ऋषि: - वसिष्ठ ऋषिःदेवता - रुद्रो देवताछन्दः - विराट् ब्राह्मी अनुष्टुप्,स्वरः - धैवतः
ত্র্যম্বকং যজামহে সিগন্ধিং পুষ্টিবর্ধনম্।
উরবারুকমিব বন্ধনান্মূত্যোর্মূক্ষীয় মাऽমৃতাত্।।
ত্র্যম্বকং যজামহে সিগন্ধিং পুষ্টিবর্ধনম্।
উরবারুকমিব বন্ধনান্মূত্যো র্মূক্ষীয় মামৃতাত্।।যজু০ ৩/৬০
पदार्थ -
हम लोग जो (सुगन्धिम्) शुद्ध गन्धयुक्त (पुष्टिवर्धनम्) शरीर, आत्मा और समाज के बल को बढ़ाने वाला (त्र्यम्बकम्) रुद्ररूप जगदीश्वर है, उसकी (यजामहे) निरन्तर स्तुति करें। इनकी कृपा से (उर्वारुकमिव) जैसे खर्बूजा फल पक कर (बन्धनात्) लता के सम्बन्ध से छूट कर अमृत के तुल्य होता है, वैसे हम लोग भी (मृत्योः) प्राण वा शरीर के वियोग से (मुक्षीय) छूट जावें (अमृतात्) और मोक्षरूप सुख से (मा) श्रद्धारहित कभी न होवें तथा हम लोग (सुगन्धिम्) उत्तम गन्धयुक्त (पतिवेदनम्) रक्षा करने हारे स्वामी को देने वाले (त्र्यम्बकम्) सब के अध्यक्ष जगदीश्वर का (यजामहे) निरन्तर सत्कारपूर्वक ध्यान करें और इसके अनुग्रह से (उर्वारुकमिव) जैसे खरबूजा पक कर (बन्धनात्) लता के सम्बन्ध से छूट कर अमृत के समान मिष्ट होता है, वैसे हम लोग भी (इतः) इस शरीर से (मुक्षीय) छूट जावें (अमुतः) मोक्ष और अन्य जन्म के सुख और सत्यधर्म के फल से (मा) पृथक् न होवें॥
भावार्थ - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्य लोग ईश्वर को छोड़कर किसी का पूजन न करें, क्योंकि वेद से अविहित और दुःखरूप फल होने से परमात्मा से भिन्न दूसरे किसी की उपासना न करनी चाहिये। जैसे खर्बूजा फल लता में लगा हुआ अपने आप पक कर समय के अनुसार लता से छूट कर सुन्दर स्वादिष्ट हो जाता है, वैसे ही हम लोग पूर्ण आयु को भोग कर शरीर को छोड़ के मुक्ति को प्राप्त होवें। कभी मोक्ष की प्राप्ति के लिये अनुष्ठान वा परलोक की इच्छा से अलग न होवें और न कभी नास्तिक पक्ष को लेकर ईश्वर का अनादर भी करें। जैसे व्यवहार के सुखों के लिये अन्न, जल आदि की इच्छा करते हैं, वैसे ही हम लोग ईश्वर, वेद, वेदोक्तधर्म और मुक्ति होने के लिये निरन्तर श्रद्धा करें॥
No comments:
Post a Comment
ধন্যবাদ