আদিত্য গর্ভং পয়সা সমঙ্ধি সহস্রস্য প্রতিমাং বিশ্বরূপম্।
পরিবৃঙ্ধি হরসা মাভি মꣳস্থাঃ শাতায়ুষং কৃণুহি চীয়মানঃ॥
ভাবার্থঃ হে সকল স্ত্রী-পুরুষ ! তোমরা সুগন্ধিত পদার্থের দ্বারা হোম করে সূর্যের প্রকাশ, জল এবং বায়ুকে শুদ্ধ করে রোগরহিত হয়ে শতবৎসর আযু বিশিষ্ট সন্তানের জন্ম দাও। যেমন বৈদ্যুতিক অগ্নি দ্বারা বানানো সূর্য়্যে রূপ যুক্ত পদার্থের দর্শন এবং পরিমাণ হয়, তেমন বিদ্যাযুক্ত সন্তান সুখ দেখায়, এতে কখনো অভিমানী হয়ে বিষয়াসক্তি তে বিদ্যা এবং আয়ুর বিনাশ করো না।
आ॒दि॒त्यम्। गर्भ॑म्। पय॑सा। सम्। अ॒ङ्धि॒। स॒हस्र॑स्य। प्र॒ति॒मामिति॑ प्रति॒ऽमाम्। वि॒श्वरू॑प॒मिति॑ वि॒श्वऽरू॑पम्। परि॑। वृ॒ङ्धि॒। हर॑सा। मा। अ॒भि। म॒ꣳस्थाः॒। श॒तायु॑ष॒मिति॑ श॒तऽआ॑युषम्। कृ॒णु॒हि॒। ची॒यमा॑नः ॥
स्वर रहित मन्त्र
आदित्यङ्गर्भम्पयसा समङ्धि सहस्रस्य प्रतिमाँ विश्वरूपम् । परि वृङ्धि हरसा माभि मँस्थाः शतायुषङ्कृणुहि चीयमानः ॥
आदित्यम्। गर्भम्। पयसा। सम्। अङ्धि। सहस्रस्य। प्रतिमामिति प्रतिऽमाम्। विश्वरूपमिति विश्वऽरूपम्। परि। वृङ्धि। हरसा। मा। अभि। मꣳस्थाः। शतायुषमिति शतऽआयुषम्। कृणुहि। चीयमानः॥
पदार्थ -
हे विद्वान् पुरुष! आप जैसे बिजुली (पयसा) जल से (सहस्रस्य) असंख्य पदार्थों की (प्रतिमाम्) परिमाण करनेहारे सूर्य के समान निश्चय करनेहारी बुद्धि और (विश्वरूपम्) सब रूपविषय को दिखानेहारे (गर्भम्) स्तुति के योग्य (आदित्यम्) सूर्य्य को धारण करती है, वैसे अन्तःकरण को (समङ्धि) अच्छे प्रकार शोधिये। (हरसा) प्रज्वलित तेज से रोगों को (परि) सब ओर से (वृङ्धि) हटाइये और (चीयमानः) वृद्धि को प्राप्त हो के (शतायुषम्) सौ वर्ष की अवस्था वाले सन्तान को (कृणुहि) कीजिये और कभी (मा) मत (अभिमंस्थाः) अभिमान कीजिये॥
भावार्थ - हे स्त्री-पुरुषो! तुम लोग सुगन्धित पदार्थों के होम से सूर्य्य के प्रकाश, जल और वायु को शुद्ध कर और रोगरहित होकर सौ वर्ष जीने वाले संतानों को उत्पन्न करो। जैसे विद्युत् अग्नि से बनाये हुए सूर्य्य से रूप वाले पदार्थों का दर्शन और परिमाण होता है, वैसे विद्या वाले सन्तान सुख दिखानेहारे होते हैं, इससे कभी अभिमानी होके विषयासक्ति से विद्या और आयु का विनाश मत किया करो॥
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