।। ओ३म् ।।
• तुलसीदास जी की रामायण से अहिल्या के विषय में यह कथा प्रचलित हुई कि गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या ऋषि गौतम के शाप से "पत्थर की शिला बन गई" और श्रीराम जी ने उस शिला को पैर लगाया तो उनके चरणों की धूल को छूते ही वह पत्थर की शिला पुन: स्त्री के रुप में आकर स्वर्ग को उड गई, देखिये गौतम नारी शाप वश, उपल देह धरि धीर । चरण कमल रज चाहती, कृपा करहु रघुवीर ।।
ऋषि विश्वामित्र के नाम से यह वचन बनाया गया है कि गौतम ऋषि की पत्नी “अहिल्या" शाप के वश पत्थर की शिला बन गयी है, राम जी यह आपके चरणों की धूल चाहती है सो आप इस पर कृपा करिये ।
श्रीराम जी जब बनवास के लिए जा रहे थे, तो श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि तब गंगा को पार करने के लिए उन्हें नाव की आवश्यकता हुई देखिए तुलसीदास जी के ही शब्दों में
* माँगी नाव न केवट आना, कहा तुम्हार मर्म मैं जाना छुवत शिला भइ नारि सुहाई, पाहन ते न काठ कठिनाई ।। तरनिऊँ मुनिघरनी होइ जाई, बाट परइ मोरि नाव उडाइ ।। एहि प्रतिपालऊँ सब परिवारु, नहिं जानऊँ कछु और कबारु ।। जो प्रभु अवस पार जा चहहू।मोहि पद पद्म पखारन कहहू ।।-(तुलसीकृत रामायण)

अर्थात् श्रीराम जी नें नाव मंगाई, परन्तु मल्लाह नाव को नहीं लाया, उसने कहा कि मैंने आपका मर्म जान लिया है, कि -"चरण कमल रज कहं सब कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई ।।" आपके चरण कमल की धूलि को सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बनाने की औषधि है। उस धू को छूते ही पत्थर की शिला सुन्दर स्त्री बन गई पत्थर से काठ (लकडी) कठोर नहीं होता है । जब पत्थर की शिला स्त्री बन गई थी तो मेरी काठ की नाव स्त्री क्यों न बन जायेगी ? यह नाव भी ऋषि की पत्नी बन जायेगी, यह नाव भी अगर उड़ गई तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा, मेरे ऊपर तो डाका पड़ जायेगा, मैं तो इसी नाव से परिवार का पालन पोषण करता अन्य कोई काम-काज तो मैं जानता नहीं हूँ। इसलिए हे महाराज अगर आप इस गंगा के पार मेरी ही नाव में जाना चाहते हैं तो पहले मैं आपके पैर जल से धो लूं इसकी मुझे आज्ञा दीजिए, ताकि पैर धोने से आपके पैरों पर लगी हुई धूल साफ हो जाये और मेरी नाव उड़ने से बच जाये।
इस कथा से साफ पता चलता है कि श्रीराम जी के चरणो में शक्ति नहीं थी बल्कि उनके चरणों में लगी हुई धूल का यह चमत्कार था। इस पर कवि रहीम का दोहा भी है देखिये -
धूरि घरत गज शीश पर, कहु रहीम केहि काज । जेहि रज मुनि पत्नी तरी तेहि ढूंढंत गजराज ।।
किसी ने कवि रहीम से पूछा कि कहो रहीम यह हाथी अपने सिर पर धूल क्यों डालता है ? तो रहीम कवि ने कहा कि जिस धूल से गौतम मुनि की पत्नी अहिल्या तर गई थी, उसको यह हाथी ढूढंता फिरता है कि कहीं वह मिल जाए तो मैं भी उसको पाकर तर जाऊँ।
वाल्मीकीय रामायण में कही भी अहिल्या का पत्थर हो जाना और श्रीराम जी के चरणों की धूल छूत ही स्त्री बन जाना आदि नही है बल्कि हा इस निमित्त पाठ इस प्रकार है
विश्वामि॒ित्रं पुरस्कृत्य, आश्रमं प्रविवेश ह ददर्श च महाभागां, तपसा घौतितप्रभाम् राघवौस्तु तदा तस्याः पादौ जगृहतुर्मुदा पाघमर्ध्यतयातिथ्यं, चकार सु समाहिता ।। १२ । । ।। १३ । । ।। १७ ।। ।। १८ । ।
( वाल्मिीकीय रामायण बालकांड सर्ग४९)
राम, लक्ष्मण द्वारा विश्वामित्र जी को आगे करके गौतम ऋषि के आश्रम में प्रवेश करना
आश्रम में प्रवेश करने पर उन्होंने देखा कि महाभाग्यशालिनी अहिल्या अपनी तपस्या से दैदीप्यमान हो रही है। श्रीराम और लक्ष्मण ने बड़ी प्रसन्नता से अहिल्या के दोनों चरणों को स्पर्श किया, (छुआ) - (न कि श्रीराम जी ने अपने चरण अहिल्या से स्पर्श कराये अर्थात् छुवाये) अहिल्या ने बड़ी सावधानी के साथ उन दोनों भाइयों को आदरणीय अतिथि के रुप में अपनाया और पाघ (पैर) धोने को पानी अर्ध्य (मुंह धोने को पानी) तथा आचमन करने को पानी अर्पित करके उनका अतिथि सत्कार किया। वहां पत्थर की शिला होने अथवा राम का पैर लगने से उस स्त्री बन जाने आदि का वाल्मीकीय रामायण में संकेत मात्र भी नहीं हैं।
गौतम के शाप से अहिल्या पत्थर की शिला हो गयी, और श्रीरामजी के चरणो की धूल लगने से वह पुनः स्त्री बन गई, यह तो बाल्मीकीय रामायण में नहीं है बल्कि इसके विरूद्ध यह प्रकरण अवश्य मौजूद है देखिये - आपने रामायण के उद्धरण में पढ़ा ही है कि - अहिल्या तपस्या कर रही थी, और तप करने से उसमें बड़ा तेज आ गया था, यथा - "तपसा द्योतितप्रभा" उसमें तप करने से अदभुत ज्योति आ गई थी, श्रीराम जी ने उसके दर्शन किए और दोनों भाईयों (राम और लक्ष्मण) ने अहिल्या के चरण छूए ।
रामायण में अहिल्या और इन्द्र का जार कर्म (व्यभिचार) अवश्य लिखा है, परन्तु मैं समझता हूं कि- यह रामायण की कथा करने वालों नें अपनी ओर से मिला दिया है। मिलाने का कारण यह है
शतपथ ब्राह्मण में गौतम अहिल्या और इन्द्र की इस कथा व रूपकालंकार इस प्रकार लिखा है -
"अहिल्या का पति गौतम है और इन्द्र उसका जार है, देखिये
'रात्रिरहल्या कस्मादहर्दिनं लीयतेस्यां तस्माद्रात्रिरहल्योच्यते' अर्थात रात्रि अहिल्या है, दिन का नाम "अहः" है तथा "अहर्ल्या" “अहः” दिन उसमें लय हो जाता है । इसलिए रात्री का नाम “अहिल्या" है, तथा गौतम चन्द्रमा है। रात्रि में वह बहुत चलता-सा प्रतीत होता है और पृथ्वी के चारों ओर चन्द्रमा निरन्तर घूमता भी रहता है, इसलिए-“गच्छतीतिगौ” चलता है इससे चन्द्रमा “गो” है। बहुत चलता है इससे “गौतम" है। चन्द्रमा को रात्रि का पति कहा जाता है । इसलिए उसको "निशा-पति” अर्थात “निशा - रात्री चन्द्रमा का नाम राकेश भी है । “राका” रात्रि का भी नाम है तथा पूर्णमासी का भी ।
चन्द्रमा के बिना रात्रि ऐसे प्रतीत होती है जैसे विधवा। चन्द्रमा सहित रात्रि शोभायुक्त अर्थात सौभाग्यवती स्त्री-सी दिखाई देती है। अत: चन्द्रमा अर्थात् “गौतम", रात्रि अर्थात् “अहिल्या" का पति है ।
सूर्य “इन्द्र” है। सूर्य रात्रि को जीर्ण करता है। जीर्ण करना अर्थात् दुर्बल करना, कमजोर करना यह जार कर्म है। इसलिए इन्द्र अर्थात् सूर्य, अहिल्या अर्थात् रात्रि का जार है। सूर्य के उदय होने से रात्रि कमजोर होती-होती समाप्त भी हो जाती है। यह सुन्दर और वैज्ञानिक-रुपकालंकार है, इसको न समझ कर पुराणों में लिख दिया कि- "गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से इन्द्र नें जार कर्म अर्थात् व्यभिचार किया। रामायण में गौतम की पत्नी अहिल्या का ऐतिहासिक वर्णन आया तो उसके साथ ब्राह्ममण ग्रंथ के इस रुपकालंकार को जोड़कर इतिहास का नाश कर दिया और इन्द्र तथा अहिल्या को मिथ्या व्यभिचार का दोष लगा दिया।
इस तरह अर्थ के अनर्थ कर-करके हमारे कथा वाचकों एवं पौराणिकों ने हमारे सारे इतिहास का नाश किया हुआ है, रामायण के अनेकों स्थल ऐसे हैं जिनके बारे में मन घड़न्त कथाएं जोड़ जोड़ कर सारी वास्तविकता को ही समाप्त कर दिया है।
इसी तरह का यह भी एक प्रसंग था जिसका नीर-क्षीर विवेक आपके सामने किया गया है। आज विज्ञान का युग है। हर बात को तर्क की कसौटी पर कस कर ही देखा व परखा जाता है। अब वह जमाना नहीं है कि "पंडित जी महाराज ने कहा -मछली पेड़ पर चढ़ गई," और भक्तजन बोले कि "सत्य वचन महाराज"। इस की बात भ्रामक कथाएं पढ़-पढ़ कर आज का युवक इन ग्रन्थों को ही तिलांजली देने को तैयार हैं अत: हम सभी विद्वानों का कर्त्तव्य बन जाता है कि प्रत्येक बात को सही युक्तियुक्त उद्धृत करें। जिससे हमारे इतिहास तथा धार्मिक किसी तरह का दोष न आने पाये ।
हमारा कर्त्तव्य इस प्रकार के भ्रमों का निवारण करना है जिनके कारण हमारा इतिहास कलंकित हो रहा है। हमने रामायण के अन्य भी अनेकों प्रसंगो पर लेख लिखे हैं, विस्तृत जानकारी हेतु आप प्रकाशन से सम्पर्क स्थापित करें ।
निवेदकः अमर स्वामी सरस्वतो
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