ঋগ্বেদ ৭/১০০/১ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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স্বাগতম

06 October, 2022

ঋগ্বেদ ৭/১০০/১

ऋषि: - वसिष्ठःदेवता - विष्णुःछन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्स्वरः - धैवतः

 নূ মর্তো দয়তে সনিয্যন্যো বিষ্ণব উরুগায়য় দাশৎ।

প্র যঃ সত্রাচা মনসা যজাত এতাবন্তং নর্যমাবিবাসাৎ ঋগ্বেদ ৭।১০০।১

_পরমাত্মাপ্রাপ্তির জন্য সর্বপ্রথম জিজ্ঞাসা অর্থাৎ প্রবল ইচ্ছা উৎপন্ন হওয়া আবশ্যক। তদন্তর যে পুরুষ নিষ্কপটভাবে পরমাত্মপরায়ণ হন, ঐ পুরুষের পরমাত্মা সাক্ষাৎকার অর্থাৎ যথার্থ জ্ঞান অবশ্যই হয়ে থাকে। [আর্যমুনিকৃত ভাষ্য থেকে]

पदार्थ -
(यः) जो पुरुष (उरुगायाय) अत्यन्त भजनीय (विष्णवे) व्यापक परमात्मा की (सनिष्यन्) प्राप्ति के लिये इच्छा (दशत्) करते हैं, (नु) शीघ्र ही वे मनुष्य उसको (दयते) प्राप्त होते हैं और जो (सत्राचा) शुद्ध मन से (यजाते) उस परमात्मा की उपासना करता है, वह (एतावन्तं, नर्य्यं) उक्त परमात्मा का जो सब प्राणिमात्र का हित करनेवाला है (आविवासात्) अवश्यमेव प्राप्त होता है ॥

पदार्थः -
(यः, मर्तः) यो जनः (उरुगायाय) अतिभजनीयाय (विष्णवे) व्यापकायेश्वराय (सनिष्यन्) कामयमानो (दाशत्) प्रमाणं करोति तमेव, (नु) शीघ्रं स नरः (दयते) प्राप्नोति यश्च (सत्राचा मनसा) शुद्धमनसा (यजाते) तं समर्चेत् (एतावन्तम्, नर्यम्) सर्वप्रणेतारं सः (आविवासात्) प्राप्नोत्येव ॥

भावार्थ - परमात्मप्राप्ति के लिये सबसे प्रथम जिज्ञासा अर्थात् प्रबल इच्छा उत्पन्न होनी चाहिये। तदनन्तर जो पुरुष निष्कपटभाव से परमात्मपरायण होता है, उस पुरुष को परमात्मा का साक्षात्कार अर्थात् यथार्थ ज्ञान अवश्यमेव होता है ॥-ऋग्वेद भाष्य (आर्यमुनि) 

ঋগ্বেদ ৭/১০০/১


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