नमस्ते - ধর্ম্মতত্ত্ব

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22 February, 2022

नमस्ते

 । ओ३म्॥

नमस्ते

नमस्ते तर्क की कसौटी पर


प्रत्येक देश, धर्म व जाति में कोई न कोई शब्द व विधि अभिवादन के रूप में प्रयोग की जाती है। अभिवादन का प्रयोग प्रत्येक देश, धर्म, सम्प्रदाय, मजहब और स्थानों पर काफी परिवर्तित देखने को मिलता है। इसका प्रयोग अतीत काल से होता आ रहा है, यथा प्रमाण


अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोऽपसेविन: । चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं, (नीति)


आज हमारे देश के तथाकथित पढ़े-लिखे स्नातकों को भी अभिवादन का यथार्थ ज्ञान नहीं है भी अभिवादन की त्रुटि युक्त विधि का प्रयोग करते हुए सर्वत्र दिखाई पड़ते हैं, जबकि शिष्टाचार प्रत्येक सभ्य समाज का एक अति आवश्यक अंग हैं। भारतीय संस्कृत साहित्य में सर्वत्र अभिवादन में नमस्ते का ही प्रयोग पाया जाता है क्योंकि जो भाव और गम्भीरता इस शब्द में है वह अन्य अभिवादनों में नहीं। नमस्ते शब्द "नमः 'और' ते" इन दो शब्दों से बना है नमः का अर्थ है नमना, झुकना, सिर नीचा करना और 'ते' का अर्थ है तुम्हारे लिए अतः नमस्ते शब्द पर कुछ गहराई से व्याख्या करने की जिज्ञासा पैदा हुई।

यदि हम अपनी सृष्टि की सबसे प्राचीन पुस्तक वेद को उठाकर देखें तो उसमें भी

नमस्ते रुद्र मन्नयवऽउतो तऽइषवे नमः

 बाहुभ्यामुत ते नमः ॥१॥ 

या ते रुद्र शिवा तनूरघोरा पापकाशिनी।

तयानस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्तामि चाकशीहि ॥ २ ॥

(यजुर्वेद अध्याय १६ मंत्र १-२)


नमस्ते शब्द लिखा हुआ मिलता है, इसके बाद यदि हम उपनिषद का पृष्ठ पलटें तो उसमें भी


जानकी वैदेहः कुर्याद उपसर्पन्नुवाच नमस्तेऽस्तु । 

के अनेकों प्रमाण उपलब्ध हैं।


इसके बाद रामायण काल में पहुँचते हैं वहां भी महर्षि याज्ञवल्क्य के आने पर महाराजा जनक ने उठकर प्रेमपूर्वक नमस्ते किया, यथा प्रमाण

सर्वथा च महाप्राज्ञः पूजाहेण सूपूजितः । गमिस्यामि नमस्तेऽतु मैत्रेणेक्षस्व चक्षुषा।।

(रामायण अयोध्या काण्ड सर्ग ५२ श्लोक १७) 

अर्थ-महर्षि वशिष्ठ ने विश्वामित्र का विधिपूर्वक आतिथ्य किया तथा विश्वामित्र ने कहा कि आपके आश्रम पर फल, फूल, मूल, दुग्ध, मधु द्वारा मेरा सत्कार किया गया, अतः अब मैं जाऊंगा मेरा नमस्ते लीजिए।


इसके अलावा शतपथ ब्राह्मण में महर्षि याज्ञवल्क्य की पत्नी गार्गी ने अपने पति को नमस्ते किया आगे महाभारत के अनुशासन पर्व में, हे गंगा पुत्र भीष्म में युधिष्ठिर हूँ आपको नमस्ते करता हूँ। इस तरह के अनेकों प्रमाण नमस्ते करने के हमारे शास्त्रों में भरे पड़े हैं। इसके बाद देवी भागवत, शिव पुराण, गरुड़ पुराण, वराह पुराण व तुलसीकृत श्रीरामचरित मानस के प्रथम काण्ड के आरम्भ में ही तुलसीदास ने भी सबको नमस्ते ही किया है, अन्य शास्त्रों व गीता में भी नमस्ते शब्द अनेकों बार आया है इसके अलावा हमारे पूर्वज राम, कृष्ण, वशिष्ठ, हनुमान, वाल्मीकि, विश्वामित्र इत्यादि ऋषि, महर्षि लोग अपने-अपने अभिवादनों में परस्पर नमस्ते का ही प्रयोग प्रायः करते व करवाते थे।


आधुनिक युग में ऋषि दयानन्द सरस्वती जो वेदों के पुनरोद्धारक व युग प्रवर्त्तक कहलाये, उन्होंने अपनी प्रमुख पुस्तक 'सत्यार्थ प्रकाश' में नमस्ते शब्द के लिए अनेकों ग्रन्थों से प्रमाण दिये व नमस्ते शब्द के प्रयोग पर अत्याधिक बल दिया, जिसमें उन्हें पर्याप्त सफलता भी मिली, वर्तमान समय में भी छोटे से लेकर बड़े-बड़े महाविद्यालयों, चिकित्सा महाविद्यालयों, अभियंत्रण महाविद्यालयों, कॉलेजों के गुरु शिष्य परस्पर नमस्ते ही करते हुए पाये जाते हैं।


सन् १९५३ ई० में जब भारत के प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू डलेश वार्ता के अवसर पर अमेरिका में फोटोग्राफरों से निरन्तर हाथ मिलाने के कारण थक गये तो कहा कि हमें भारतीय ढंग से अभिवादन करना चाहिए। इसके अलावा भारतीय राजदूतों द्वारा विदेशों में विभिन्न समारोहों के अवसरों पर सर्वत्र नमस्ते का ही प्रयोग होते हुए पाया जाता है।


भारत के प्रधानमंत्री जब रूस की यात्रा पर गये थे तो उनके स्वागतार्थ मार्ग में पट्टियों पर नमस्ते और स्वागतम् ही लिखा था, जब रूस के प्रधानमंत्री ख्रुश्चेव और प्रधान बुलगानिन भारत में आये थे तो उन्होंने सर्वत्र हाथ जोड़कर ही अभिवादन किया। जब अमेरिका में सर्व-धर्म सम्मेलन हुआ तब विचार हुआ कि किसी एक अभिवादन को सर्व-मान्यता देकर फिर उसका प्रयोग किया जाये क्योंकि वहाँ पर अनेकों देशों के अनेकों मतावलम्बी एकत्रित थे। फिर वहाँ पर उस समय अनेकों मतावलम्बियों ने अपने-अपने अभिवादनों की व्याख्या, प्रशंसा व विशेषताएँ स्पष्ट की। उसी समय वहाँ पर भारत के लब्ध प्रतिष्ठित वैदिक विद्वान पं. अयोध्या प्रसाद जी वैदिक रिसर्चस्कॉलर कोलकात्ता ने नमस्ते शब्द की विशेषताओं पर प्रकाश डाला और व्याख्या की जिसका परिणाम यह निकला कि यह नमस्ते शब्द वहां पर सभी को इतना प्रिय लगा कि सर्व सम्मति से अभिवादन के रूप केवल नमस्ते को ही सबके द्वारा अपनाया गया।


अतः नमस्ते शब्द के सही अर्थ को न समझकर अनभिज्ञ लोगों ने अर्थ का अनर्थ कर दिया है फलतः यह सृष्टि के समकालीन से चला आ रहा है। नमस्ते अभिवादन आंशिक रूप से दब गया इसके स्थान पर अभिवादन की दूषित परिपाटियों की बाढ़ों ने अपना प्रभाव बना लिया।


मध्यकालीन व्यक्तिवाचक साम्प्रदायिक अभिवादनों के कोई ठोस व तर्क संगत प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं जैसे-शिक्षितों, अशिक्षितों ग्रामीण व नगरीय लोगों में जय राम, राम राम, ढोंगी साधुओं ने जय सियाराम, जय गोपाल तथा राधे-राधे आदि अभिवादन प्रयोग करने का विशेष प्रचलन वर्तमान समय में भी है यदि इन राम और कृष्ण के अनुयायी तथाकथित साधुओं से यह प्रश्न किया जाए कि दशरथ, राम, कृष्ण, वशिष्ठ, विश्वामित्र इत्यादि राजे महाराजे अपने अभिवादन में किस शब्द का प्रयोग करते थे सप्रमाण उत्तर दो? तो ये तथाकथित विभिन्न अभिवादनों का प्रयोग करने वाले समस्त लोग तर्क संगत उत्तर देने में असमर्थ होकर निरुत्तरता के कटघरे में बन्द हो जाते हैं। जबकि जय श्री राम हमारा अभिवादन नहीं, अपितु रामायण कालीन सैनिक उद्घोष था।


जनमानस के अन्दर अभिवादन में राम राम, जय राम, राधेश्याम, जय गोपाल, सीताराम, जय माता की, सलाम, आदाबअर्ज, गुड नाइट, पाय लागू, जय भीम, पैदा करके अलगाववाद, प्रान्तीयता, साम्प्रदायिकता व जातिवाद को उभार कर युद्ध को जन्म दे सकता है।


वेदों में नमस्ते शब्द आया है, मनु महाराज के अनुसार वेद अखिलो धर्म मूलम् अर्थात् वेद धर्म का मूल आधार है। अतः नमस्ते ही अपनाओ यदि आप नमस्ते नहीं अपनाते हैं तो नास्तिको वेद विन्दक: अर्थात् वेद को न मानने वाले नास्तिक हैं। हरए नमस्ते हरए नमः (गुरुग्रन्थ साहब) हरि (परमेश्वर ) को नमस्ते है।


डॉ. राधाकृष्णन् के अनुसार राष्ट्रीय एकता ईट गारे छेनी हथौड़ी से नहीं बनाई जा सकती इसे व्यक्ति के हृदय और मस्तिक में मौन रूप से जातिगत, धर्मगत भाषागत विद्वेषों को समाप्त करके गढ़ा जाता है।


यदि वर्तमान प्रचलित अंग्रेजी भाषा का अभिवादन गुड मार्निंग मान लिया जाये और प्रातः उठकर अमेरिका में रह रहे अपने मित्र से गुड मार्निंग कहा जाए तो अमेरिका वाले हास्य व्यंग्य कर देंगे क्योंकि जब भारत में प्रातः होता है तब अमेरिका में सायं होता है। यदि भारत का व्यक्ति प्रातः अमेरिकावासी मित्र के लिए गुड नाइट कहता है तो यह सुनकर भारतीय हंसी कर देंगे। लेकिन मैकाले की शिक्षा पद्धति के समर्थक गुलाम भारतीयों ने भी तरह-तरह के अभिवादनों का प्रयोग सीख लिया है। ये भारतीय अंग्रेज भक्त भी सोते जागते गुड मार्निंग, गुड़ आफटर नून, गुड नाइट ही अलापते रहते हैं। अत: समस्त भ्रान्तियों को त्यागकर अभिवादन का उचित रूप “नमस्ते" ही अपनाना चाहिए। क्योंकि सबके मत-मतान्तरों का पोषक होने से व्यक्ति का मस्तिष्क बिना पेंदे वाली लुटिया की तरह जरा-सा इशारा पाने पर किसी भी तरफ लुड़क सकता है।


मानसिक दृढ़ता के अभाव में व्यक्ति की चहुंमुखी सोच कुण्ठित हो जाती है अत: यदि हम विभिन मतावलम्बियों के अभिवादनों का इसी प्रकार अनुकरण करके प्रचार प्रसार करते रहे तो समाज में भेदभाव ऊँच-नीच की खाई मिटाना असम्भव होगा।


इन मध्यकालीन अभिवादनों को ढोंगी, पेटू, स्वार्थियों गंजेड़ियों, भंगेड़ियों, दम्भियों, साम्प्रदायिकों व अल्पज्ञों ने चलाया तथा इसका अनुकरण अन्धभक्तों, बुजदिलों, राजनैतिक दुकानदारों ने गले तक उतारा। अतः हमें चाहिए कि हम अपने विचारों को दृढ़ बनायें और अभिवादनों को तर्क की कसौटी पर कसें जो अभिवादन खरा उतरे उसी को अपनायें क्योंकि अधोगामी विचार मन को चंचल, क्षुब्ध, संकीर्ण व कुण्ठित बनाते हैं


जबकि सद्विचारों में डूबे हुए मनुष्य को धरती स्वर्ग जैसी लगती है अर्थात् हमें चाहिए कि हम अपने अतीत भारत की श्रेष्ठता वाला अभिवादन नमस्ते ही अपनायें जिससे आत्मवत् सर्वभूतेषु व वसुधैव कुटुम्बकम् के महान आदर्श पर कीचड़ न पड़े और अपने श्रेष्ठ पूर्वजों पर ईश्वरत्व न थोपकर बल्कि उनके हम सच्चे अनुयायी बन सकें। यहां पर राष्ट्र कवि-मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियां पूरी तरह घटित हो जाती हैं


प्राचीन हो कि नवीन छोड़ो रूढ़ियां हो जो बुरी। बनकर विवेकी तुम दिखाओ हंस जैसी चातुरी ॥ किस भाँति जीना चाहिए किस भांति मरना चाहिए। सो सब हमें निज पूर्वजों से याद करना चाहिए ॥


करते उपेक्षा यदि न हम उस उच्चतम उद्देश्य की। तो आज यह अवनति नहीं होती हमारे देश की ॥ संसार अब जाने कि यदि हम आज हैं पिछड़े पड़े। तो कल बराबर और परसो विश्व के आगे खड़े ॥

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