ऋषि: - प्रजापतिर्ऋषिःदेवता - सविता देवताछन्दः - पिपीलिकामध्या निचृदगायत्रीस्वरः - षड्जः
দেবস্য সবিতুমতিমাসবং বিশ্বদেব্যম্ ।
ধিয়া ভগং মনামহে ৷৷
दे॒वस्य॑ सवि॒तुर्म॒तिमा॑स॒वं वि॒श्वदे॑व्यम्। धि॒या भगं॑ मनामहे॥
পদার্থ :- হে মনুষ্যগণ ! যেমন আমরা (সবিতুঃ) সকল ঐশ্বর্য্য এবং (দেবস্য) সমস্ত সুখদাতা পরমাত্মার নিকট হইতে (মতিম্) বুদ্ধি এবং (আসবম্) সমস্ত ঐশ্বর্য্যের হেতু প্রাপ্ত হইয়া সেই (ধিয়া) বুদ্ধি দ্বারা সমস্ত (বিশ্বদেব্যম্) সর্ব বিদ্বানদিগের জন্য হিতকারক (ভগম্) উত্তম ঐশ্বৰ্য্যকে (মনামহে) যাচনা করি, সেইরূপ তোমরাও যাচনা কর ৷৷১৪ ৷৷
ভাবার্থ :- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে। সকল মনুষ্যের উচিত যে, পরমেশ্বরের উপাসনা দ্বারা উত্তম বুদ্ধি প্রাপ্ত হইয়া তদ্দ্বারা পূর্ণ ঐশ্বর্য্য বিধান করিয়া সকল প্রাণীদের হিতকে সম্যক্ সিদ্ধ করিবে ॥
अन्वयः - हे मनुष्याः! यथा वयं सवितुर्देवस्य परमात्मनः सकाशान्मतिमासवं च प्राप्य तया धिया सर्वं विश्वदेव्यं भगं मनामहे तथा यूयमपि कुरुत॥१४॥
पदार्थः -
(देवस्य) सकलसुखप्रदातुः (सवितुः) सकलैश्वर्य्यप्रदातुः (मतिम्) प्रज्ञााम् (आसवम्) सकलैश्वर्य्यहेतुम् (विश्वदेव्यम्) विश्वेभ्यो देवेभ्यो हितम् (धिया) प्रज्ञया (भगम्) उत्तमैश्वर्य्यम् (मनामहे) याचामहे॥१४॥
पदार्थ -
हे मनुष्यो! जैसे हम लोग (सवितुः) सकल ऐश्वर्य्य और (देवस्य) समस्त सुख देनेहारे परमात्मा के निकट से (मतिम्) बुद्धि और (आसवम्) समस्त ऐश्वर्य्य के हेतु को प्राप्त होकर उस (धिया) बुद्धि से समस्त (विश्वदेव्यम्) सब विद्वानों के लिये हित देनेहारे (भगम्) उत्तम ऐश्वर्य्य को (मनामहे) मांगते हैं, वैसे तुम लोग भी मांगो॥१४॥
भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब मनुष्यों को चाहिये कि परमेश्वर की उपासना से उत्तम बुद्धि को पाके उससे पूर्ण ऐश्वर्य का विधान कर सब प्राणियों के हित को सम्यक् सिद्ध करें॥१४॥
No comments:
Post a Comment
ধন্যবাদ