Yajurveda 38/27 - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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স্বাগতম

07 August, 2020

Yajurveda 38/27

 ऋषि: - दीर्घतमा ऋषिःदेवता - यज्ञो देवताछन्दः - पङ्क्तिःस्वरः - पञ्चमः


मयि॒ त्यदि॑न्द्रि॒यं बृ॒हन्मयि॒ दक्षो॒ मयि॒ क्रतुः॑।घ॒र्मस्त्रि॒शुग्वि रा॑जति वि॒राजा॒ ज्योति॑षा स॒ह ब्रह्म॑णा॒ तेज॑सा स॒ह॥२७॥

स्वर सहित पद पाठ

मयि॑। त्यत्। इ॒न्द्रि॒यम्। बृ॒हत्। मयि॑। दक्षः॑। मयि॑। क्रतुः॑ ॥ घ॒र्मः। त्रि॒शुगिति॑ त्रि॒ऽशुक्। वि। रा॒ज॒ति॒। वि॒राजेति॑ वि॒ऽराजा॑। ज्योति॑षा। स॒ह। ब्रह्म॑णा। तेज॑सा। स॒ह ॥२७ ॥


स्वर रहित मन्त्र

मयि त्यदिन्द्रियम्बृहन्मयि दक्षो मयि क्रतुः । घर्मस्त्रिशुग्वि राजति विराजा ज्योतिषा सह ब्रह्मणा तेजसा सह ॥


स्वर रहित पद पाठ

मयि। त्यत्। इन्द्रियम्। बृहत्। मयि। दक्षः। मयि। क्रतुः॥ घर्मः। त्रिशुगिति त्रिऽशुक्। वि। राजति। विराजेति विऽराजा। ज्योतिषा। सह। ब्रह्मणा। तेजसा। सह॥२७॥

 यजुर्वेद - अध्याय  38 मन्त्र  27


पदार्थ -
हे मनुष्यो! जैसे (विराजा) विशेषकर प्रकाशक (ज्योतिषा) प्रदीप्त ज्योति के (सह) साथ और (ब्रह्मणा, तेजसा) तीक्ष्ण कार्यसाधक धन के (सह) साथ (त्रिशुक्) कोमल, मध्यम और तीव्र दीप्तियोंवाला (घर्मः) प्रताप (विराजति) विशेष प्रकाशित होता है, वैसे (मयि) मुझ जीवात्मा में (बृहत्) बड़े (त्यत्) उस (इन्द्रियम्) मन आदि इन्द्रिय (मयि) मुझ में (दक्षः) बल और (मयि) मुझ में (क्रतुः) बुद्धि वा कर्म विशेषकर प्रकाशित होता है, वैसे तुम लोगों के बीच भी यह विशेषकर प्रकाशित होवे॥२७॥

भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो! जैसे अग्नि, विद्युत् और सूर्यरूप से तीन प्रकार का प्रकाश जगत् को प्रकाशित करता है, वैसे उत्तम बल, कर्म, बुद्धि, धर्म से संचित धन, जीता गया इन्द्रिय महान् सुख को देता है॥२७॥

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