ह देवात्मबुद्धिप्रकाशं मुमुक्षुर्वै शरणमहं प्रपद्ये ।। - श्वेताश्वतरोपनिषद् (6/18)


"हे अमृत के पुत्रो! सुनो, हे दिव्यधाम के निवासियो! तुम भी सुनो सृष्टि के हिरण्यगर्भ धारण करने से पूर्व उसी एक का अस्तित्व था। वही सब भूतादिक पदार्थों का एकमात्र अधीश्वर है, वहीं इस विश्व का आधार है। वही जीव सृष्टि का जनक और समस्त शक्तियों का मूल स्रोत है, जिसकी छाया में चराचर जगत् के जीवन-मृत्यु का खेल चल रहा है, उसे छोड़ हम किसकी शरण में जाएँ! जिसने सृष्टि के आरंभ में सार्वभौम चेतना को उत्पन्न किया और उसकी अनुभूति के लिए जिसने ज्ञानरूपी वेदों को प्रवृत्त किया, आत्मबुद्धि को प्रकाशित करनेवाली उस सर्वोच्च सत्ता की मैं मुमुक्षु शरण ग्रहण करता हूँ।"

विषयानुक्रमणिका

सृष्टि रहस्य (अनंत या पंद्रह पद्म वर्ष से लेकर दो अरब वर्ष पूर्व का वृत्तांत) : ग्रह (Planet ) - सौरमंडल (Solar System) - दुग्ध मेखला या आकाशगंगा (Milky Way or Galaxy ) - शकधूम (Nebula) - ब्रह्मांड (Universe or Cos (mic Egg) - खगोलशास्त्री डाना बैक मैन, जोसेफ बेवर, वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग आदि के स्पष्टीकरण सृष्टि पूर्व की स्थिति-आधुनिक परिप्रेक्ष्य में वेद वर्णित संदर्भों की व्याख्या - आनीद्वांत (शाश्वत शक्ति की सुसुप्तावस्था या Potential form of Super Natural Power) स्वधा (Primeridial Elements) - अर्वा (Radient Energy ) त्रित (Metaphysical quality of trinity)-3714: (Cosmic Dust) - परिमंडलीय कण ( Atomic Particles) - परमाणु (Atom) - तन्मात्रा शक्तियाँ (Potentiality ) - मरुत (Molecules) - पंचभूत (Compound Molecule) व तीन तत्त्व अर्थात् मन, बुद्धि व अहंकार या जागतिक चैतन्यता (Universal Consciousness) विंग वैग थ्योरी ( गामा-फोटॉन व न्यूट्रिज / Neutrinz की विवेचना) - वेद व सांख्य की सृष्टि संबंधित व्याख्याएँ-पौराणिक चित्रों का आशय-आधुनिक विज्ञान से अपेक्षाएँ ।

पृथ्वी व प्राणी उद्भव (दो अरब वर्ष पूर्व से लेकर दो लाख वर्ष पूर्व का वृत्तांत) : इयोजोइक-पैलियोजोइक मेसोजोइक सिनोजोइक काल-टरशियरी व क्वाटर्नरी पीरियड दक्षिण भारत का लैमूरिया खंड व उससे अस्तित्व में आए ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका व दक्षिणी अमेरिका के वर्तमान स्वरूप प्राणी उत्पत्ति विषयक मान्यताएँ ( सतत अस्तित्वाद-विशिष्ट सृजनवाद महाप्रलयवाद - विकासवाद तथा इसकी असंगतियाँ)- मानवी प्रजातियाँ (पिथेकान्थ्रोपस, सिनान्थ्रोपस, इयोन्थ्रोपस, पालियान्थ्रोपिक, नियोन्थ्रोपिक व होमोसैपियन मानव ) - युग विभाग (पुरापाषाण, मध्य पाषाण, नवपाषाण, ताम्र व कास्य युग, लौह युग, मशीन युग व कंप्यूटर युग) - काल प्रभाग (हिम तथा वृष्टि काल) और इसके खगोलीय कारण- पृथ्वी व प्राणी-उद्भव के भारतीय संदर्भ-प्राणी, उत्पत्ति के वैज्ञानिक तथ्य व इसकी भारतीय पुष्टि-वनस्पति व पशु-पक्षी के क्रम से मानवी उत्पत्ति-जमीन से ही मानवी उत्पत्ति की विभिन्न अवधारणाएँ-पोलिमर फैक्टर व जिनोम थ्यूरी-उत्तरी हिमालय में ही प्रथम मानव का जन्म-हिमालियन, मंगोलियन, कॉकेशियन आदि मानव प्रजातियाँ व उनसे प्रसूत वंशजों का आधुनिक स्वरूप।

भाव अभिव्यक्ति के प्रतीक : आंगिक, वाचिक व लिखित अभिव्यक्तियाँ-ध्वनि-उत्पत्ति व इसके प्रकार - आद्य मानवों में बोलने की प्रतिभा के विकास में प्रकृति की सहयोगी भूमिका-शब्द-उत्पत्ति की वैदिक अवधारणा-छंद, उपछंद, मंत्र, पद, ऋचा व सूक्त के माध्यम से भाषा का सृजन-श्रुति, द्रष्टा व दर्शन का आशय-राष्ट्री व सौरी के क्रम से मानवों को संस्कारित करने वाली संस्कृत भाषा का प्राकट्य स्थान, काल व परिस्थिति भेद के कारण भाषा के स्वरूपों में क्षरण व परिवर्तन- विश्वप्रसिद्ध भाषाविदों का संस्कृत-संबंधी विचार-भौगोलिक तथा जातिगत आधारों पर आधुनिक विद्वानों द्वारा भाषायी परिवार का काल्पनिक वर्गीकरण-लिपियों की ऐतिहासिकताओं-संबंधी विवेचनाएँ-लिपियों के प्रसूत का वेदवर्णित प्रमाण-अंक लिपि व ध्वनि-चिन्हों के क्रम से लिपियों का विकास-ब्राह्मी उससे प्रसूत देव तथा शारदा लिपियों लिपियों प्राकट्य-भारत में प्रचलित लिपियों के नाम-मध्य एशिया यूरोप की लिपियाँ-चित्रलिपि (Cuneiform, Hieroglyphic Logographics) क्रम अक्काडियन (Akkadian) सेमिटिक (Semitic) एवं इससे निःसृत आर्मेइक (Armaic) तथा फोनेटिक (Phoenitic) लिपियों द्वारा हिब्रू, नेवातेन यूनानी तथा यूनानी से एडस्कन लिपियों उत्पत्ति प्रभाव।

कालगणना: समय-माप प्राचीन सिद्धांत-मयूर, वानर मानव कपाल ताम्रपात्र रेतघड़ी-भारतीय अंक-विद्या अरबी 'हिंदीसा' यूरोपीय 'न्यूमिरिकल्स' प्राकट्य-सेकेंड के 3,79,675 हिस्से से लेकर निमेष (0.17 सेकेंड) क्षण (0.51 सेकेंड), (24 मिनट) प्रहर (तीन घंटा) क्रम नियमन-पक्ष, अयन, वर्ष, युग, मन्वंतर व कल्प-प्रमाण से काल-विभाजन-सायन पद्धतियाँ-12 राशियाँ 27 नक्षत्रगण-समय पाश्चात्य अवधारणाएँ-कलियुग प्रारंभ होने प्रमाण-सौर चांद्र संवत्सर- का शाब्दिक अर्थ-जूलियन ग्रिगोरियन कैलेंडर का आशय-ईरानी 'नौरोज', सिंधी चंडी' व चीन जापान सहित प्राचीन इंग्लैंड के नव वर्षों का भारतीय संवत्सरों से साम्यताएँ जनवरी विश्वव्यापी भ्रम-संसार की विभिन्न मानवी सभ्यताओं प्रचलित संवत्सरों ब्यौरा

प्रलय : परिभाषा व भेद-ब्राह्मप्रलय (Universal Dissolution)-नैमित्तिक प्रलय (Solar Disannul) युगांतर प्रलय (External/Internal Collision) - नित्य प्रलय (Pe riodical Catastrophe) लघु प्रलय (Routine Disaster ) - Global Warming और Greenhouse गैसों का पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभाव - नित्य प्रलयों में भारत की स्थितियाँ अब तक घटित नित्य व लघु प्रलयों के विवरण- विश्वप्रसिद्ध जलप्लावन (Deluge) की घटना और उससे जुड़े क्षेत्रों व कालपुरुषों के समयानुसार ब्यौरे ।

ब्रह्म, ब्रह्मा तथा आदि-पुरुष (दो लाख वर्ष पूर्व से लेकर छब्बीस हजार वर्ष पूर्व के वृत्तांत) ब्रह्म का आशय-ब्रह्म व ब्रह्मा का भेद ब्रह्मा का आधिभौतिक स्वरूप मानवी ब्रह्मा व उसके सात क्रम-सातवें ब्रह्मा की उत्पत्ति व स्थान-मानस पुत्र ( अमैथुनीय मानव ) एवं औरस पुत्र (मैथुनीय मानव ) का आशय-विभिन्न कालों में मानुषी ब्रह्मा के बदलते स्वरूप ।

 रुद्र-महेश्वर व शैव परंपराएँ : अग्निर्वा रुद्र यानी सृष्टि की ऊर्जा-इसके सौम्य तथा घोर स्वरूप-रुद्र के पौराणिक चित्रों का आशय - लिंगभेद-रुद्र के आधिदैविक, आधिभौतिक व आध्यात्मिक स्वरूपों के एकादश प्रकार पुराणवर्णित अमैथुनीय रुद्र का मूल स्थान-मानवी रूपकों में एकादश रुद्र युग्मों की परंपराएँ-रुद्र का विश्वस्तरीय प्रभाव व इनके विभिन्न नाम-रुद्र द्वारा प्रतिपादित विभिन्न विद्याएँ-E=mc2 के आधार पर रुद्र के शिव व शंकर स्वरूपों द्वारा निर्गुण व सगुण की व्याख्या- शंकर द्वारा स्थापित आधुनिक वैवाहिक विधि-शंकर पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) ही विश्व का प्रथम टेस्ट ट्यूब बेबी-स्कंद की स्कंधनगरी ही स्कैंडेनिहिया- दानव मर्क का राज्य ही डेनमार्क-गणेश एक दत्तक पुत्र गजानन यानी गणपति का प्रजातांत्रिक रूपक शंकर के पश्चात् हुए रुद्रगण व उनके द्वारा प्रतिष्ठित संप्रदाय ।

 इतिहास : आशय-रूप-स्रोत-पुराण की विशिष्ट विधि व प्रयोजन-आधुनिक इतिहास (History) की परंपराएँ व उनका संकुचित दृष्टिकोण |

पितर या ब्रह्मा के मानस पुत्र : पितर जाति व इसके आधुनिक संदर्भ-आदिपुरुष (ब्रह्मा) के प्रथम शिष्यगण यानी मानसपुत्र (सनकादि-महर्षि-ऋषि)-मरीचि अत्रि एट्रीयस- अंगिरा व आर्गिनोरिस-पुलत्स्य व पुलेसाती या पिलेसगियंस पुलह या पुलिह- ऋतु व किलितो-वसिष्ठ व मगी अगस्त्य व उनके शिष्यों द्वारा प्रतिपादित सप्तद्वीपों की संस्कृति-द्रविड़ अर्थात् विज्ञ या ज्ञानी पुरुष-द्रविड़ व डुइडों के आपसी संबंध-विश्वामित्र - दक्ष (अग्नि) - भृगु या वर्न वुरियस-काव्य उशना (शुक्राचार्य) या कैकऊस-काबा का इतिहास-भृगुपुत्र शुक्राचार्य के पुत्र च्यवन व उनके वंशधरों में और्व, दधीचि, ऋक्ष, ऋचिक, जमदग्नि तथा परशुराम के क्रम से बाल्मीकि आदि का वर्णन नारद व परवर्ती ऋषियों की परंपराएँ व इनके द्वारा प्रतिपादित विद्याएँ विभिन्न ऋषियों द्वारा रचित शास्त्रों का विषय-परा व अपरा विद्याओं के स्वरूप-ब्राह्मण का तात्पर्य व उनके कृतित्व तथा दायित्व । 

ब्रह्मा के औरस - पुत्र एवं उनके वंशज: स्वायंभुव मनु से विकसित मनु व प्रजापति की परंपराएँ-प्रियव्रत शाखा (आग्नीघ्र, नाभि, ऋषभदेव व मनुर्भरत आदि ) - उत्तानपाद शाखा (ध्रुव, चाक्षुस आदि) - प्रियव्रत व उत्तानपाद की सम्मिलित शाखा-नारायण व उनका वंश-वैकुंठ की भौगोलिक स्थिति अनंग व सांख्याचार्य कपिल-राजा पद का सृजन क्षत्रिय जाति की व्युत्पत्ति-वेन-पृथु व इसके द्वारा जोत-पद्धति का विकसित किया जाना-उर्वरा व उत्पादकता के इच्छित गुणों से परिपूर्ण हुई धरती का पृथु के प्रभाववश 'पृथ्वी' नामकरण- पृथु के काल में ही पद ग्रहण करने से पूर्व की शपथ-प्रक्रिया का प्रारंभ-दक्ष की उत्पत्ति-तदुपरांत हुई कन्याओं के कारण नारायण वंश का पटाक्षेप।

प्रस्फुटन का सारांश : जैविक सृष्टि तथा अयोनिज मानवों की उत्पत्ति का रहस्य-आदिपुरुष यानी ब्रह्मा व उनके मानस तथा औरस पुत्रों व उनके वंशजों द्वारा विकसित सभ्यताओं से संबंधित घटनाओं का संक्षिप्त ब्यौरा ।

Cont..

No comments:

Post a Comment

ধন্যবাদ

বৈশিষ্ট্যযুক্ত পোস্ট

যজুর্বেদ অধ্যায় ১২

  ॥ ও৩ম্ ॥ অথ দ্বাদশাऽধ্যায়ারম্ভঃ ও৩ম্ বিশ্বা॑নি দেব সবিতর্দুরি॒তানি॒ পরা॑ সুব । য়দ্ভ॒দ্রং তন্ন॒ऽআ সু॑ব ॥ য়জুঃ৩০.৩ ॥ তত্রাদৌ বিদ্বদ্গুণানাহ ...

Post Top Ad

ধন্যবাদ