ऋषि: - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिःदेवता - अग्निर्देवताछन्दः - पङ्क्तिःस्वरः - पञ्चमः
ঋচং বাচং প্র পদ্যে মনো যজুঃ প্র পদ্যে সাম প্রাণং প্র পদ্যে চক্ষুঃ শ্রোত্ৰং প্র পদ্যে।
বাগোজঃ সহৌজো ময়ি প্রাণাপানৌ॥ [যজু ৩৬।১]
ভাবার্থঃ এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার রয়েছে। হে বিদ্যান ! তোমাদের সাথে আমার ঋগ্বেদের তুল্য প্রশংসনীয় বাণী, যজর্বেদের সমান মন, সামবেদ সদৃশ প্রাণ এবং সত্রহ [সপ্তদশ] তত্ত্ব যুক্ত সুস্থ লিঙ্গ শরীর তথা সমস্ত উপদ্রব রহিত সমর্থবান হবে॥
विषय - विद्वानों के संग से क्या होता है, इस विषय को कहते हैं॥
पदार्थ -
हे मनुष्यो! जैसे (मयि) मेरे आत्मा में (प्राणापानौ) प्राण और अपान ऊपर-नीचे के श्वास दृढ़ हों मेरी (वाक्) वाणी (ओजः) मानस बल को प्राप्त हो, उस वाणी और उन श्वासों के (सह) साथ मैं (ओजः) शरीर बल को प्राप्त होऊं (ऋचम्) ऋग्वेद रूप (वाचम्) वाणी को (प्र, पद्ये) प्राप्त होऊं (मनः) मनन करनेवाले के तुल्य (यजुः) यजुर्वेद को (प्र, पद्ये) प्राप्त होऊं (प्राणम्) प्राण की क्रिया अर्थात् योगाभ्यासादिक उपासना के साधक (साम) सामवेद को (प्र, पद्ये) प्राप्त होऊं (चक्षुः) उत्तम नेत्र और (श्रोत्रम्) श्रेष्ठ कान को (प्र, पद्ये) प्राप्त होऊं, वैसे तुम लोग इन सबको प्राप्त होओ॥
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ধন্যবাদ