विमानशास्त्र - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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স্বাগতম

02 February, 2022

विमानशास्त्र

 विषय

विमान शास्त्र की टीका लिखने वाले बोधानन्द लिखते है –
निर्मथ्य तद्वेदाम्बुधिं भरद्वाजो महामुनिः ।
नवनीतं समुद्घृत्य यन्त्रसर्वस्वरूपकम्‌ ।
प्रायच्छत्‌ सर्वलोकानामीप्सिताज्ञर्थ लप्रदम्‌ ।
तस्मिन चत्वरिंशतिकाधिकारे सम्प्रदर्शितम्‌ ॥
नाविमानर्वैचित्र्‌यरचनाक्रमबोधकम्‌ ।
अष्टाध्यायैर्विभजितं शताधिकरणैर्युतम ।
सूत्रैः पञ्‌चशतैर्युक्तं व्योमयानप्रधानकम्‌ ।
वैमानिकाधिकरणमुक्तं भगवतास्वयम्‌ ॥

अर्थात – भरद्वाज महामुनि ने वेदरूपी समुद्र का मन्थन करके यन्त्र सर्वस्व नाम का ऐसा मक्खन निकाला है , जो मनुष्य मात्र के लिए इच्छित फल देने वाला है । उसके चालीसवें अधिकरण में वैमानिक प्रकरण जिसमें विमान विषयक रचना के क्रम कहे गए हैं । यह ग्रंथ आठ अध्याय में विभाजित है तथ्ज्ञा उसमें एक सौ अधिकरण तथा पाँच सौ सूत्र हैं तथा उसमें विमान का विषय ही प्रधान है ।

ग्रंथ के बारे में बताने के बाद भ्ज्ञरद्वाज मुनि विमान शास्त्र के उनसे पपूर्व हुए आचार्य उनके ग्रंथों के बारे में लिखते हैं वे आचार्य तथा उनके ग्रंथ निम्नानुसार हैं ।
(1) नारायण कृत – विमान चन्द्रिका ( 2) शौनक कृत न् व्योमयान तंत्र (3) गर्ग – यन्त्रकल्प (4) वायस्पतिकृत – यान बिन्दु + (5) चाक्रायणीकृत खेटयान प्रदीपिका (6) धुण्डीनाथ – व्योमयानार्क प्रकाश
इस ग्रन्थ में भरद्वाज मुनि ने विमान की परिभाषा , विमान का पायलट जिसे रहस्यज्ञ अधिकारी कहा गया , आकाश मार्ग , वैमानिक के कपड़े , विमा के पुर्जे , ऊर्जा , यंत्र तथा उन्हें बनाने हेतु विभिन्न धातुओं का वर्णन किया गया है ।

महर्षिभरद्वाजकृत "यन्त्रसर्वस्व" ग्रन्थ का एक प्रकरण यह "वैमानिक प्रकरण" है जिसमें ऐसे ४० प्रकरण थे। “वेमानिक प्रकरण" का ८ अध्याय १०० अधिकरण ५०० सूत्रों में निबद्ध होना कहा गया है। यन्त्रकला जैसे इस प्रन्थमें भी आस्तिकता का प्रदर्शन करने के लिये भो३म् को मुमुक्षुओं का विमान बतलाया। वैमानिक प्रकरण से पूर्व 'विमानचन्द्रिका, व्योमयानतन्त्र, यन्त्रकल्प, यानविन्दु, खेटयानप्रदीपिका, व्योमयानार्कप्रकाश' इन विमानविषयक छ शास्त्रों का विद्यमान होना जोकि कमश नारायण, शौनक, गर्ग, वाचस्पति, चाक्रायणि, घण्डिनाथ महर्षियों के रचे हुए थे। महर्षि भरद्वाज द्वारा वेद का निर्मन्थन कर "यन्त्रसर्वस्व” प्रन्थ को मक्खन के रूप में निकाल कर दिए जाने का कथन। विमान शब्द का अर्थ सूत्रकार महर्षि भरद्वाज तथा भाचार्य विश्वम्भर आदि के अनुसार विपक्षी की भाति गति के मान से एक देश से दूसरे देश एक द्वीप से दूसरे द्वीप और एक लोक से दूसरे लोक को आकाश में उडान लेने पहुँचने में समर्थ यान है। अपितु पृथिवी जल और भाकाश में तीनों स्थानों में गति करने वाला बतलाया गया (जिसे आगे त्रिपुर विमान नाम दिया )। 

विमान के ३२ रहस्यों का निर्देश करना, यथा-विमान का अदृश्यकरण, शब्दप्रसारगा, लखन, रूपाकर्षण, शब्दाकर्षण, शत्रुओं पर धूमप्रसारण शत्रु से बचाने को स्वविमान का शेषावृत करमा, शत्रु के विमानों द्वारा घिर जाने पर उन पर ज्वालाशक्ति को प्रसारित करना-फेंकना, दूर से आतेहुए शत्रुविमान पर ४०८७ तर फेंक कर उड़ने में असमर्थ कर देना, शत्रुसेना पर असह्य महाशब्द संघणरूप (शब्दवस) फेंक फर उसे भयभीत बधिर शिथिल तथा हृद्रोग से पीडित कर देना आदि। आकाश में विमान के सम्मुख विमानविनाशक आकाशीय पाच भावर्त (धवण्डरों) का माना और उनसे विमान रक्षा का उपाय । विमान में विश्वकियादपण आदि ३१ यन्त्रों का स्थापन करना ।

বিমান শাস্ত্র

कापी संख्या २-

विमानचालक यात्रियों को ऋतुओं की २५ विषशक्तियों के प्रभाव से बचने के लिये ऋतु ऋतु के अनुसार पहिनने और ओढने के योग्य वस्त्रों और भिन्न भिन्न भोजनों का विधान, अन्न भोजन के अभाव में मोदक आदि तथा कन्दमूलफलों एवं उनके मुरब्बों रसों का विशेष सवन करना। विमान में उपयुक्त ऊष्मप लोड़ों के सोम, सोएडाल और मौखिक तीन बीज लोहों का वर्णन एवं शोधन तथा बीज लोड़ों की उत्पत्ति में भूगर्भ की आकर्षण शक्ति तथा पृथिवी की बाहिरी कक्षाशक्ति और सूर्यकिरणों भूततन्मात्राओं एवं ग्रहों के प्रभाव को निमित्त बतलाना, तीन सहस्र भूगर्भस्थ खनिज • रेखापक्तियों का निर्देश तथा सातवें रेखापचिस्तर में तीन खनिजगर्भकोशों में सोम, सौण्डाल, मौलिक लोड़ों को उत्पत्ति का कथन ॥

कापी संख्या ३

विमान के भिन्न भिन्न यन्त्रों, कीलों (पेंचों) को भिन्न भिन्न लोहों से बनाने का विधान। लोहे की प्राप्ति के १२ प्रकार या स्थान बतलाए जिससे कि 'खनिज, जलज, ओषधिज, धातुज, कृमिज, चारज, अण्डज, स्थलज, अपभ्रं शक, कृतक' नामोंस लोहे कहे गए हैं। बीज लोहे सौम, सौण्डाल, मौल्विक कहे और प्रत्येक के ग्यारह ग्यारह भेद होने से ३३ भेद बतलाए हैं।

कापी संख्या ४

विविध अनर्थों के ज्ञानार्थ विमान में दर्पणयन्त्र विश्वक्रियादर्पण, शक्कया कर्षण, बैरूप्यदर्पण, कुण्टिणीदर्पण, पिन्जुलादर्पण, गुहागर्भदर्पण, रौद्रीदर्पण लगाए जाना ॥

कापी संख्या ५

विमान की मिन्न भिन्न १२ गतिया चलन, कम्पन, ऊर्ध्वगमन, अधोगमन, मण्डलगति--चक्रगति–घूमर्गात, विचित्रगति, अनुलोमगति-दक्षिणगति, विलोम गति- वामगति, पराड़ मुखगति, स्तम्भनगति, तिर्यमगति-तिरछोगति, विविधगति या नानागत' विग तू के योग से या विद्यु नशक्ति से होती हैं। विद्युत् से चालित या विद्यन्मय विश्वकियादर्श आदि ३२ यन्त्रों का वर्णन शत्रु के द्वारा किए समस्त क्रिया कलाप को दिखलाने वाला विश्वक्रियाकर्षणादर्श यन्त्र का विधान ॥

 कापी संख्या ६

शकवाकर्षण यन्त्र का विधान, जिसके द्वारा भाकाशतरों ओर वातसूत्रों से होने वाली क्षति से विमान बच जाता है तथा परिवेष क्रियामन्त्र का स्थान जो कि विमान के मार्ग में आई सूर्यकिरणों को स्वाधीन करके विमान को निर्वाध गतिशील करता है ।

कापी संख्या ७

द्रावक तारों पर लपेटने के लिए गेण्डे आदि चर्म का विधान वातसयोजक, धूमप्रसारण आदि यन्त्रों का निर्माण ३२ मणवर्गों के १२ वें वर्ग में कही १०३ मणियों का विमान में सूर्यकिरणाकर्षणार्थ उपयोग लेना। परिवेषक्रियायन्त्रद्वारा विमान में बातसयोजन धूमप्रसारण सूर्यकिरणाकर्षण आदि व्यवहार ।।

कावी संख्या ८

ग्रहों के चार अतिचार आदि विरोधी गतियों के संघर्ष से आकाश में बहती हुई विषशक्ति के आक्रमण या प्रभाव से विमान के अह्नों को निष्प्रभाव रखने के लिए अट्टोपसंहारयन्त्र का विधान तथा भूगर्भ से उद्भूत और पृथिवी की बाह्यकक्षाओं से प्रकट हुए अनिष्टों के निवारणार्थ विस्तृतास्यक्रियायन्त्र का स्थापन शत्रुओं पर कृत्रिम विविध धूमप्रकाश को वैरूप्यदर्पणद्वारा फेंक कर उन्हें विरूप करना मूर्च्छा आदि भिन्न भिन्न रोगों में प्रस्त करना आकाशीय वातावरण से विमान के अ तथा विशेषत उपरि अङ्गों में शिथिलता आ जाने और उनपर मल लिप्त होजाने से बचाने को पद्मपत्र मुखयन्त्र का विधान ॥

कापी संख्या 

ग्रीष्मकाल मे उष्णकिरणों के मेल से कुलिका नाम की शक्ति विमान को भरम कर देने वाली उत्पन्न हो जाती है उसे कुरिटीशक्तियन्त्र के विविध द्वारा पी लिये जाने का वर्णन, तथा ग्रीष्म में विषयुक्त पञ्चशिखा नाम की घातिका शक्ति उत्पन्न हो जाती है जो कि प्राणियों के जीवनरस का शोषण एवं अनेकविध रोगों का निमित्त है उसे नष्ट करने के लिये पुष्पिणीयन्त्र (पुष्पाकार अरायन्त्र) लगाना, जो कि उसके विषयुक्तप्रवाहों को बाहिर निकाल देता है। दो वायुओं के आवर्त--चक्रघुम एवं सूर्यकिरणों के संसर्ग से वचसमान विद्युत का पतन हो जाया करता है उससे बचने के लिये पिन्जुलादर्शयन्त्र का विमान में लगाना ॥

कापी संख्या १०

शत्रु के द्वारा भूमि में दवाए--द्विगए हुए महागोलाग्नियन्त्र का गुहागर्भादर्श यन्त्र ( दूरवीन जैसे यन्त्र) द्वारा सूर्यकिरणें (ऐक्सरे की भाति) पकड भूमि में प्रविष्ट कर निर्यासपट पर प्रतिबिम्ब (फोटो) लेलेना ।।

विमानशास्त्र

कापी संख्या ११

शत्रु पर अन्धकार फैलाने वाला तमोयन्त्र आकाशीय १३ वातावरण में हुए बातसंघर्ष से विमान को बचाने वाला पत्रातस्कन्धनालयन्त्र लगाना जिसके नालों से वातविषशक्तिया विमान से खिंचकर बाहिर निकल जाती हैं। आवद्द आदि १२२ भेदों में है ७६ वा वातायन प्रवाह है जहा मीष्म ऋतु में विमान को वक्रगति से यात्रियों को हानि की सम्भावना है विमान की वकगति को रोकने के लिये विमान के लिये विमान के नीचे पावकेन्द्र में वातस्तम्भनाल कीलयन्त्र लगाना। वर्षा ऋतु में विद्य न से उत्पन्न अग्निशक्ति की शान्ति विद्यु दर्पणयन्त्र से हो जाना बर्फ के समान ठण्डा हो जाना। आकाशीय ३०४ शब्दों में मेघतरङ्ग वायु विद्युत् की कटुक से ८ वें स्तर में श्रोत्र विदीर्णता और बधिरता आदि हानि से बचने को शब्द केन्द्रमुखयन्त्र लगाना ||

कापी संख्या १२

आकाश में रोचिषी आदि १२ उल्काए विद्य न मे भरी है उक्त उल्काओ में स्थित विद्युत के प्रहार से विमान को बचाने के लिये विद्य द्वादशकयन्त्र लगाना । मं विमान में स्थित धूम, विद्युत और वायु को नियन्त्रित करने और उपयोग में लेने के लिये प्रारणकुण्डलिनीयन्त्र लगाना। जिससे विमान की विविध गतिया सिद्ध होती हूँ ।

कापी संख्या १३

आकाश में ग्रहों के प्रभाव से विमानपथरेखा में शीतरसधारा शीतधूमधारा शीतबायुधारा वेगस आ जाया करती हैं जोकि विमान के कलपुर्जोको शिथिल और यात्रियों को रुग्ण तथा विमानपथ को अदृश्य कर दिया करती हैं उन्हें निवृत्त करने या उनके प्रहार से बचने के लिये शक्त्युद्गमयन्त्र लगाना । शत्रुद्वारा दम्भोलि (तारपीडो जैसे) आदि विघातक आठ यन्त्र स्वविमान के मार्ग में फेंके हुओं से बचाने के लिये स्वविमान की वक्रगति देने के निमित्त वक्रप्रसारणयन्त्र लगाना विद्युतशक को सर्वत्र विमानागों में प्रेरित करने के लिये विद्युत-शकि से पूर्ण तारों से घिरा पिञ्जरा जैसा शक्तिपन्जरयन्त्र लगाना। मेघों से विद्य त के पतन की आशङ्का पर विमान के शिर पर छत्रों के आकार का घूमता हुआ शिर कीलकयन्त्र लगाना जिससे विशन का प्रभाव कोर्सो दूर रहे । विविध शब्दों भाषा भाषणे बाजे स्वर सङ्कल्प आदि को खींचनेवाला शब्दाकपणयन्त्र लगाना ॥

विमानशास्त्र


कापी संख्या १४

भिन्न भिन्न भय आदि अवसरों पर वैसे वैसे रंग के वस्त्र का प्रसारण होना आठों दिशाओं में प्रों और किरणों की सन्धियों में ऋतुकाल सम्बन्धी १५ कौवेर विद्य त् शक्तिपूर्ण वायुए हैं उनसे यात्रियों को विविध कष्ट सम्भावनीय हैं उनसे बचाने के लिये दिशाम्पतियन्त्र लगाना ||

कापी संख्या १५

ग्रहों के सञ्चार मार्गों में ग्रहों के परस्पर एक रेखाप्रवेश से प्रहसन्धि में ज्वालामुखविषशकि है जिससे यात्री मर जाते तक हैं उस विषशकि के नाशार्थ पट्टिका अयन्त्र लगाना। शरद् और हेमन्त ऋतु की शीतता को निवृत्त करने के लिये सूर्यशक्त्यपकर्षण यन्त्र लगाना। शत्रु के विमानोंद्वारा अपना विमान घिर जाने पर उनके ऊपर अपस्मारधूमप्रसारणार्थ अपनी रक्षा के अर्थ अपस्मारधूमप्रसारायन्त्र लगाना। अभ्रमण्डलों एवं वायुपवाड़ों के संघर्ष में विमान को अविचलित रखने के लिये स्तम्भनयन्त्र का होना। अग्निहोत्रार्थ और पाकार्थ गैश्वानरनालयन्त्र भी लगाना ॥

कापी संख्या १६

मान्त्रिक, तान्त्रिक, कृतक (यान्त्रिक) नाम से विमानों के तीन जातिभेद । त्रेतायुग में मान्त्रिक मन्त्रप्रभाव योगसिद्धि से, द्वापर में तान्त्रिक तन्त्रप्रभाव औषध युक्ति से, कलियुग में कृतक यान्त्रिक यन्त्रकलापरायण मान्त्रिक विमान के २५ प्रकार “यन्त्रसर्वस्त्र” ग्रन्थ में महर्षि भरद्वाज के अनुसार, किन्तु "माणिमद्रिका अन्य में गौतम के अनुसार ३२ हैं ।।

कापी संख्या १७

तान्त्रिक विमान के भेद ५६ कहे हैं। कृतक अर्थात् यान्त्रिक-यन्त्रकला से चालित विमान २५ प्रकार के हैं। कृतक (यान्त्रिक) विमानों में प्रथम शकुन विमान है उसके पीठ पंख पुच्छ आदि २८ अङ्गों का वर्णन और रचना भिन्न भिन्न ओषधि खनिज पदार्थों के पुट से बनाए हुए भिन्न भिन्न कृत्रिम लोहों से करना। शकुन विमान की पीठ पर तीन वडे कमरे बनाना, प्रथम में विमान के अङ्गमन्त्रों और उपकरणों को रखना दूसरे में स्तम्भ के साथ यात्रियों के बैठने को घर (Compartments) तीसरे में विमान के सिद्ध यन्त्र आदि साधन। शकुन विमान में चार औष्म्य यन्त्र (ऐब्जिन ), चार वाताकर्षण यन्त्र वायु को खींचने के लिये, भूमि पर सञ्चार करने को भी चक्र लगाना ॥

कापी संख्या १८-

दूसरा सुन्दर विमान है, उसमें घूमोद्गम आदि ८ विशेष अंग हो। पात्र में धूमान्जन तेल, हिंगुल तेल, शुकतुरिद तेल, कुलटी (मनःशिला) का तेल भरना। विद्यु त के संयोजनार्थं मणिपेंच के अन्दर नालमार्ग से दो तार लगाना, नालस्तम्भ के अन्दर धूम को रोकने और फेंकने के अर्थ छिद्रसहित घूमने वाले तीन चक्र नाल सहित लगाना तैलधूम और जलधूम की नाले उन्हें बाहिर निकालने को लगाना एवं ४० यन्त्र सुन्दर विमान में लगाना शुबहाल-शुबह जैसा बन्त्र १ बालिस्त मोटा १२ बालिश्त लम्बा ऊंचा हो जिससे विमान दौड़ता है। दूध गोन्द वाले वृक्षों के दूध गोन्द् तथा विशेष निर्दिष्ट लोहे आदिको मिला कर शुरूडाल का बनाया जाना । शुण्डाल से धूम निकालने और वायुको खींचने के द्वारा विमान का चलाना। संघर्षण, पाकजन्य, जलपात, सांयोजक, किरणजन्य आदि ३२ विद्युयन्त्र होते हैं परन्तु विमान में सांयोजक विद्यु यन्त्र का लगाया जाना अगस्त्य के शक्तितन्त्र के अनुसार कहा जाना ॥

कापी संख्या १

विद्युत्-शक्ति पूरक पात्र बनाने का प्रकार, विमानको भूमि से ऊपर उठाने के लिए वातप्रसारणयन्त्र (वायुके फेंकनेवाला यन्त्र) लगाना, २६०० कक्ष्यगति (अश्वगति) से बात को फेंकना, वायु के निकलने से विमान का वेग से दौडना । सुन्दरविमान का आवरण भी शकुनविमान की भांति राजलोहे से बनाया जाना, कमरे और शेष ३२ अंग भी वैसे ही बनाना। विमान के चलने में धूम आदि निकालने का वेगप्रमाण गणित शास्त्र से निश्चित किया जाना, एक चुटकी बजाने जितने काल में धूमोद्गम यन्त्र (ऐन्जिन) से औस्य वेग ३४०० लिङ्क (डिपी) प्रमाण में हो जाने पर विमान का एक घड़ी में ४०० योजन अर्थात् एक घण्टे में ४००० कोस ( लगभग ८००० मील ) परिमाण से गति करना ||

कापी संख्या २०

 तीसरे रुक्मविमान का राजलोहे से बनना और पाकविशेष से रुक्म अर्थात स्वर्ण रंग वाला बन जाना अत एव उसका रुक्म विमान नाम से कहा जाना। १२ बालिश्त लम्बा चौडा लोइपिण्ड चक्र शृंखला तन्त्री (जब्जीर) द्वारा अन्य चक्रों से युक्त होने पर गतिशील होता है, अगूठे द्वारा वटनिका दवाने से सब कलायन्त्रों का चल पडना और विद्य तू के योग से धूम का ५०० लिंक ( डिग्री) वेग हो जाना चकूवाडन स्तम्भ के आकर्षण से विमान का वेग से उडना रुक्म विमान में अभ्रक की भित्तियां आदि बनाया जाना ॥

कापी संख्या २१

त्रिपुर विमान अपने तीन आवरणों से पृथिवी जल आकाश में चलने वाला होने से त्रिपुर विमान नाम से प्रसिद्ध होना प्रथम भाग से पृथिवी पर दूसरे भाग से जल में तीसरे भाग से आकाश में गमन करता है। त्रिपुर विमान में किरणजन्य विद्य तू से काम लेना । त्रिपुर विमान के ऊपर नीचे चक्रों में शक्ति होने से उसका पर्वतों पर चढ़ने तिरछे चलने में समर्थ होना त्रिपुर विमान में अभ्रक का विशेष प्रयोग करना, ब्राह्मगा क्षत्रिय वैश्य शुद्ध नाम से अभ्रक के चार भेद कहे गए, श्वेत ब्राह्मण रक्त क्षत्रिय पीत वैश्य और कृष्ण शुद्ध अभ्रक बतलाया है। ब्राह्मण अभ्रक के १६, क्षत्रिय अभ्रक के १२, वैश्य अभ्रक के ७ और शूद्र अभ्रक के १५ भेद | त्रिपुर विमान में दिशाओं में घूमने वाले घर लगाना उसका प्रथम आवरण सब से बड़ा दूसरा उससे छोटा तीसरा और भी छोटा होना। प्रथम आवरण के ऊपर नीचे मुख वाले पैचों में घूमने वाले दस्त चक्रों-मराहूक हस्तचकों का लगाया जाना उनका विद्युत् तारों से युक्त हो जल में गति करना ।

विमानशास्त्र

According to Dr. V. Raghavan, a former Sanskrit professor at the University of Madras, there are many Sanskrit documents, dated hundreds of years ago, proving that extraterrestrial visitors were in ancient India.

“There is a huge amount of fascinating information about flying machines and even science fiction weapons, which can be found in the translations of the Vedas and other ancient Sanskrit texts.”

“Fifty years of research have convinced me that there are living beings on other planets and that they visited Earth 4,000 years BC”

বিমানশাস্ত্র

There are not only stories about the aerodynamic qualities of these Vimana but also about the way they can be built. In Ramayana, it is indicated that 16 types of metals are needed to build them but here on Earth we only know three of them.

Dr. Ruth Reyna of the University of Chandigarh translated some Sanskrit texts describing the “anti-gravitational” force that is the one that Yogis develop to levitate.

According to his research, that same anti-gravitational force is what allowed the Vimanas to move through space.

Although it seems paradoxical compared to most reports of sightings of extraterrestrial ships, the information contained in the Sanskrit texts on the form, the construction process, the materials and weapons of the Vimana leaves little to the imagination.

Valmiki has mentioned the word ‘Vimana‘ atleast 19 times in Ramayana.

Sita mentioned 3 different types of Vimanas in Ramayana (Ayodhya Kanda, 27 Sarga), where she wishes to follow her husband to forest exile.

Ravana used jumbo jet, helicopter etc, while Indrajit used Fighter-Jet and Vanaras used silent air-gliders.

Some modern writers claim that Valmiki. who wrote about Vimanas in Ramayana has only imagined flying machines in his era.
Vimanas are mentioned even in Mahabharata and many other ancient Indian scriptures like Puranas.

Vimanas in Ramayana
प्रासाद अग्रैः विमानैः वा वैहायस गतेन वा |
सर्व अवस्था गता भर्तुः पादच् चाया विशिष्यते || २-२७-८

Translation : Protection under the feet of the husband is better than being on top of a lofty building or in aerial cars or in moving through the sky or in attaining all types of positions. (Ayodhya Kanda, 27 Sarga) Different Vedic Vimanas Mentioned in Ramayana

When Sumatra enters Rama’s palace, he notices houses(rooms) similar to flying divine cars. (Ayodhya Kanda, 15 sarga)

ततोऽद्रिकूटाचलमेघसन्नि भं |
महाविमानोपमवेश्मसंयुतम् |
अवार्यमाणः प्रविवेश सारथिः |
प्रभूतरत्नं मकरो यथार्णवम् || २-१५-४९

Translation : Then, that Sumantra entered Rama’s palace, which was like top of a mountain, like an unmoving cloud, which contained houses equal to excellent divine cars, like crocodile entering the ocean containing a number of precious stones. Nobody obstructed him.

When Bharata meets Rama after his exile, he sees the bed of Dharbha grass and wonders how a Prince like Rama and his wife Sita slept on grass blades, while they were supposed to sleep in palaces similar to flying chariots of Gods.

प्रासाद अग्र विमानेषु वलभीषु च सर्वदा |
हैम राजत भौमेषु वर आस्त्ररण शालिषु || २-८८-५

Translation : Having ever dwelt in palaces, the upper apartments resembling the chariots of the gods and in turrets, furnished with excellent carpets decked with heaps of flowers, perfumed with sandal and aloes, like unto a bright and towering cloud, re-echoing to the cries of parrots, suprassing the finest of palaces, which wre cool and fragrant with perfules…

Hanuman, upon entering Ravana’s palance in Lanka for the first time, sees Pushpak Vimana (Sundara Kanda, 7 Sarga) and also feels Ravana’s palace is as big as a flying plane.

नारी प्रवेकैर् इव दीप्यमानम् |
तडिद्भिर् अम्भोदवद् अर्च्यमानम् |
हंस प्रवेकैर् इव वाह्यमानम् |
श्रिया युतम् खे सुक्ऱ्ताम् विमानम् || ५-७-७

Translation : Being shone by the best among women like a cloud by lightening, being worshipped, like being carried by the best swans, like an aerial car full of splendor, of good people in sky.


 
Different Vedic Vimanas Mentioned in Ramayana

पुष्प आह्वयम् नाम विराजमानम् |
रत्न प्रभाभिः च विवर्धमानम् |
वेश्म उत्तमानाम् अपि च उच्च मानम् |
महा कपिः तत्र महा विमानम् || ५-७-११

Translation : There the great Hanuma saw a great aerial car, the best among best of aerial cars, shining with the name of Pushpaka with the rays of precious stones, and capable of traveling long distances.

Entire description of Pushpak Vimana was given through Hanuman in Sundara Kanda, 8th Sarga.

वहन्ति यम् कुण्डशोभितानना |
महाशना व्योमचरा निशाचराः |
विवृत्तविध्वस्तविशाललोचना |
महाजवा भूतगणाः सहस्रशः || ५-८-६
Translation : Hanuma saw that aerial plane which rakshasas who were great eaters, with a face beautified by earnings, who roamed around in the sky(space) and thousands of genii with round eyes, crooked eyes and wide eyes capable of great speed carrying it.

Vyomachara (Vyoma = sky/space + chara = travellers).

Here, Valmiki’s description matches with modern day pilots wearing round goggles around their eyes.

Valmiki also mentions Vimanas in Kandas of Ayodhya 27-8; 15-49, 17-18, 88-5; Aranya 32-15, 35-19, 42-9, 48-6, 50-11; Kiskindha 50-30, 51-5, Sundara 7-7, 8-1, 8-2, 5, 8; 9-19, 11; 11-34, 12-14, 25.

At many other instances Valmiki has described separately the flying by Yogic Siddhi, at Ayodhya 27-8, Vimana taking away the dead to the Heaven at Ayodhya 64-5017, and the Vimana of Gods at Aranya 24-2418 Thus Valmiki has differentiated the real and imaginary aeroplanes Yuddh. 123-22.

He also mentions different layers of atmosphere in which different sizes Vimanas could fly.

Sampati talks to Angada and describes them. (Kishkinda Kanda, 58th Sarga)




जानामि वारुणान् लोकान् विष्णोः त्रैविक्रमान् अपि |
देव असुर विमर्दाम् च हि अमृतस्य च मंथनम् || ४-५८-१३

Translation : I have seen the netherworlds of Rain-god viz., earth and its substrata like atala. vitala, sutala, paataala terrains… and I have even seen those empyrean worlds that were triply trodden by Vishnu, and the intermediary regions of upper and lower worlds where gods and demons combated ghastlily, and because I am that aged I have also seen the unseeable Milky Ocean when it was churned for ambrosia.

Pushpaka Vimana is described similar to a huge Jumbo Jet in Sundara Kanda and Yuddha Kanda.
Vibhishana says that after lunch Rama can reach Ayodhya before sunset if he travels in Pushpaka Vimana. He says with Pushpaka Vimana, about 2200 KM can be travelled in less than 5 hours.

Which means it can travel at 440 KMPH !!

It Carried Rama, Sita, Lakshmana along with entire Vanara army. So it must be of great dimension.

There were other varieties like fighter jet (used by Indrajit in war to travel at supersonic speeds and emits smoke), Helicopter (used by Ravana to abduct Sita from middle of forest, which landed and took-off without any landing-strip).

While Ravana’s army flew in bunches on Vimanas, Vanaras flew individually in their flying machines.

This description of Vanaras flying suggests that they might have gliders floating on the air currents which were noiseless.

All the Vanaras were not able to fly, only a few could fly and they formed a platoon or a flying squad.

Rama ordered this flying squad to fly forward and search for Daityas (Ravana’s men) hidden in pits or forests or castles.

When they okayed the route, the rest of Vanara army was to march ahead.

This arrangement is just like the modern war tactics. The capacity of their flights was measured in Yojanas. Jambavanta says, he can fly 80 yojanas as he became old. Angada says he can fly 100 Yojanas i.e. minimum 400 miles, at a stretch but was not sure of returning. Hanuman had a much greater capacity, almost limitless.


अष् नारायण ऋषि कहते हैं जो पृथ्वी, जल तथा आकाश में पक्षियों के समान वेग पूर्वक चल सके, उसका नाम विमान है ।

शौनक के अनुसार- एक स्थान से दूसरे स्थान को आकाश मार्ग से जा सके , विश्वम्भर के अनुसार – एक देश से दूसरे देश या एक ग्रह से दूसरे ग्रह जा सके, उसे विमान कहते हैं ।

रहस्यज्ञ अधिकारी ( पायलट ) – भरद्वाज मुनिक हते हैं, विमान के रहस्यों को जानने वाला ही उसे चलाने का अधकारी है । शास्त्रों में विमान चलाने के बत्तीस रहस्य बताए गए हैं । उनमा भलीभाँति ज्ञान रखने वाला ही उसे चलाने का अधिकारी है । शास्त्रों में विमान चलाने के बत्तीस रहस्य बताए गए हैं । उनका भलीभाँति ज्ञान रखने वाला ही सफल चालक हो सकता है । क्योंकि विमान बनाना, उसे जमीन से आकाश में ले जाना, खड़ा करना, आगे बढ़ाना टेढ़ी – मेढ़ी गति से चलाना या चक्कर लगाना और विमान के वेग को कम अथवा अधिक करना उसे जाने बिना यान चलाना असम्भव है । अतः जो इन रहस्यों को जानता है , वह रहस्यज्ञ अधिकारी है तथा उसे विमान चलाने का अधिकारी है तथा उसे विमान चलाने का अधिकार है ।

( ३ ) कृतक रहस्य – बत्तीस रहस्यों में यह तीसरा रहस्य है , जिसके अनुसार विश्वकर्मा , छायापुरुष , मनु तथा मयदानव आदि के विमान शास्त्र के आधार पर आवश्यक धातुओं द्वारा इच्छित विमान बनाना , इसमें हम कह सकते हैं कि यह हार्डवेयर का वर्णन है ।

( ४ ) गूढ़ रहस्य – यह पाँचवा रहस्य है जिसमें विमान को छिपाने की विधि दी गयी है । इसके अनुसार वायु तत्त्व प्रकरण में कही गयी रीति के अनुसार वातस्तम्भ की जो आठवीं परिधि रेखा है उस मार्ग की यासा , वियासा तथा प्रयासा इत्यादि वायु शक्तियों के द्वारा सूर्य किरण रहने वाली जो अन्धकार शक्ति है, उसका आकर्षण करके विमान के साथ उसका सम्बन्ध बनाने पर विमान छिप जाता है ।

( ५ ) अपरोक्ष रहस्य – यह नवाँ रहस्य है । इसके अनुसार शक्ति तंत्र में कही गयी रोहिणी विद्युत्‌ के फैलाने से विमान के सामने आने वाली वस्तुओं को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है ।

( १० ) संकोचा – यह दसवाँ रहस्य है । इसके अनुसार आसमान में उड़ने समय आवश्यकता पड़ने पर विमान को छोटा करना ।

( ११ ) विस्तृता – यह ग्यारवाँ रहस्य है । इसके अनुसार आवश्यकता पड़ने पर विमान को बड़ा करना । यहाँयह ज्ञातव्य है कि वर्तमान काल में यह तकनीक १९७०के बाद विकसित हुई है ।

( २२ ) सर्पागमन रहस्य – यह बाइसवाँ रहस्य है जिसके अनुसार विमान को सर्प के समान टेढ़ी – मेढ़ी गति से उड़ाना संभव है । इसमें काह गया है दण्ड, वक्रआदि सात प्रकार के वायु औरसूर्य किरणों की शक्तियों का आकर्षण करके यान के मुख में जो तिरछें फेंकने वाला केन्द्र है उसके मुख में उन्हें नियुक्त करके बाद में उसे खींचकर शक्ति पैदा करने वाले नाल में प्रवेश करानाचाहिए । इसके बाद बटन दबाने से विमान की गति साँप के समान टेढ़ी – मेढ़ी हो जाती है ।

( २५ ) परशब्द ग्राहक रहस्य – यह पच्चीसंवा रहस्य है । इसमें कहा गया है कि सौदामिनी कला ग्रंथ के अनुसार शब्द ग्राहक यंत्र विमान पर लगाने से उसके द्वज्ञरा दूसरे विमान पर लोगों की बात-चीत सुनी जा सकती है ।

( २६ ) रूपाकर्षण रहस्य – इसके द्वारा दूसरे विमानों के अंदर का सबकुछ देखा जा सकता था ।

( २८ ) दिक्प्रदर्शन रह्रस्य – दिशा सम्पत्ति नामक यंत्र द्वारा दूसरे विमान की दिशा ध्यान में आती है ।

( 29) स्तब्धक रहस्य – एक विशेष प्रकार का अपस्मार नामक गैस स्तम्भन यंत्र द्वारा दूसरे विमान पर छोड़ने से अंदर के सब लोग बेहोश हो जाते हैं ।

( ३0 ) कर्षण रहस्य – यह बत्तीसवाँ रहस्य है , इसके अनुसार अपने विमान का नाश करने आने वाले शत्रु के विमान पर अपने विमान के मुख में रहने वाली वैश्र्‌वानर नाम की नली में ज्वालिनी को जलाकर सत्तासी लिंक ( डिग्री जैसा कोई नाप है ) प्रमाण हो, तब तक गर्म कर फिर दोनों चक्कल की कीलि ( बटन ) चलाकर शत्रु विमानों पर गोलाकार से उस शक्ति की फैलाने से शत्रु का विमान नष्ट हो जाता है ।

महर्षि शौनक आकाश मार्ग का पाँच प्रकार का विभाजन करते हैं तथा धुण्डीनाथ विभिन्न मार्गों की ऊँचाई विभिन्न मार्गों की ऊँचाई पर विभिन्न आवर्त्त या whirlpools का उल्लेख करते हैं और उस ७ उस ऊँचाई पर सैकड़ों यात्रा पथों का संकेत देते हैं । इसमें पृथ्वी से १०० किलोमीटर ऊपर तक विभिन्न ऊँचाईयों पर निर्धारित पथ तथा वहाँ कार्यरत शक्तियों का विस्तार से वर्णन करते हैं ।

आकाश मार्ग तथा उनके आवर्तों का वर्णन निम्नानुसार है –

10 km ( 1 ) रेखा पथ – शक्त्यावृत्त – whirlpool of energy

50 km ( 2 ) – वातावृत्त – wind

60 km ( 3 ) कक्ष पथ – किरणावृत्त – solar rays

80 km ( 4 ) शक्तिपथ – सत्यावृत्त – cold current


वैमानिक का खाद्य – इसमें किस ऋतु में किस प्रकार का अन्न हो इसका वर्णन है । उस समय के विमान आज से कुछ भिन्न थे । आज ते विमान उतरने की जगह निश्चित है पर उस समय विमान कहीं भी उतर सकते थे । अतः युद्ध के दौरान जंगल में उतरना पड़ा तो जीवन निर्वाह कैसे करना , इसीलिए १०० वनस्पतियों का वर्णन दिया है जिनके सहारे दो तीन माह जीवन चलाया जा सकता है ।

एक और महत्वपूर्ण बात वैमानिक शास्त्र में कही गयी है कि वैमानिक को दिन में ५ बार भोजन करना चाहिए । उसे कभी विमान खाली पेट नहीं उड़ाना चाहिए । 1990 में अमेरिकी वायुसेना ने 10 वर्ष के निरीक्षण के बाद ऐसा ही निष्कर्ष निकाला है ।

विमान के यन्त्र – विमान शास्त्र में 31 प्रकार के यंत्र तथा उनका विमान में निश्चित स्थान का वर्णन मिलता है । इन यंत्रों का कार्य क्या है इसका भी वर्णन किया गया है । कुछ यंत्रों की जानकारी निम्नानुसार है –

( १ ) विश्व क्रिया दर्पण – इस यंत्र के द्वारा विमान के आसपास चलने वाली गति- विधियों का दर्शन वैमानिक को विमान के अंदर होता था, इसे बनाने में अभ्रक तथा पारा आदि का प्रयोग होता था ।

( २ ) परिवेष क्रिया यंत्र – इसमें स्वाचालित यंत्र वैमानिक यंत्र वैमानिक का वर्णन है ।

( ३ ) शब्दाकर्षण मंत्र – इस यंत्र के द्वारा २६ किमी. क्षेत्र की आवाज सुनी जा सकती थी तथा पक्षियों की आवाज आदि सुनने से विमान को दुर्घटना से बचाया जा सकता था ।

( ४ ) गुह गर्भ यंत्र -इस यंत्र के द्वारा जमीन के अन्दर विस्फोटक खोजने में सफलता मिलती है ।

( ५ ) शक्त्याकर्षण यंत्र – विषैली किरणों को आकर्षित कर उन्हें उष्णता में परिवर्तित करना और उष्णता के वातावरण में छोड़ना ।

( ६ ) दिशा दर्शी यंत्र – दिशा दिखाने वाला यंत्र

( ७ ) वक्र प्रसारण यंत्र – इस यंत्र के द्वारा शत्रु विमान अचानक सामने आ गया, तो उसी समय पीछे मुड़ना संभव होता था ।

( ८ ) अपस्मार यंत्र – युद्ध के समय इस यंत्र से विषैली गैस छोड़ी जाती थी ।

( ९ ) तमोगर्भ यंत्र – इस यंत्र के द्वारा शत्रु युद्ध के समय विमान को छिपाना संभव था । तथा इसके निर्माण में तमोगर्भ लौह प्रमुख घटक रहता था ।

ऊर्जा स्रोत – विमान को चलाने के लिए चार प्रकार के ऊर्जा स्रोतों का महर्षि भरद्वाज उल्लेख करते हैं । 

( १ ) वनस्पति तेल जो पेट्रोल की भाँति काम करता था ।

( २ ) पारे की भाप – प्राचीन शास्त्रों में इसका शक्ति के रूप में उपयोग किए जाने का वर्णन है । इस के द्वारा अमेरिका में विमान उड़ाने का प्रयोग हुआ , पर वह ऊपर गया, तब विस्फोट हो गया । परन्तु यह तो सिद्ध हुआ कि पारे की भाप का ऊर्जा की तरह प्रयोग हो सकता है । आवश्यकता अधिक निर्दोष प्रयोग करने की है ।

( ३ ) सौर ऊर्जा – इसके द्वारा भी विमान चलता था । ग्रहण कर विमान उड़ना जैसे समुद्र में पाल खोलने पर नाव हवा के सहारे तैरता है इसी प्रकार अंतरिक्ष में विमान वातावरण से शक्ति ग्रहण कर चलता रहेगा । अमेरिका में इस दिशा में प्रयत्न चल रहे हैं । यह वर्णन बताता है कि ऊर्जा स्रोत के रूप में प्राचीन भारत में कितना व्यापह प्रचार हुआ था ।

विमान के प्रकार – विमान विद्या के पूर्व आचार्य युग के अनुसार विमानों का वर्णन करते हैं । मंत्रिका प्रकार के विमान जिसमें भौतिक एवं मानसिक शक्तियों के सम्मिश्रण की प्रक्रिया रहती थी वह सतयुग और त्रेता युग में सम्भव था । इनके ५६ प्रकार बताए गए हैं तथा कलियुग में कृतिका प्रकार के यंत्र चालित विमान थे इनके २५ प्रकार बताए हैं । इनमें शकुन,रुक्म, हंस, पुष्कर, त्रिपुर आदि प्रमुख थे । उपर्युक्त वर्णन पढ़ने पर कुछ समस्याएँ व प्रश्न हमारे सामने आकर खडे+ होते हैं । समस्या यह है आज के विज्ञान की शब्दावली व नियमावली से हम परिचित हैं, परन्तु प्राचीन विज्ञान , जो संस्कृ त में अभिव्यक्त हुआ है , उसकी शब्दावली , उनका अर्थ तथा नियमावली हम नहीं जानते । अतः उनमें निहित रहस्य को अनावृत्त करना पड़ेगा । दूसरा , प्राचीन काल में गलत व्यक्ति के हाथ में विद्या न जाए , इस हेतु बात को अप्रत्यक्ष ढंग से , गूढ़ रूप में , अलंकारिक रूप में कहने की पद्धति थी । अतः उसको भी समझने के लिए ऐसे लोगों के इस विषय में आगे प्रयत्न करने की आवश्यकता है , जो संस्कृत भी जानते हों तथा विज्ञान भी जानते हों ।

विमान शास्त्र में वर्णित धातुएं – दूसरा प्रश्न उठता है कि क्या विमान शास्त्र ग्रंथ का कोई ऐसा भाग है जिसे प्रारंभिक तौर पर प्रयोग द्वज्ञरा सिद्ध किया जा सके । यदि कोई ऐसा भाग है , तो क्या इस दिशा में कुछ प्रयोग हुए हैं । क्या उनमें कुछ सफलता मिली है?

सौभाग्य से इन प्रश्नों के उत्तर हाँ में दिए जा सकते हैं । हैदराबाद के डॉ. श्रीराम प्रभु ने वैमानिक शास्त्र ग्रंथ के यंत्राधिकरण को देखा , तो उसमें वर्णित ३१ यंत्रों में कुछ यंत्रों की उन्होंने पहचान की तथा इन यंत्रों को बनाने वाली मिश्र धातुओं का निर्माण सम्भव है या नहीं , इस हेतु प्रयोंग करने का विचार उनके मन में आया । प्रयोग हेतु डॉ. प्रभु तथा उनके साथियों ने हैदराबाद स्थित बी. एम. बिरला साइंस सेन्टर के सहयोग से प्राचीन भारतीय साहित्य में वर्णित धातुएं , दर्पण आदि का निर्माण प्रयोगशाला में करने का प्रकल्प किया और उसके परिणाम आशास्पद हैं ।


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