যজুর্বেদ ১৭/২ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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02 September, 2022

যজুর্বেদ ১৭/২

 इ॒मा मे॑ऽअग्न॒ऽइष्ट॑का धे॒नवः॑ स॒न्त्वेका॑ च॒ दश॑ च॒ दश॑ च श॒तं च॑ श॒तं च॑ स॒हस्रं॑ च स॒हस्रं॑ चा॒युतं॑ चा॒युतं॑ च नि॒युतं॑ च नि॒युतं॑ च प्र॒युतं॒ चार्बु॑दं च॒ न्यर्बुदं च समु॒द्रश्च॒ मध्यं॒ चान्त॑श्च परा॒र्द्धश्चै॒ता मे॑ऽअग्न॒ऽइष्ट॑का धे॒नवः॑ सन्त्व॒मु॒त्रा॒मुष्मिँ॑ल्लो॒के॥

पदार्थ -
हे (अग्ने) विद्वन्! जैसे (मे) मेरी (इमाः) ये (इष्टकाः) इष्ट सुख को सिद्ध करनेहारी यज्ञ की सामग्री (धेनवः) दुग्ध देने वाली गौओं के समान (सन्तु) होवें, आप के लिये भी वैसी हों। जो (एका) एक (च) दशगुणा (दश) दश (च) और (दश) दश (च) दश गुणा (शतम्) सौ (च) और (शतम्) सौ (च) दशगुणा (सहस्रम्) हजार (च) और (सहस्रम्) हजार (च) दश गुणा (अयुतम्) दश हजार (च) और (अयुतम्) दश हजार (च) दश गुणा (नियुतम्) लाख (च) और (नियुतम्) लाख (च) दश गुणा (प्रयुतम्) दश लाख (च) इसका दश गुणा क्रोड़, इसका दश गुणा (अर्बुदम्) दशक्रोड़ इस का दश गुणा (न्यर्बुदम्) अर्ब (च) इसका दश गुणा खर्ब, इसका दश गुणा निखर्ब, इसका दश गुणा महापद्म, इसका दश गुणा शङ्कु, इसका दश गुणा (समुद्रः) समुद्र (च) इसका दश गुणा (मध्यम्) मध्य (च) इसका दश गुणा (अन्तः) अन्त और (च) इसका दश गुणा (परार्द्धः) परार्द्ध (एताः) ये (मे) मेरी (अग्ने) हे विद्वन्! (इष्टकाः) वेदी की र्इंटें (धेनवः) गौओं के तुल्य (अमुष्मिन्) परोक्ष (लोके) देखने योग्य (अमुत्र) अगले जन्म में (सन्तु) हों, वैसा प्रयत्न कीजिये॥

যজুর্বেদ ১৭/২

भावार्थ - जैसे अच्छे प्रकार सेवन की हुई गौ दुग्ध आदि के दान से सब को प्रसन्न करती हैं, वैसे ही वेदी में चयन की हुई ईटें वर्षा की हेतु हो के वर्षादि के द्वारा सब को सुखी करती हैं। मनुष्यों को चाहिये कि एक संख्या को दशवार गुणने से दश (१०), दश को दश बार गुणने से सौ (१००), उसको दश बार गुणने से हजार (१०००), उसको दश बार गुणने से दस हजार (१०,०००), उसको दश वार गुणने से लाख (१,००,०००), उसको दश बार गुणने से दश लाख (१०,००,०००), इसको दश वार गुणने से क्रोड (१,००, ००,०००), इसको दश वार गुणने से दश क्रोड़ (१०,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से अर्ब (१,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश अर्ब (१०,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से खर्ब (१,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश खर्ब (१०,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से नील (१,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश नील (१०,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से पद्म (१,००,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश पद्म (१०,००,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से एक शङ्ख (१,००,००,००,००,००,००,००,०००), इसको दश वार गुणने से दश शङ्ख (१०,००,००,००,००,००,००,००,०००) इन संख्याओं की संज्ञा पड़ती हैं। ये इतनी संख्या तो कहीं, परन्तु अनेक चकारों के होने से और भी अङ्कगणित, बीजगणित और रेखागणित आदि की संख्याओं को यथावत् समझें। जैसे भूलोक में ये संख्या हैं, वैसे अन्य लोकों में भी हैं, जैसे यहां इन संख्याओं से गणना की और कारीगरों से चिनी हुई ईटें घर के आकार हो शीत, उष्ण, वर्षा और वायु आदि से मनुष्यादि की रक्षा कर आनन्दित करती हैं, वैसे ही अग्नि में छोड़ी हुई आहुतियां जल, वायु और ओषधियों के साथ मिल के सब को आनन्दित करती हैं॥

ইমা মেऽঅগ্নऽইষ্টকা ধেনবঃ সন্ত্বেকা চ দশ চ দশ চ
শতম্ চ শতম্ চ সহস্রম্ চ সহস্রম্ চায়ুতম্ চ চায়ুতম্
নিয়ুতম্ চ নিয়ুতম্ চ প্রয়ুতম্ চার্বুদম্ চ ন্যর্বুদম্ চ
সমুদ্রশ্চ মধ্যম্ চান্তশ্চ পরার্দ্ধশ্চৈতা মেऽঅগ্নऽইষ্টকা
ধেনবঃ সন্ত্বমুত্রামুষ্মিঁল্লোকে।। (যজুর্বেদ ১৭|২)


অর্থাৎ - মানুষের উচিত যে, এক সংখ্যাকে দশবার গুণ দ্বারা দশ -
(১০), দশকে দশবার গুণ দ্বারা শত
(১০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা সহস্র
(১,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা দশ সহস্র
(১০,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা লক্ষ
(১,০০,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা দশ লক্ষ (১০,০০,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা কোটি (১,০০,০০,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা দশ কোটি (১০,০০,০০,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা অর্ব (১,০০,০০,০০,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা দশ অর্ব (১০,০০,০০,০০,০০০), তাকে দশবার দ্বারা গুণ দ্বারা খর্ব (১,০০,০০,০০,০০,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা দশ খর্ব (১০,০০,০০,০০,০০,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা নীল (১,০০,০০,০০,০০,০০,০০০) তাকে দশবার গুণ দ্বারা দশ নীল (১০,০০,০০,০০,০০,০০,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা এক পদ্ম (১,০০,০০,০০,০০,০০,০০,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা দশ পদ্ম (১০,০০,০০,০০,০০,০০,০০,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা এক শঙ্খ (১,০০,০০,০০,০০,০০,০০,০০,০০০), তাকে দশবার গুণ দ্বারা দশ শঙ্খ (১০,০০,০০,০০,০০,০০,০০,০০,০০০) এই সংখ্যাগুলোর সংজ্ঞা করা। এই এত সংখ্যা তো বলা হয়েছে কিন্তু অনেক চকারের হওয়ায় আরও অংকগণিত, বীজগণিত আর রেখাগণিত আদির সংখ্যাকে যথাযথ বুঝে নাও। যেরকম ভূ-লোকে এই সংখ্যা রয়েছে, ঠিক সেরকম অন্য লোকেতেও রয়েছে, যেরকম এখানে এই সংখ্যার দ্বারা গণনা করে আর কারিগর দ্বারা বেছে নেওয়া ইটে ঘরের আকার হওয়া শীত, উষ্ণ, বর্ষা আর বায়ু আদি থেকে মনুষ্যাদির রক্ষা করে আনন্দিত করছে, সেরকমই অগ্নিতে দেওয়া আহুতি জল, বায়ু আর ঔষধির সঙ্গে মিশ্রিত হয়ে সকলকে আনন্দিত করে।।২।। (মহর্ষি দয়ানন্দ ভাষ্য)

বেদ থেকে নিয়েই "সূর্য সিদ্ধান্ত" আদিতেও এই সংখ্যারই বর্ণনা করা হয়েছে -
একম্ দশ শতম্ চৈব সহস্রময়ুতম্ তথা।
লক্ষম্ চ নিয়ুতম্ চৈব কোটিরর্বুদমেব চ।।
বৃন্দম্ খর্বো নিখর্বশ্চ সঙ্গখঃ পদ্মশ্চ সাগরঃ।
অন্ত্যম্ মধ্যম্ পরার্ধশ্চ দশবৃদ্ধ্যা য়থাক্রমম্।।
এই দুই শ্লোকের শব্দে নাম দেখলে জানা যায় যে যজুর্বেদ মন্ত্রকেই কিছু সরল সংস্কৃতে লেখা হয়েছে। এইভাবে যজুর্বেদে গণিতের দুই প্রকারের সংখ্যার আবশ্যকতা বলা হয়েছে।
• প্রথম - ১,৩,৫,৭,৯,১১,১৩,১৫,১৭,১৯ থেকে ৩৩ পর্যন্ত তথা ক্রম হতে। এই মন্ত্রে গুণন, ভাগ, বর্গ, বর্গমূল, ঘন, ঘনমূল, ভাগজাতি, প্রভাগজাতি আদি যা গণিতের ভেদ রয়েছে, সেটা য়োগ আর অন্তর থেকেই উৎপন্ন হয়, এটা গণিতের গূঢ় বিদ্যা দেওয়া হয়েছে। (যজুর্বেদ ১৮|২৪)

एका॑ च मे ति॒स्रश्च॑ मे ति॒स्रश्च॑ मे॒ पञ्च॑ च मे॒ पञ्च॑ च मे स॒प्त च॑ मे स॒प्त च॑ मे॒ नव॑ च मे॒ नव॑ च म॒ऽएका॑दश च म॒ऽएका॑दश च मे॒ त्रयो॑दश च मे॒ त्रयो॑दश च मे॒ पञ्च॑दश च मे॒ पञ्च॑दश॒ च मे स॒प्तद॑श च मे स॒प्तद॑श च मे॒ नव॑दश च मे॒ नव॑दश च मऽएक॑विꣳशतिश्च म॒ऽएक॑विꣳशतिश्च मे॒ त्रयो॑विꣳशतिश्च मे त्रयो॑विꣳशतिश्च मे॒ पञ्च॑विꣳशतिश्च मे॒ पञ्च॑विꣳशतिश्च मे स॒प्तवि॑ꣳशतिश्च मे स॒प्तवि॑ꣳशतिश्च मे॒ नव॑विꣳशतिश्च मे॒ नव॑विꣳशतिश्च म॒ऽएक॑त्रिꣳशच्च म॒ऽएक॑त्रिꣳशच्च मे॒ त्रय॑स्त्रिꣳशच्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥-যজুর্বেদ ১৮|২৪

• দ্বিতীয় - ৪,৬,৮,১২,১৬,২০,২৪,২৮,৩২,৩৬,৪০,৪৪,৪৮ তথা ক্রম হতে। এই মন্ত্রে সম সংখ্যার দ্বারা গণিতের অনেক ধরনের বিদ্যাকে শেখানো হয়েছে। (যজুর্বেদ ১৮|২৫)

चत॑स्रश्च मे॒ऽष्टौ च॑ मे॒ऽष्टौ च॑ मे॒ द्वाद॑श च मे॒ द्वाद॑श च मे॒ षोड॑श च मे॒ षोड॑श च मे विꣳश॒तिश्च॑ मे विꣳश॒तिश्च॑ मे॒ चतु॑र्विꣳशतिश्च मे॒ चतु॑र्विꣳशतिश्च मे॒ऽष्टावि॑ꣳशतिश्च मे॒ऽष्टावि॑ꣳशतिश्च मे॒ द्वात्रि॑ꣳशच्च मे॒ द्वात्रि॑ꣳशच्च मे॒ षट्त्रि॑ꣳशच्च मे॒ षट्त्रि॑ꣳशच्च मे चत्वारि॒ꣳशच्च॑ मे चत्वारि॒ꣳशच्च मे॒ चतु॑श्चत्वारिꣳशच्च मे॒ चतु॑श्चत्वारिꣳशच्च मेऽष्टाच॑त्वारिꣳशच्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥-যজুর্বেদ ১৮|২৫

এই মন্ত্র থেকেই অনিশ্চিত তথা অসংখ্যাতের মান বের করার জন্য বীজগণিতের বিদ্যা সংকেতের (অ+ক, অ-ক, অ÷ক) দ্বারা বের হয়। এইভাবে বেদ দ্বারা রেখা গণিত সম্বন্ধিত মন্ত্র তৃতীয় অধ্যায়ে আপনারা পড়েছেন। মহর্ষি দয়ানন্দ তো এই দুই মন্ত্র থেকে সব গণিতের বিদ্যা শেখার কথা বলতেন। ওনার কথা সেসময় সিদ্ধ হয় যখন বৈদিক মন্ত্রের দ্বারা বৈদিক গণিত বের হয় যা অত্যন্ত সরলতার সঙ্গে গূঢ় তথ্য শেখায়। আজ অনেক শিক্ষণ সংস্থানে বৈদিক গণিতকে স্বীকার করা হয়েছে কারণ এটি সময়কে বাঁচায়। আসলে, যে বৈদিক গণিত আজ বিশ্বের কাছে আশ্চর্যের কেন্দ্র সেটা তো আমাদের প্রাচীন আচার্য্যদের গণিতের বিদ্যার একটা ছোট্ট উদাহরণ মাত্র। হাজার হাজার গ্রন্থ লুপ্ত হওয়ার পরেও সূর্য সিদ্ধান্ত, লীলাবতী, আর্যভট্ট, সিদ্ধান্ত শিরোমণির মতো গ্রন্থ দ্বারা প্রাচীন গণিত, জ্যোতিষ তথা সৃষ্টি বিজ্ঞানের সর্বশ্রেষ্ঠ পরম্পরাকে জানা যেতে পারে।
সারা বিশ্ব মানে যে, বেদই হল সংসারের প্রাচীন পুস্তক আর বেদের মধ্যে গণিতের গূঢ় জ্ঞান দেওয়া হয়েছে তথা অনেক বড় বড় সংখ্যার মানও দেওয়া হয়েছে। এতকিছু হওয়ার পরেও বুদ্ধির শত্রু এটা প্রচার করেছে যে, ভারত কেবল ০ (শূন্য) এর জ্ঞান দিয়েছে তাও আবার শত বছর পূর্বে। এত বড় মিথ্যা লোকের দ্বারা বলা হয়েছে। কেন? এর কারণটি খুবই সহজ যে, যদি সংসারকে বলে দেওয়া হয় যে প্রত্যেক বিদ্যা সংসারের প্রাচীন সংস্কৃত গ্রন্থের মধ্যে আগে থেকেই ছিল তথা ভারতীয় বিদ্বান তারাও জানতো তাহলে বর্তমান বৈজ্ঞানীকদের উপর প্রশ্ন উঠতো যে, এনারা কোন আবিষ্কারটি করেছে?
যদি এই বিষয়ে আমি আমার নিজের মত দেই তবে নিশ্চিত রূপে বলবো যে, প্রাচীন সাহিত্যে সৃষ্টির সব নিয়ম, গণিত বিদ্যা আদি বিস্তারে দেওয়া আছে এরজন্য এর শ্রেয় তাদেরই প্রতি হওয়া উচিত। শেষ প্রায় ১৫০০ বছরের ভারতীয় ইতিহাস করুণ অবস্থার মাঝে রাজনৈতিক পরিস্থিতির সঙ্গে কেটেছে এইজন্য প্রত্যেক বিদ্যা থিওরী রূপে হওয়ার পরেও ব্যবহারিক (Practical) জ্ঞান উন্নতি করতে পারেনি। এরজন্য ধন, সাধন, রাজা, ব্যবস্থা, তথা সমাজের অনুকূলতা আদি উপলব্ধই হতে পারেনি। পরিণামস্বরূপ ইউরোপের মধ্যে ধীরে ধীরে এই থিওরী থেকে প্র্যাক্টিকাল পরীক্ষণ হওয়া প্রারম্ভ হয় আর ভিন্ন ভিন্ন পদার্থ হওয়া শুরু হয়। এই কাজের জন্য সেসকল ইউরোপ আদি পাশ্চাত্য দেশের বৈজ্ঞানিকদের শ্রেয় দেওয়া উচিত। আমি আগেই বলেছি যে, বিজ্ঞান আর বৈজ্ঞানিক সমস্ত সংসারের লাভের জন্য হয়ে থাকে।
প্রাচীন শাস্ত্রের গণিত জ্ঞানের উপর প্রফেসর ম্যাকডোনেল লিখেছেন যে -
"The great fact that the Indians invented the numerical figures used all over the world. (A.A. Macdonell, 'A History of Sanskrit Literature', p.424)
অর্থাৎ - ভারতীয়রাই সারা বিশ্বে উপয়োগ কারক সংখ্যাত্মক পরিসংখ্যানের আবিষ্কার করেছে।
গণিত বিদ্যা প্রাপ্ত হলে পরেই ব্রহ্মাণ্ডের অনেক গূঢ় রহস্যের সমাধান করা যেতে পারে। প্রাচীন শাস্ত্রের মধ্যে উচ্চ গণিতের বিদ্যা ছিল এই কারণে গ্রহ, উপগ্রহ, সূর্য, চন্দ্র, পৃথ্বী আদির সঙ্গে সম্বন্ধিত সৃষ্টির নিয়মেরও উচ্চ জ্ঞান উপলব্ধ ছিল। জ্যোতিষ বিদ্যায় (গ্রহ-নক্ষত্রের জ্ঞানে) ভারতে অনেক উন্নতি করেছিল। ভারতে প্রাচীন জ্যোতিষের উপর অনেক গ্রন্থ উপলব্ধ রয়েছে। আর্যভট্ট তো বৈদিক জ্যোতিষ দ্বারা বিভিন্ন গ্রহের সূর্য থেকে দূরত্বও মেপেছেন যা বর্তমান সংখ্যার মাপের সঙ্গে মিলে যায়।
ভারতীয় জ্যোতিষের প্রাচীনতার উপর বিদেশী বিদ্বান লিখেছেন যে -
"Astronomy of the Hindus has formed the subject of excessive admiration. As pointed out by Mr. Weber - Astronomy was practiced in India as early as 2780 B.C." (Acharya Vaidyanath Shastri, Science in the Vedas, 1970, p.187)
ভাবুন একবার, যেখানে ইউরোপে আজ থেকে ৩৫০ বছর পূর্ব পর্যন্তও খগোল বিজ্ঞানের মতো বিষয়ের উপর শোধ করার কারণে বৈজ্ঞানিকদের কারাগারে বন্দী করে দেওয়া হত অথবা মেরে পর্যন্ত ফেলা হত (পুস্তক - गैलीलियों पर अत्याचार), সেইখানে ভারতে আজ থেকে ৪৮০০ বছর পূর্বে খগোল বিজ্ঞানের উপর শোধ হচ্ছিল। বিভিন্ন গ্রহের গতি, গ্রহণ লাগা, গ্রহের ঘূর্ণায়মান, পৃথিবীর পরিধি তথা ব্যাস, প্রকাশ নিয়ে সম্বন্ধিত জ্ঞান আদি প্রত্যেক বিষয় বেদে তথা প্রাচীন শাস্ত্রের মধ্যে রয়েছে।
প্রসিদ্ধ পারসী বিদ্বান ফর্দুন লিখেছেন যে, "The Veda is a book of knowledge and wisdom, comprising the book of nature, the book of religion, the book of prayers, the book of morals and so on. The word 'Veda' means wit, wisdom, knowledge and truly the Veda is condensed wit, wisdom and knowledge." (Philosophy of Zoroastrianism and comparative study of Religion)
অর্থাৎ - বেদ হল জ্ঞানের পুস্তক যেখানে প্রকৃতি, ধর্ম, প্রার্থনা, সদাচার ইত্যাদির বিষয় সম্মিলিত রয়েছে। বেদের অর্থ হল জ্ঞান আর বেদে সকল প্রকারের জ্ঞান-বিজ্ঞান উপস্থিত রয়েছে।
দুর্ভাগ্যবশতঃ আজ ভারতের অশিক্ষিত লোকেদের কিছু গুরু ঘান্টাল জ্যোতিষের নামে ভয় দেখিয়ে ঠকিয়ে থাকে। জ্যোতিষকে হাত দেখা, কুণ্ডলী দেখা, মুখ দেখে ভবিষ্দ্বাণী বলার বিদ্যা বলে দেখানো হচ্ছে। কোথায় জ্যোতিষ দ্বারা ব্রহ্মাণ্ডের রহস্য জানা যেত আর এখন কোথায় জ্যোতিষের নামে ভালো মন্দ গ্রহের নাম করে লোকেদের মূর্খ বানানো হচ্ছে। এই বিষয়ে আমার কয়েক ঘন্টার ব্যাখ্যান উপলব্ধ আছে। (https://youtu.be/LH902nnLBsg)

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