যজুর্বেদ ১৮/১১ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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স্বাগতম

12 August, 2022

যজুর্বেদ ১৮/১১

 

বিন্তু চ মে বেদ্য চ মে ভূতং চ মে ভবিষ্যচ্চ মে সুগং চ মে সুপথ্য চ মऽঋদ্ধং চ মऽঋদ্ধিশ্চ ম কৃপ্ত চ মে কৃপ্তিশ্চ মে মস্তিশ্চ মে সুমতিশ্চ মে যজ্ঞেন কল্পন্তাম্ ।।

যজুর্বেদ ১৮/১১


पदार्थ -
(मे) मेरा (वित्तम्) विचारा हुआ विषय (च) और विचार (मे) मेरा (वेद्यम्) विचारने योग्य विषय (च) और विचारने वाला (मे) मेरा (भूतम्) व्यतीत हुआ विषय (च) और वर्त्तमान (मे) मेरा (भविष्यत्) होने वाला (च) और सब समय का उत्तम व्यवहार (मे) मेरा (सुगम्) सुगम मार्ग (च) और उचित कर्म (मे) मेरा (सुपथ्यम्) सुगम युक्ताहार-विहार का होना (च) और सब कामों में प्रथम कारण (मे) मेरा (ऋद्धम्) अच्छी वृद्धि को प्राप्त पदार्थ (च) और सिद्धि (मे) मेरी (ऋद्धिः) योग से पाई हुई अच्छी वृद्धि (च) और तुष्टि अर्थात् सन्तोष (मे) मेरा (क्लृप्तम्) सामर्थ्य को प्राप्त हुआ काम (च) और कल्पना (मे) मेरी (क्लृप्तिः) सामर्थ्य की कल्पना (च) और तर्क (मे) मेरा (मतिः) विचार (च) और पदार्थ-पदार्थ का विचार करना (मे) मेरी (सुमतिः) उत्तम बुद्धि तथा (च) अच्छी निष्ठा ये सब (यज्ञेन) शम, दम आदि नियमों से युक्त योगाभ्यास से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों॥

भावार्थ - जो शम आदि नियमों से युक्त संयम को प्राप्त योग का अभ्यास करते और ऋद्धि-सिद्धि को प्राप्त हुए हैं, वे औरों को भी अच्छे प्रकार ऋद्धि-सिद्धि दे सकते हैं॥

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