ऋषि: - नारायण ऋषिःदेवता - स्त्रष्टा देवताछन्दः - अनुष्टुप्स्वरः - गान्धारः
ततो॑ वि॒राड॑जायत वि॒राजो॒ऽअधि॒ पूरु॑षः।स जा॒तोऽअत्य॑रिच्यत प॒श्चाद् भूमि॒मथो॑ पु॒रः॥
ততো বিরাউজায়ত বিরাজোऽঅধি পূরুষঃ।
স জাতোऽঅত্যরিচ্যত পশ্চাদ ভূমিমথৌ পুরঃ ॥
পদার্থ ঃ- হে মনুষ্যগণ ! (ততঃ) সেই সনাতন পূর্ণ পরমাত্মা হইতে (বিরাট্) বিবিধ পদার্থ দ্বারা প্রকাশমান বিরাট্ ব্রহ্মান্ডস্বরূপ সংসার (অজায়ত) উৎপন্ন হয়। (বিরাজঃ) বিরা সংসারের (অধি) উপর অধিষ্ঠাতা (পুরুষঃ) পরিপূর্ণ পরমাত্মা হয়। (অধো) ইহার অনন্তর (সঃ) সেই পুরুষ (পুরঃ) প্রথম হইতে (জাতঃ) প্রসিদ্ধ (অতি, অরিচ্যতে) জগৎ হইতে অতিরিক্ত হয়। (পশ্চাৎ) পশ্চাৎ (ভূমিম্) পৃথিবীকে উৎপন্ন করে ইহা জানিয়া লহ ॥
ভাবার্থ:- পরমেশ্বরই হইতে সব সমষ্টি রূপ জগৎ উৎপন্ন হয়। তিনি সেই জগৎ হইতে পৃথক্ তন্মধ্যে ব্যাপ্তও হইয়া, তাহার দোষগুলি দ্বারা লিপ্ত না হওয়া এই সকলের পরিণাম। এই প্রকার সামান্যভাবে জগতের রচনা বলিয়া বিশেষ করিয়া ভূমি আদির রচনাকে ক্রমপূর্বক বলিতেছি ॥
पदार्थः -
(ततः) तस्मात् पूर्णादादिपुरुषात् (विराट्) विविधैः पदार्थै राजते प्रकाशते स विराट् ब्रह्माण्डरूपः (अजायत) जायते (विराजः) (अधि) उपरि अधिष्ठाता (पूरुषः) परिपूर्णः परमात्मा (सः) (जातः) प्रादुर्भूतः (अति) (अरिच्यत) अतिरिक्तो भवति (पश्चात्) (भूमिम्) (अथो) (पुरः) पुरस्ताद्वर्त्तमानः॥५॥
भावार्थः - परमेश्वरादेव सर्वं समष्टिरूपं जगज्जायते स च तस्मात् पृथग्भूतो व्याप्तोऽपि तत्कल्मषालिप्तोऽस्य सर्वस्याधिष्ठाता भवति। एवं सामान्येन जगन्निर्माणमुक्त्वा विशेषतया भूम्यादिनिर्माणं क्रमेणोच्यते॥५॥
पदार्थ -
हे मनुष्यो! (ततः) उस सनातन पूर्ण परमात्मा से (विराट्) विविध प्रकार के पदार्थों से प्रकाशमान विराट् ब्रह्माण्डरूप संसार (अजायत) उत्पन्न होता (विराजः) विराट् संसार के (अधि) ऊपर अधिष्ठाता (पूरुषः) परिपूर्ण परमात्मा होता है, (अथो) इसके अनन्तर (सः) वह पुरुष (पुरः) पहिले से (जातः) प्रसिद्ध हुआ (अति, अरिच्यत) जगत् से अतिरिक्त होता है (पश्चात्) पीछे (भूमिम्) पृथिवी को उत्पन्न करता है, उसको जानो॥५॥
भावार्थ - परमेश्वर ही से सब समष्टिरूप जगत् उत्पन्न होता है, वह उस जगत् से पृथक् उसमें व्याप्त भी हुआ उसके दोषों से लिप्त न होके इस सबका अधिष्ठाता है। इस प्रकार सामान्य कर जगत् की रचना कह के विशेष कर भूमि आदि की रचना को क्रम से कहते हैं॥५॥
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