ऋषि: - प्रस्कण्वः काण्वःदेवता - सूर्यःछन्दः - गायत्रीस्वरः - षड्जःकाण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
প্রত্যঙ্ দেবানাং বিশঃ প্রত্যঙ্ঙুদেষি মানুষান্।
প্রত্যঙ্ বিশ্বꣳ স্বর্দৃশো॥
শ্লেষালঙ্কারযুক্ত মন্ত্রে বলা হয়েছে সূর্য যেমন সমস্ত পদার্থকে নিজ কিরণ দ্বারা প্রকাশিত করে, তেমন জগদীশ্বর সমস্ত চেতন-অবচেতনকে প্রকাশিত করেন এবং সকলের হৃদয়ে জ্ঞান প্রকাশ সঞ্চারিত করেন॥
प्र꣣त्य꣢ङ् दे꣣वा꣢नां꣣ वि꣡शः꣢ प्र꣣त्य꣡ङ्ङुदे꣢꣯षि꣣ मा꣡नु꣢षान् ।
प्र꣣त्य꣢꣫ङ् विश्व꣣꣬ꣳ स्व꣢꣯र्दृ꣣शे꣢ ॥
-(कौथुम) पूर्वार्चिकः प्रपाठक 6; अर्ध-प्रपाठक 3; दशतिः 5; मन्त्र 10
पदार्थ -
हे परमात्मारूप सूर्य ! आप (देवानाम्) विद्या के प्रकाशक आचार्यों की (विशः) प्रजाओं अर्थात् पढ़े हुए स्नातकों के (प्रत्यङ्) अभिमुख होते हुए और (मानुषान्) अन्य मननशील मनुष्यों के (प्रत्यङ्) अभिमुख होते हुए (उदेषि) उनके अन्तःकरणों में प्रकट होते हो और (विश्वम्) सभी वर्णाश्रमधर्मों का पालन करनेवाले जनों के (प्रत्यङ्) अभिमुख होते हुए आप (दृशे) कर्तव्याकर्तव्य को देखने के लिए (स्वः) ज्ञानरूप ज्योति प्रदान करते हो ॥ भौतिक सूर्य भी (देवानां विशः) पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश रूप देवों की प्रजाओं मिट्टी, पत्थर, पर्वत, नदी, वृक्ष, वनस्पति आदियों के (प्रत्यङ्) अभिमुख होता हुआ और (मानुषान्) मनुष्यों के (प्रत्यङ्) अभिमुख होता हुआ उदय को प्राप्त होता है और (विश्वम्) समस्त सोम, मङ्गल, बुध, बृहस्पति आदि ग्रहोपग्रहों के (प्रत्यङ्) अभिमुख होता हुआ (दृशे) हमारे देखने के लिए (स्वः) ज्योति प्रदान करता है ॥१०॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। ‘प्रत्यङ्’ की आवृत्ति में लाटानुप्रास है ॥१०॥आचार्य रामनाथ वेदालंकार
भावार्थ -
जैसे सूर्य सब पदार्थों को अपनी किरणों से प्राप्त होकर प्रकाशित करता है, वैसे ही जगदीश्वर समस्त चेतन-अचेतनों को प्रकाशित करता है और सबके हृदय में ज्ञान-प्रकाश को सञ्चारित करता है ॥१०॥
टिप्पणीः -
१. ऋ० १।५०।५, अथ० १३।२।२० ऋषिः ब्रह्मा, देवता रोहित आदित्यः। अथ० २०।४७।१७। अथर्ववेदे उभयत्र ‘मानुषान्’ इत्यत्र ‘मानुषीः’ इति पाठः। २. दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिमम् ऋग्भाष्ये जगदीश्वरपक्षे व्याख्यातवान्। एष च तत्कृतो भावार्थः—“यत ईश्वरः सर्वव्यापकः सकलान्तर्यामी समस्तकर्मसाक्षी वर्तते तस्मादयमेव सर्वैः सज्जनैरुपासनीयोऽस्ति” इति।
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