য়েন কর্মাণ্যপসো মনীষিণো য়জ্ঞে কৃণ্বন্তি বিদথেষু ধীরাঃ।
য়দপূর্বম্ য়ক্ষমন্তঃ প্রজানাম্ তন্মে মনঃ শিবসঙ্কল্পমস্তু।।
येन॒ कर्मा॑ण्य॒पसो॑ मनी॒षिणो॑ य॒ज्ञे कृ॒ण्वन्ति॑ वि॒दथे॑षु॒ धीराः॑।
यद॑पू॒र्वं य॒क्षम॒न्तः प्र॒जानां॒ तन्मे॒ मनः॑ शि॒वस॑ङ्कल्पमस्तु॥
पदार्थ -
हे परमेश्वर वा विद्वन्! जब आपके सङ्ग से (येन) जिस (अपसः) सदा कर्म धर्मनिष्ठ (मनीषिणः) मन का दमन करनेवाले (धीराः) ध्यान करनेवाले बुद्धिमान् लोग (यज्ञे) अग्निहोत्रादि वा धर्मसंयुक्त व्यवहार वा योगयज्ञ में और (विदथेषु) विज्ञानसम्बन्धी और युद्धादि व्यवहारों में (कर्माणि) अत्यन्त इष्ट कर्मों को (कृण्वन्ति) करते हैं, (यत्) जो (अपूर्वम्) सर्वोत्तम गुण, कर्म, स्वभाववाला (प्रजानाम्) प्राणिमात्र के (अन्तः) हृदय में (यक्षम्) पूजनीय वा सङ्गत हो के एकीभूत हो रहा है, (तत्) वह (मे) मेरा (मनः) मनन-विचार करना रूप मन (शिवसङ्कल्पम्) धर्मेष्ट (अस्तु) होवे॥
भावार्थ - मनुष्यों को चाहिये कि परमेश्वर की उपासना, सुन्दर विचार, विद्या और सत्सङ्ग से अपने अन्तःकरण को अधर्माचरण से निवृत्त कर धर्म के आचरण में प्रवृत्त करें॥
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ধন্যবাদ