অগ্নিশ্চ মऽআপশ্চ মে বীরুধশ্চ মऽওষধয়শ্চ ऽ কৃষ্টপচ্যাশ্চ মেऽকৃষ্টপচ্যাশ্চ মে গ্রাম্যাশ্চ মে পশবऽ আরণ্যাশ্চ মে বিত্তশ্চ মে বিত্তিশ্চ মে ভূতঞ্চ মে ভূতিশ্চ মে যজ্ঞেন কল্পন্তাম্ ।।
पदार्थ -
(मे) मेरा (अग्निः) अग्नि (च) और बिजुली आदि (मे) मेरे (आपः) जल (च) और जल में होने वाले रत्न मोती आदि (मे) मेरे (वीरुधः) लता गुच्छा (च) और शाक आदि (मे) मेरी (ओषधयः) सोमलता आदि ओषधि (च) और फल-पुष्पादि (मे) मेरे (कृष्टपच्याः) खेतों में पकते हुए अन्न आदि (च) और उत्तम अन्न (मे) मेरे (अकृष्टपच्याः) जो जङ्गल में पकते हैं, वे अन्न (च) और जो पर्वत आदि स्थानों में पकने योग्य हैं, वे अन्न (मे) मेरे (ग्राम्याः) गांव मे हुए गौ आदि (च) और नगर में ठहरे हुए तथा (मे) मेरे (आरण्याः) वन में होने हारे मृग आदि (च) और सिंह आदि (पशवः) पशु (मे) मेरा (वित्तम्) पाया हुआ पदार्थ (च) और सब धन (मे) मेरी (वित्तिः) प्राप्ति (च) और पाने योग्य (मे) मेरा (भूतम्) रूप (च) और नाना प्रकार का पदार्थ तथा (मे) मेरा (भूतिः) ऐश्वर्य (च) और उस का साधन ये सब पदार्थ (यज्ञेन) मेल करने योग्य शिल्प विद्या से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों॥
भावार्थ - जो मनुष्य अग्नि आदि की विद्या से सङ्गति करने योग्य शिल्पविद्या रूप यज्ञ को सिद्ध करते हैं, वे ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं॥
No comments:
Post a Comment
ধন্যবাদ