इस्लाम का चमत्कार - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

সাম্প্রতিক প্রবন্ধ

Post Top Ad

স্বাগতম

11 May, 2023

इस्लाम का चमत्कार

 चमत्कार

ईमान के दो साधन हैं—एक बुद्धि, दूसरा सीधा विश्वास, प्रकृति की पुस्तक दोनों के लिए खुली है।

प्रातःकाल सूर्योदय, सायंकाल सूर्यास्त, दिन व रात्रि का क्रम ऊषा की रंगीनी, बादलों का उड़ना, किसी बदली में से किरणों का छनना, इन्द्रधनुष बन जाना, पर्वतों की गगन चुम्बी चोटियाँ, सागर की असीम गहराई, वहाँ बर्फ के तोदे व दुर्ग, उछलती कूदती लहरों का शोर, बुद्धि देख-देखकर आश्चर्यचकित है। भूमि पर तो चेतन प्राणी हैं ही, वायु व जल में भी एक और ही विराट् संसार बसा हुआ है।

विज्ञान के पण्डित नित नए अनुसंधान करके नित नए नियमों का पता लगा रहे हैं और इन नियमों के कारण प्रकृति के ऊपर अधिकार प्राप्त करते जाते हैं। जो घटनाएँ पहले अत्यन्त आश्चर्यजनक लगतीं थीं। वह इन नियमों के प्रकाश में साधारण-सी घटनाएँ बनकर रह जाती हैं। मनुष्य यह देखकर दंग है कि पानी आकाश से कैसे बरसता है? वैज्ञानिक एक हण्डिया में पानी डालकर उसे आँच देता है। पानी सूखता है, उड़ता है। वैज्ञानिक उस उड़ते पानी को ठण्डी नली में से गुज़ारता है और उड़ती हुई भाप को फिर पानी बना देता है। यह पानी कण-कण होकर फिर गिर पड़ता है। वैज्ञानिक कहता है यही वर्षा होने का रहस्य है। हमने चमत्कार समझा था, परमात्मा की कुदरत का विशेष रहस्य माना था। वैज्ञानिक ने वही चमत्कार छोटे स्तर पर स्वयं करके दिखा दिया। हमारा आश्चर्य समाप्त हो गया। हम इन्द्रधनुष पर लट्टू थे। वैज्ञानिक ने त्रिकोण के एक शीशे में ही एक छोटा-सा इन्द्रधनुष उत्पन्न कर दिया। हम इसे साधारण बात समझ बैठे। वैज्ञानिक बुद्धिमान् था हमारी सरलता पर हँसा और कहा मेरी शक्ति प्रथम तो सीमा में छोटी है। साधारण है। भला इस इन्द्रधनुष की उस आकाश में फैले हुए इन्द्रधनुष से तुलना ही क्या? जो आकाश के एक भाग में छा जाता है? मेरे कण भर जल से कोई खेत हरियाले हो सकते हैं या झीलें भर सकती हैं? वे भण्डार प्रभु के ही

हैं जिनका संसार प्रार्थी है, याचक है। फिर मेरी खोजें और आविष्कार

तो परमात्मा की रचनाओं की नकल मात्र हैं, वह उसी भण्डार

की एक बानगी है जो वस्तु वर्तमान संसार में पहले से ही विद्यमान

है। मैं उसे देखता हूँ उसकी दशा का चित्र अपनी बुद्धि में उतारता हूँ

और अपनी सामर्थ्य के अनुसार इस भण्डार से एक छोटी-सी बानगी

प्राप्त करता हूँ और उस पर परमात्मा के ही नियमों का प्रयोग करके

कहीं इन्द्रधनुष का खिलौना कहीं पानी व भाप की गुड़िया बना लेता

हूँ। यह प्रकृति के नियमों का छोटा-सा भाग जो मेरी छोटी-सी

बुद्धि में आता है परमात्मा को सर्वशक्तिमान् व पूर्ण ज्ञान का

स्वामी सिद्ध करता है। यदि उसके सामर्थ्य का प्रकटीकरण बिना

किसी नियम के होता तो मनुष्य को अपने प्रयास की सफलता का

विश्वास करना कठिन हो जाता। उस खेती में जिससे हम सबका पेट

पालन होता है, क्या कुछ कम चमत्कार है। एक दाने के लाखों व

करोड़ों दाने हो जाते हैं। परमात्मा ही तो इन्हें बढ़ाता है। हम

उससे लाभ उठा लेते हैं। इसमें यदि नियम व व्यवस्था न हो तो

कोई किस भरोसे पर बीज बोए। उसे पानी दे और फ़सल काटे?

यह है बुद्धि के द्वारा ईश्वर पर विश्वास, अज्ञानी व्यक्ति बुद्धि से कोरा

है उसे प्रतिदिन की खेती में परमात्मा का हाथ दिखाई देना कठिन है।

सूरज व चाँद के तमाशे उसकी दृष्टि में परमात्मा की शक्ति के खेल

नहीं? परमात्मा और उसके साथ उसके प्यारों की शक्ति का

प्रदर्शन किसी प्रकृति नियम के विपरीत चमत्कार के द्वारा होना चाहिए।

1[1. मुस्लिम विचारक डॉ॰ गुलाम जैलानी बर्क ने प्रचलित इस्लाम से हटकर यह लिखा है, “अल्लाह का सबसे बड़ा चमत्कार यह सृष्टि—यह रचना है।” देखिये ‘दो कुरान’ पृष्ठ 622। पं॰ गंगाप्रसाद उपाध्याय जी ने लिखा है, “The occurence of an unnatural phenomenon is a contradiction of terms. If it occurs, it is natural, if it is natural it must occur. Then is it anti natural? No who can defy nature successfully.” Superstition अर्थात् चमत्कार यदि स्वाभाविक है तो चमत्कार नहीं यदि सृष्टि नियम विरुद्ध हैं तो हो नहीं सकते।  —‘जिज्ञासु’]

इस लड़कपन के विचार ने अज्ञानी लोगों के दिलों में चमत्कारों की सृष्टि की है। वह उन्हीं लोगों को प्रभु तक पहुँचा हुआ     मानते हैं जिनसे कोई करामात चमत्कार या प्रकृति के नियम विरुद्ध काम सम्बन्धित हो। कुछ सम्प्रदायों की आधारशिला ही इन्हीं चमत्कारी कहानियों पर है। स्वयं चमत्कार करना कठिन है, क्योंकि उसके मार्ग में प्रकृति के नियम बाधक हैं इसलिए इन मतों की पुस्तकों में चमत्कारों की असम्भवता को कुछ स्वीकार किया गया है, जैसे कि इञ्जील में वर्णन है—

“उस ईसा ने ठण्डा सांस लिया और कहा यह पीढ़ी चमत्कार चाहती है? मैं तुम्हें सच कहता हूँ इस पीढ़ी को चमत्कार नहीं दिखाया जाएगा”1। —(मरकस आयत 8-12)

[1. डॉ॰ जेलानी ने भी अपनी पुस्तकों में चमत्कारों की चर्चा करते हुए यही प्रमाण दिये हैं।   —‘जिज्ञासु’]

और कुरान में भी आया है—

व कालू लौला उन्ज़िला इलैहे आयातुन मिन रब्बिही कुल 1 इन्नमल आपातो इन्दल्लाहे व इन्नमा इन्ना नजीरुन मुबीन॰ लो लमयक फिहिम अन्ना अंजलना अलैकल किताबो, तुतला अलैहिम इन्ना फ़ीजालिका लरहमता व ज़िकरालि कौमिय्योमिनून।

—(सूरते अनकबूत आयत 50-51)

और कहते हैं क्यों नहीं उतरीं उस पर उसके रब की ओर से निशानियाँ। पास अल्लाह के हैं और निश्चत ही मैं डराने वाला हूँ, प्रकट और क्या उनके लिये यह पर्याप्त नहीं कि हमने तुम पर पुस्तक उतारी है जो पढ़ी जाती है उन पर और उसमें कृपा है और वर्णन है मौमिनों के लिए।

परन्तु पूर्ववर्तियों के सम्बन्ध में चमत्कारों की कहानियाँ सुनाने में कोई कानून बाधक नहीं। इसलिए ऐसी पुस्तकों के अपने काल के चमत्कारों का लाख इन्कार हो, पूर्वकालीन कालों के पैग़म्बरों के साथ चमत्कार जोड़ दिए गए हैं। काल बीतने पर श्रद्धालुओं ने वैसे ही और उनसे बढ़-चढ़कर विचित्र चमत्कारों के सम्बन्ध अपने पथ-प्रदर्शकों के साथ जोड़ दिए हैं। चमत्कार वास्तव में प्रभु की सत्ता की स्वीकृति नहीं इन्कार हैं।

परमात्मा नित्य है, अनादि है तो उसकी शक्ति का प्रदर्शन भी नित्य है, शाश्वत है, क्षण-क्षण में होता है। परमात्मा का ज्ञान पूर्ण है। उसका ज्ञान जैसे प्रकृति के नियम हैं। जहाँ यह नियम टूटे समझो परमात्मा का ज्ञान भंग हुआ। परमात्मा के नियम व कार्य में परिवर्तन होना असम्भव है। उसके ज्ञान व कार्य का प्रदर्शन नित्य प्रति के कार्यों में हो रहा है। उनका साँचा पलटने की सद्बुद्धि को आवश्यकता नहीं। हाँ जिन लोगों की मान्यता ही यह है कि वह कानून से भी ऊपर हों जिस पर तर्क ननुनच न कर सके, वह परमात्मा को भी एक बड़ा, सारे संसार को घेरे हुए, मनमौजी राजा कल्पना कर सकते हैं। जिसकी इच्छा का भरोसा नहीं।

अपनी या अपने प्यारों के लिए किसी समय कुछ कर गुज़रे। किसी पर दिल आ गया उसे रिझाने के लिए कुछ भी कर देना उससे दूर नहीं। आजकल राजाओं का युग नहीं रहा। सो परमात्मा की भी कल्पना परिवर्तित हो रही है।

वेद की दृष्टि में परमात्मा के नियम परमात्मा की पवित्र आज्ञाएँ हैं। उनका उल्लंघन (नऊज़ो बिल्लाह—परमात्मा की शरणागति) करके परमात्मा अपना निषेध उल्लंघन करेगा यह असम्भव है। परमात्मा के प्यारे वे हैं जिनका जीवन विज्ञान के नियमों व आध्यात्मिकता के साँचे में ढल जाता है।

1[ 1. नियम नियन्ता के होने का एक बहुत बड़ा प्रमाण होता है। अनियमितता कहीं भी हो यही सिद्ध करती है कि यहाँ कोई नियन्ता नहीं। यह सृष्टि नियमों में बंधी है जो अटल Eternal हैं। ऋत व सत्य को वेद भूमि का आधार मानता है। इन नियमों के टूटने का कोई प्रश्न ही नहीं है। —‘जिज्ञासु’]

जिनका सदाचार ही उनकी महानता है। वे नियमों का उल्लंघन नहीं करते उसके ज्ञान का प्रचार करते हैं। उनकी भक्ति बुद्धि के साथ वाणी का रूप धारण करके उसका प्रकाश करती है जिसका पवित्र नाम वेद है।

इसके विपरीत कुरान शरीफ़ में स्थान-स्थान पर चमत्कारों का वर्णन आया है। हम नीचे कुछ पैग़म्बरों के सम्बन्ध में कुरान शरीफ़ की साक्षी प्रस्तुत करेंगे जिससे प्रकट हो कि उनकी महानता की आधारशिला कुरान की दृष्टि में उनके चरित्र पर नहीं चमत्कारों पर है। कुरान शरीफ़ के कुछ पैग़म्बरों के चरित्र पर एक संक्षिप्त आलोचना पिछले अध्याय में हो चुकी है।

आचार व आध्यात्मिकता की परिपूर्णता विद्यमान होने की दशा में किसी व्यक्ति का जीवन  चमत्कारों की अपेक्षा नहीं रखता। मनुष्यों के लिए लाभदायक व सृष्टि के नियमों के या ऐसा कहो कि परमात्मा की इच्छा के रंग में रंगी हुई कार्य प्रणाली सर्वश्रेष्ठ चमत्कार है। जो ऋषि दयानन्द व उनके पूर्ववर्ती वेद के ऋषियों के भाग में आया है। अन्य महापुरुष भी इस श्रेष्ठता से रिक्त नहीं होंगे, परन्तु हमें यहाँ उन महापुरुषों के वर्णन से तात्पर्य है कि जो उनके अनुयायियों के कथानकों के द्वारा हम तक पहुँचे हैं।

इस अध्याय में हमें देखना यह होगा कि इन महापुरुषों के चमत्कार कल्पना के कितने निकट हैं? यदि कल्पना करो कि उनकी सत्यता को क्षणभर के लिए स्वीकार भी कर लिया जाए तो इससे वर्तमान काल का मानव समाज क्या लाभ उठा सकता है? माननीय पैग़म्बरों के आचार के परिपालन का द्वार इस्लाम के भाग्य लेखों के नियमों के हाथों बन्द है। क्योंकि हम वैसे ही कर्म करने पर विवश हैं जैसे प्रारम्भ से हमारे भाग्य लेखक ने लिख दिए हैं फिर आश्चर्यप्रद चमत्कार तो—

र्इं सआदत बज़ोरे बाज़ू नेस्त,

ता न बख्शद ख़ुदाए बिख्शन्दा 1 ।

[1. अर्थात् यह पुण्य अथवा सामर्थ्य भुजा बल से प्राप्त नहीं होता। जब तक विधाता की कृपा न हो—इसकी प्राप्ति असम्भव है।   —‘जिज्ञासु’]

यह चमत्कार हमारे किस काम के? अभी तो हमें इन करामातों, चमत्कारों के तथाकथित वर्णनों पर दृष्टिपात करना चाहिए। सम्भव है, इसमें हमारे सदुपयोग की भी कोई बात निकल आवे—

हम दृष्टान्त के रूप में इन पैग़म्बरों के कुछ चमत्कारों की संक्षिप्त जाँच पड़ताल किए लेते हैं—

(1) हज़रत मूसा, (2) हज़रत ईसा, (3) हज़रत इब्राहिम, (4) हज़रत सालिह, (5) हज़रत नूह, (6) हज़रत मुहम्मद।

हज़रत मूसा

हज़रत मूसा की कहानी कुरान शरीफ़ में बार-बार दोहराई गई है। हम कुछ ऐसे प्रमाणों पर सन्तोष करेंगे जिनसे इन हज़रत के किए हुए कार्यों या उनकी कहानी में वर्णित प्रकृति नियम विरुद्ध कारनामों पर प्रकाश पड़ सके।

मनुष्य बन्दर बन गए

सूरते बकर में फ़रमाया है— वलकद अनिमतुमल्लज़ीना अइतिदू मिनकुम फ़िस्सबते फ़कुलनालहुम कूनू किरदतन ख़ासिईन। फ़जअलनाहा नकालन लिमा बेनायर्देहा वमा ख़लफ़हा।

—(सूरते बकर आयत 65-66)

इसकी व्याख्या तफ़सीरे जलालैन में इस प्रकार की गई है—

सचमुच सौगन्ध है कि तुम जानते हो उनको जिन्होंने (प्रतिबन्ध लगाने पर भी) शनिवार के दिन (मछली का शिकार करके) सीमा का उल्लंघन किया (वह लोग ईला के रहने वाले थे) सो हमने उनसे कहा कि तुम बन्दर बन जाओ रहमत (प्रभु कृपा) से दूर (सो वह) हो गए और तीन दिन बाद मर गए। फिर हमने (इस दण्ड को) उनके काल के पश्चात् और बाद में आने वाले लोगों के लिए मार्गदर्शन का साधन कर दिया। —जलालैन

शरीरों का अविलम्ब परिवर्तन प्रकृति के किस नियम के अनुसार हुआ? हज़रत डारविन को कठिनाई थी कि बन्दर की पूँछ मनुष्य शरीर में आकर लुप्त कैसे हो गई? पाठक वृन्द! कुरान की कठिनाई यह है कि दुम (पूँछ) कैसे उत्पन्न हो गई? मज़हब में तर्क का प्रवेश नहीं।

मृत शरीर बोल उठा

व इज़ा कतलतुम नफ़सन फ़द्दर अतुम फ़ोहा बल्लाहो मुख़- रिजुन मा कुन्तुम तकतिमूना, फ़कुलना अज़रिबहो विबाज़िहा। कज़ालिका यहयल्लाहो अलमूता व युरीकुम आयतिही लअल्लकुम तअकिलून। —(सूरते बकर आयत 73)

जबकि तुमने एक आदमी को मारा फिर उसमें झगड़ा किया और अल्लाह प्रकट करने वाला है। इस बात को जिसको तुम छुपाते थे। फिर हमने कहा कि इस (वध किए गए) से इस (गाय) की (शाब्दिक अर्थ हैं इस गाय) का एक टुकड़ा जीभ या दुम की हड्डी मारो उन्होंने मारा और वह जीवित हो गया और अपने चाचा के बेटों के बारे में कहा कि उन्होंने मुझे मारा है यह कहकर मर गया।  अल्लाह ताला इसी प्रकार मृत शरीरों को जीवित करेगा वह तुमको अपनी शक्ति की निशानियाँ दिखाता है कि तुम विचार कर समझो। —जलालैन

गाय का एक टुकड़ा लगने से मुर्दा जी उठा न जाने मरा क्या लगने से? पर मरते तो लोग नित्यप्रति हैं। चमत्कार जीने में था। बंकिमचन्द्र बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार मजिस्ट्रेट थे। एक मुकदमें में वास्तविक परिस्थिति का पता नहीं लग रहा था। आपने मुर्दे का स्वांग भरा। लाश बनकर पड़े रहे और उस पर कपड़ा डाल दिया गया। अपराधी भी वहीं थे। बातों-बातों में निःसंकोच सारी घटना सच-सच कह गए। मुर्दा जलाने से पूर्व ही जी उठा और न्यायालय में घटना की साक्षी दे गया। कुछ ऐसी ही दशा इन आयतों में लिखी हुई तो नहीं? यह अन्तर अवश्य है कि बंकिम फिर जीवित ही रहे तीन दिन पश्चात् मरे नहीं।

डण्डे का चमत्कार

व इजस्तस्का मूसालिकौमिही, फकूलनाजरिव बिअसाक- लहजरा फन्फजरत मिनहा इसनता अशरा ऐनन।

—(सूरते बकर आयत 73)

जब कि (उस जंगल में) मूसा ने अपनी जाति के लिए पानी माँगा सो हमने कहा कि अपनी लाठी पत्थर पर मार (यह वही पत्थर था जो मूसा के कपड़े ले भागा था) नरम (चौकोन जैसा आदमी का सिर) सो उसने मारा बस 12 जल के स्रोत (चश्मे) (जितने वह गिरोह थे) उसमें से निकलकर बहने लगे। —जलालैन

डण्डा अजगर बन गया

फ़लका असाहो, फ़इज़ाहिया सअबानुन मुवीनुन, वनज़ आयदुहू फ़इज़ाहिया बैज़ा अनलिन्नाज़िरीन।

—(सूरत ऐरा फ आयत 107)

बस मूसा ने अपनी लाठी डाली सो अचानक वह बड़ा अजगर साँप बन गई और (मूसा ने) अपना हाथ (कपड़ों में से) निकाला और वह चमकता हुआ प्रकाशमान प्रकट हुआ देखने वालों की दृष्टि में (यद्यपि उस हाथ की यह रंगत न थी। गेहुआ रंग था)।

—जलालैन

पतला साँप

व अलके असाका फ़लम्मा राअहा तहतज़्जुन कअन्नहा जानुन ववलामु दब्बिरन वलम यअकिब या मूसा ला तख़िफ़।

—(सूरते नहल आयत 10)

और अपनी लाठी डाल (सो मूसा ने) अपनी लाठी डाली (उसने) जब उस लाठी को देखा कि दौड़ती है जैसे पतला साँप। मूसा पीठ फेरकर भागा और पीछे को न लौटा (अल्ला ताला ने फ़रमाया) ए मूसा तू इससे भयभीत न हो।

—जलालैन

वेदान्त में भ्रमवश रस्सी को साँप समझने का वर्णन तो प्रायः होता है, यहाँ न जाने भ्रम था या वास्तविक दशा थी?

टिड्डियों जुंओं व मैढकों का मेंह

लोग हज़रत मूसा के भक्त न बने बस फिर क्या था?

नहनोलका बिमोमिनीना फ़अरसलना अलैहुम त्तूफ़ानावल जरादा वलकमला वज़्ज़फ़ादिए वद्दम्मा आयतिन मुफ़स्सिलातिन।

—(सूरते आराफ 132-133)

हम कभी तेरा विश्वास न करेंगे और ईमान न लाएँगे (सो मूसा ने उनको शाप दिया) फिर हमने उन पर पानी का तूफ़ान भेजा (कि सात दिन तक पानी उनके घर में पानी भरा रहा। जो बैठे हुए आदमी के हलक तक पहुँचता था) और भेजा टिड्डियों को (सात दिन की उनकी खेती व फल खा गए और (भेजा) जुओं को (या वह कीड़ा जो अनाज में पैदा हो जाता है) या चिचड़ी को जो उसने टिड्डियों का बचा हुआ खाया और कुछ शेष न छोड़ा और भेजा उन पर मैंढक (कि वह उनके घरों व खानों में भर गए) और रक्त को (उनके पानी में) और यह निशानियाँ प्रकट (भेजी)।

किसी की समझ में यह चमत्कार न आए तो इसका इलाज वही है जो इस आयत के अनुसार ईमान न लाने वालों का हुआ। अर्थात् पानी का तूफ़ान, टिड्डियों, जूएँ, रक्त व मैंढक, इस भय के होते कौन हैं जो ईमान न लाए?

नदी दो टुकड़े

आगे फ़रमाया है—

फ़ग़रकनाहुम फ़िलयम्मा बिइन्नहुम कज़्ज़बू बूआया तिनाव  कानू अनहा ग़ाफ़िलीन।

—(सूरते आराफ आयत 136)

फिर डुबा दिया (उनको शोर नदी में) इस कारण से कि वह निश्चय ही हमारे आदेश को झुठलाते थे और (हमारी निशानियों से) अज्ञान रखते थे कुछ सोच विचार नहीं करते थे। —जलालैन

व जावज़ना विनब्यिय इसराईल लवहरा।

—(सूरते आराफ आयत 138)

और हमने बनी इसराईल को नदी से पार कर दिया।

इस घटना का विवरण इससे पूर्व निम्न आयत में वर्णन हो चुका है।

व इज़ा फ़रकना बिकुलमुल बहरा फ़अन्जयतकुम व अग़रकना आले फ़िरओन व अन्तुम तंज़रुना।

—(बकर आयत 50)

जबकि हमने तुम्हारे (बनी इसराईल के) कारण दरिया को चीरा (ताकि तुम शत्रुता से भागकर इसमें दाखिल हो जाओ) सो हमने तुमको डूबने न दिया और फिरऔन की जाति को डुबो दिया (फ़िरऔन सहित) और तुम देखते थे (उनके ऊपर दरिया के मिल जाने पर)।

—जलालैन

आजकल की पनडुब्बी नौकायें इससे भी कहीं अधिक चमत्कार1 दिखा रही हैं। [1. डॉ॰ ग़ुलाम जैलानी बर्क ने अपनी पुस्तक दो कुरान पृष्ठ 322 पर नील नदी का फटना, लाठी का सर्प बनना आदि चमत्कारों को झुठला दिया है। —‘जिज्ञासु’]

  1. हज़रत मसीह

हज़रत ईसा मसीह को मुसलमान वह महत्ता नहीं देते जो ईसाई लोग देते हैं, परन्तु हज़रत मसीह से भी कुछ चमत्कार कुरान में ही जोडे़ गये हैं। जैसा कि सूरते बकर आयत 87 में वर्णन है।

व आतैना ईसा इब्ने मरयमल बय्यनाते व अय्यदनाही बिरुहिलकुदस।

और मरियम के पुत्र ईसा को कई चमत्कार दिए (जीवित करना मृतकों का और अन्धें व जन्मजात कोढी को निरोग करना) और उनको सामर्थ्य दी जिबरईल से (जहाँ ईसा चलते, जिबरईल उनके साथ होते थे)।

—जलालैन

बिना पिता के सन्तानोत्पत्ति

व इज़ा कालतिलमलाइकतो या मरयमो इन्नल्लाहा इस्तफ़ाका व तहरका वस्तफ़ाका अलानिसाइल आलमीन।

—(आले इमरान 39)

जब फ़रिश्ते बोले ए मरियम! अल्लाह ने तुझे पसन्द किया व शुद्ध बनाया (टिप्पणी में है—पुरुष के निकट होने से पवित्र किया) और पसन्द किया तुझको सब संसार की स्त्रियों से।

—जलालैन

व जकरा फ़िल कितावे मरियमा इज़म्बतजतामिन अहलिहा मकानन शरकिय्यन। फ़त्तरवजत मिन दूनिहिम हिजाबन फ़अर सलना इलैहा रुहना फ़तमस्सला लहवशरन सविय्यन। कालत इन्नो अऊजो बिर्रहमाने मिन्काइन कुन्ता नकिय्य्न। काला इन्नमा अनारसूलो रब्बिकालिअहल लका ग़ुलामन ज़किय्यन॰ कालत अन्नी यकूनोली ग़ुलामुन वलम यमसइनि बशरुन वलम अकोवगिय्यन काला कज़ालिका काला रब्बुका हुवा अलय्या हय्यनुन व लि नजअहु आयतुन लिन्नासे………फ़हमलतहू फ़न्तब्जत बिहीमकानन कसिय्यन।

—(मरयम 16-20)

याद करो कुरान में कथा मरियम की जबकि वह पृथक् हुई अपने घर वालों से एक मकान के कोने में जो पूर्व दिशा में था (वहाँ जाकर) घर के लोगों के सामने परदा छोड़ दिया (ताकि कोई न देखे यह परदा इसलिए छोड़ा था कि अपने सिर या कपड़ों से जूं निकालती थी या मासिक धर्म के पश्चात् स्नान करती थी पवित्र होकर) सो भेजा हमने उनकी ओर अपनी रूह (आत्मा, जिबरईल) को। सो वह हो गया आदमी पूरे हाथ पैर वाला सुन्दर (जबकि मरियम अपने कपड़े पहन चुकी थी) मरियम बोली, निःसन्देह मैं तुझसे ख़ुदा की शरण माँगती हूँ यदि तू कोई पवित्र हृदय पुरुष है (तू मेरे शरण माँगने से पृथक् रह) जिबरईल ने कहा—बात यह है कि मैं तेरे परमात्मा का भेजा हुआ हूँ कि तुमको एक पवित्र बेटा प्रदान करूँ (जो पैग़म्बर होगा) मरियम ने कहा—मेरे पुत्र कैसे होगा।

यद्यपि किसी पुरुष ने विवाह करके हाथ नहीं लगाया और न मैं व्यभिचारिणी हूँ…….. जिबरईल ने कहा—(यह बात अवश्य होने वाली है, अर्थात् बिना पिता के पुत्र अवश्य उत्पन्न होगा) तेरा परमात्मा कहता है कि यह काम मेरे लिए सरल है (इस प्रकार कि जिबरईल मेरे आदेश से तेरे अन्दर फूँक मारे तू उससे गर्भवती हो जाए)……..और हम उसको अवश्य पैदा करेंगे ताकि बनाएँ उसको अपने सामर्थ की निशानी…..फिर मरियम गर्भवती हुई और चली गई (गर्भवती होने के कारण अपने घर वालों से) दूर।

—जलालैन

फ़रिश्ते आजकल बात भी नहीं करते। प्राचीनकाल में करते थे। परमात्मा के सन्देश लाते और उसके आदेशों का पालन करने में भाँति-भाँति के पुरस्कार प्रदान कर जाते थे। हज़रत मरियम को बिना पति के सन्तान दी। हज़रत यहया को बिना शक्ति के पुत्र दिया। इस विज्ञान के युग में अल्लाह मियाँ व उसके फ़रिश्ते सब वैज्ञानिक हो गए हैं। मजाल है कोई बात प्रकृति के नियमों के विरुद्ध कर जावें।

वल्लती अहसनत फ़रजहा फ़नफ़रवना फ़ीहा मिनरुहिनावजअलनांहां व अबनाहा आयतुन लिल आलमीन।

—(सूरते अम्बिया 88)

और स्मरण करो मरियम को जिसने अपनी योनि को (बुरे काम से) सुरक्षित रखा सो हमने अपनी रूह (आत्मा) फूँकी (अर्थात् जिबरईल ने उसके कुर्ते के गिरेबान में फूँक मारी जिससे उसको ईसा का गर्भ रह गया) और हमने मरियम को और उसके पुत्र को मनुष्यों, जिन्नों (भूतों) व फ़रिश्तों (देवताओं) के लिए एक निशानी बनाया। (क्योंकि मरियम ने ईसा को बिना पति के जन्म दिया)। —जलालैन

हज़रत इब्राहिम

कटे पशु जीवित किए

हज़रत इब्राहीम एक पुराने ईश्वरीय दूत हैं। हज़रत मुहम्मद का दावा है कि इस्लाम हज़रत इब्राहिम का ही धर्म है। उनके प्रकृति के नियमों के विरुद्ध चमत्कारों का वर्णन सूरते बकर में इस प्रकार है—

व इज़ा काला इब्राहीमो रब्बे अरनी कैफ़ा यहयुलमौता काला अवलय तौमिनो। काला बला वलाकिन लियमय्यिनाकलबी। काला फ़ख़ुज़ अरबअतन मिनत्तैरे फ़सर हुन्ना इलैका, सुम्मा अजअल अलाकुल्ले जबलिन मिनहुन्ना जुजअन सुम्मा अदउहुन्ना यातीन का सइयन व अलमी इन्नाल्लाहो अज़ीज़न हकीम। —(सूरते बकर आयत 260)

इब्राहिम ने कहा—ए मेरे प्रभु मुझको दिखला कि तू मुर्दों को कैसे जीवित कर देगा (अल्लाह ने उनसे फ़रमाया) क्या तुझको इस पर विश्वास नहीं? (कि मेरे अन्दर सामर्थ है कि मुर्दों को जीवित कर दूँ)……..(इब्राहीम ने) कहा कि मैंने निसन्देह विश्वास किया तेरी शक्ति पर……..यह मैंने तुझसे इसलिए पूछा कि आँख से देखकर पूरे हृदय को सन्तोष प्राप्त कर लूँ और विरोधियों से तर्क कर सकूँ (अल्लाह ने) फ़रमाया, अब तू चार पंछी पकड़…….और उनको अपने पास इकट्ठा कर और उनको काटकर उनके पंख गोश्त मिलाकर फिर अपनी ज़मीन के पहाड़ों में से प्रत्येक पहाड़ पर एक-एक टुकड़ा उनका रख दे फिर उनको अपनी ओर बुला वे दौड़कर आएँगे और जान ले कि अल्लाह शासक है (किसी बात से कमज़ोर नहीं उसका काम सुदृढ़ व पक्का है) सो इब्राहिम ने मोर, करगस, कौवा और मुर्ग पकड़ा और उनका मांस व पर काटकर मिला दिए और उनके सिर अपने पास रख लिए और उनको बुलाया सो तमाम टुकड़े उड़कर जिसका जो टुकड़ा था उसमें जा मिला। यहाँ तक कि पूरे होकर अपने-अपने सिरों से मिल गए।

—जलालैन

हज़रत सालिह

अल्लाह मियाँ की ऊँटनी

कौम समूद के पैग़म्बर सालिह के सम्बन्ध में सूरते हूद में आया है कि उन्होंने फ़रमाया—

वया कौमे हाजिही नाक तुल्लाहे लकुम आयतुन फजरुहा ताकुल फिलअरजे ल्लाहेवला तमस्सूहा बिसूइन फयारवुजकुम अजाबुन करीबुन फअकरुहा, फकाला तमत्तऊफी दारिकुम सलासता अय्यामिन जालिका व अदुन गैरो मकजूबिन।

—(सूरते हूद आयत 63)

और ए मेरी कौम यह अल्लाह की ऊँटनी है तुम्हारे लिए निशानी अतः इसे छोड़ दो फिर से अल्लाह की भूमि पर और इसके साथ किसी प्रकार का बुरा व्यवहार मत करो नहीं तो तुम पर बहुत बड़ा दण्ड आएगा। सो उन्होंने उसके पैर काटे (अर्थात् एक कज़ाज़ नामक व्यक्ति ने उस कौम के कहने पर ऊँटनी के पैर काट डाले)  (सालिह ने) फ़रमाया ज़िन्दा रहो तुम अपने घरों में तीन दिन फिर तुम वध कर दिए जाओगे।

—जलालैन

सूरते बनी इसराईल में कहा है—

व आतैना समूदुन्नाकतामब्सिरतुन फ़ज़लमू बिहा।

—(बनी इसराईल 58)

हमने समूद की ओर ऊँटनी को भेजा वह प्रकट निशानी थी सो उन्होंने उसका इन्कार किया। (अतः वे नष्ट हो गए)

तफ़सीरे हुसैनी में इस आयत की व्याख्या में कहा है—

समूद अज़ सालिह मोजिज़ा तलब करदन्द व ख़ुदाए बराए एशां अज़ संग नाका बेरूं आवुरद।

समूद ने सालिह से चमत्कार माँगा और ख़ुदा ने उनके लिए पत्थर से ऊँटनी उत्पन्न कर दी।

सूरते शुअरा में फ़रमाया है—

काला हाज़िही नाकतुन लहा शिरबुन वलकुम शिरबो योमिन मालूम।

—(सूरते शुअरा)

कहा यह ऊँटनी है उसके लिए पानी का एक भाग निश्चित है और तुम्हारे लिए एक निश्चित दिन का भाग।

—जलालैन

मूज़िहुल कुरान में इसी स्थान पर फ़रमाया है—

वह छूटी फिरती….जिस सरोवर पर पानी को जाती सब पशु वहाँ से भागते तब यह निश्चित कर दिया गया कि एक दिन पानी पर वह जाए एक दिन औरों के पशु जाएँ।

सूरते शमस में यह वार्ता इस प्रकार वर्णन की गई है—

फ़कालालहुम रसूलुल्लाहे नाकतुल्लाहे व सकयाहा फ़कज़िबूहा फ़अकरुहा फ़दमदमा अलै हुम रब्बुहुम बिज़नबिहिम फसब्वाहा।

—(सूरते शमस आयत 13-14)

फिर कहा उनको अल्लाह के रसूल ने सावधान हो अल्लाह की ऊँटनी से और उसके पानी पीने की बारी से फिर उसको उन्होंने झुठला दिया फिर वह काट मारी और फिर उल्टा मारा, उन पर उनके रब ने उनके पाप से फिर बराबर कर दिया।

—जलालैन

भला यह ऊँटनी क्या हुई! पत्थर से निकली और उसका अधिकार यह कि जिस दिन वह पानी पीए और पशु न पीवें आखिर अल्ला मियाँ की जो हुई। यह भी अच्छा हुआ कि पत्थर से कोई मनुष्य नहीं निकला नहीं तो मनुष्यों के लिये पानी का अकाल हो जाता। कोई पूछे कि इस चमत्कार से मनुष्य का क्या बना? और दयालु परमात्मा का क्या?

हज़रत नूह

लगभग हज़ार बरस जिए

सूरते अनकबूत में हज़रत नूह का वर्णन हुआ है। फ़रमाया है—

वलकद अरसलना नूह न इला कौमिहि फ़लबिसा फ़ीहिम अलफ़ा सनतिन इल्ला ख़मसीना आमन।

—(अनकबूत आयत 14)

और हमने भेजा नूह को उनकी कौम के पास। फिर रहे वे उनमें 50 कम 1 हज़ार बरस तक।

तफ़सीरे हुसैनी में इस आयत पर कहा है—

नूह चहल साल मबऊसशुद व नह सदपंजाह साल ख़लक रा बख़ुदा दावत करद। बाद अज़ तूफ़ान शस्त साल ज़ीस्त दर अहकाफ़ अज़ दहब नकल कुनन्द कि उम्रे नूह हज़ार व चहार सद साल बूद, साहब ऐनुलमआनी फ़रमूद कि सी सद व हफ़्ताद साल मबऊस शुद व नो सद व पंजाह साल दावत करद, बाद अज़ तूफ़ान सी सद व पंजाह साल ज़ीस्त।

नूह अलैहस्सलाम चालीस साल की आयु में पैग़म्बर हुए और नौ सौ पचास वर्ष तक लोगों को ख़ुदा का सन्देश देते रहे। तूफ़ान के पश्चात् साठ वर्ष जीवित रहे। अहकाफ़ में वह बसे रिवायत (वर्णनवार्ता) है कि नूह अलैहस्सलाम की आयु एक हज़ार चार सौ वर्ष थी। लेखक ऐनुलमआनी फ़रमाते हैं कि तीन सौ सत्तर साल की आयु में पैग़म्बर हुए नौ सौ पचास साल प्रचार किया और तूफ़ान के पश्चात् 3 सौ पचास साल जीवित रहे।

हज़रत नूह की आयु कुछ भी हो उनकी प्रचार की अवधि का प्रारम्भ पचास वर्ष स्वयं कुरान में वर्णित है। इस प्रचार का प्रभाव यह कि थोड़े गिने-चुने लोगों के उनके साथियों के अतिरिक्त कोई भी सन्मार्ग पर नहीं आया और सब को तूफ़ान की बलि होना पड़ा।   सारी सृष्टि अल्लाह की बनाई और बनाई भी वैसी जैसी अल्लाह को स्वीकार था। अल्लाह ने कुछ को जन्नत के लिए कुछ को दोज़ख़ के लिए पहले से ही चुन लिया था फिर हज़रत नूह को कष्ट देने की क्या आवश्यकता थी? यदि दिया ही था तो कुछ परिणाम निकलना चाहिए था।

हज़रत मुहम्मद

चाँद तोड़ दिया

हज़रत मुहम्मद ने चमत्कार दिखाने से इन्कार तो किया था, परन्तु अनुयायियों के आग्रह से विवश हो गए हैं। सूरते कमर में आया है—

बक्तरबत स्साअता वन्शक्कलकमरो।

निकट आ गया प्रलय दिन और फट गया चाँद (चाँद के दो टुकड़े होना)। हज़रत का चमत्कार हुआ जिसकी माँग काफ़िरों के द्वारा की गई थी। आपने उसकी ओर संकेत किया। और वह दो टुकड़े हो गया।

चाँद अरब का था क्या?—कोई प्रश्न कर सकता है कि वह चाँद अरब का था या इस चमत्कार को देखने वालों का कोई विशेष चाँद था? या यही चाँद था जो संसार की सभी जातियों के लिए सामान्य है? यदि सामान्य था तो क्या कारण है कि अरब के बाहर के लोग इस चमत्कार के साक्षी न हुए। वास्तव में यह चमत्कार ज्योतिष विद्या के इतिहास में कुछ कम महत्त्व का नहीं था कि हज़रत मुहम्मद की घटना उनके लेखकों के अतिरिक्त किसी और का ध्यान न खींचती। अपना-अपना भाग्य है इस गौरव से और लाभान्वित न हुए!

सूरते बनी इसराईल में कहा है—

सुबहानल्लज़ी असराबि अब्दिही लैलन मिनल मस्जिदल अकसा अल्लजी बरकना हौलहू लिनरीहू मिन आतेना।

—(सूरते बनी इसराईल आयत 71)

पवित्र है वह सत्ता कि अपने बन्दे को (मुहम्मद साहब को) रात में मस्जिदे हराम (अर्थात् मक्का) से मस्जिदे आकसा (बैतुल मुकद्दस-पवित्र घर) की ओर ले गया……जिसकी हर ओर से हमने बरकत दी……..कि उसको विचित्रताएँ व चिह्न दिखलाए…. आपकी भेंटें पैग़म्बरों से हुई व आपको आसमानों की ओर चढ़ाया………वास्तव में हज़रत सलअम ने फ़रमाया कि मेरे पास बुराक लाया गया कि वह एक सफ़ेद जानवर है गधे से बड़ा व खच्चर से छोटा उसके पैर वहाँ तक पड़ते हैं जहाँ तक उसकी दृष्टि पड़े सो मैं उस पर सवार हुआ। वह मुझको ले गया। यहाँ तक कि मैं बैतुल मुकद्दस पहुँचा। वहाँ मैंने अपनी सवारी को उस हलके (घर) में बाँधा जिसमें और पैग़म्बर अपनी सवारियाँ बाँधते थे।

—जलालैन

इसके पश्चात् आसमानों पर जाने का वर्णन है, द्वार खटखटाया जाता है, प्रश्न होता है कौन? हज़रत जिबरईल फरमाते हैं हज़रत मुहम्मद? पूछा जाता है। क्या वह पैग़म्बर हो गए? स्वीकारात्मक उत्तर मिलने पर द्वार खोल दिया जाता है। इस प्रकार विभिन्न आसमानों पर विभिन्न सम्मानीय पैग़म्बरों की भेंट के पश्चात्—

फिर मैं पहुँचा सदर तुलमुन्तहा (सर्वोच्च गन्तव्य स्थल) तक। उसके पत्ते ऐसे जैसे हाथी के कान और उसके फल ऐसे जैसे मटका। जब उस बेरी के वृक्ष को घेर लिया, अल्लाह के आदेश से उस वस्तु ने जिसने घेर लिया वह आश्चर्यचकित हो गया।…..आपने फ़रमाया मेरी ओर जो ईश्वरीय सन्देश मिला है वह प्रकट करने योग्य नहीं…….।

—जलालैन

हज़रत की उम्मत (समुदाय) पर पचास नमाजें  फर्ज़ हुर्इं। हज़रत वापिस लौटे, परन्तु सम्मानीय पैग़म्बरों ने समझाया1[1. नोट—यहाँ मूसा का वर्णन ।] बोझ तुम्हारे अनुयाइयों से सहन न हो सकेगा। हज़रत बार-बार ख़ुदा की सेवा में गए और वहाँ से लौटे अन्त में नमाज़ों की संख्या पाँच करा ली। हज़रत मूसा ने इसमें भी कमी कराने का परामर्श दिया तो फ़रमाया—

“मैं अनेक बार अपने रब के पास जा चुका हूँ अब मुझको लज्जा आती है। इस हदीस को बुख़ारी व मुस्लिम ने उद्धृत किया है और यह शब्द मुस्लिम के हैं।”

—जलालैन

इसमें सन्देह नहीं कि इस चमत्कारी यात्रा के विवरण कुरान के भाष्यों में लिखे हुए हैं। स्वयं कुरान में मस्जिद हराम से मस्जिदे अकसा तक एक रात में जाना वर्णन किया है। वह उस समय   कि यह  चमत्कार था, परन्तु आज गुब्बारों व विमानों का युग है। इस समय इसे कौन चमत्कार मान सकता है?

चमत्कार और भी बहुत से हैं, परन्तु यहाँ जैसे बहुतों में से कुछ नमूने के रूप में दिए हैं केवल कुछ चुने गए हैं। पाठक के लिए विचारणीय बात यह है कि क्या इन चमत्कारों से परमात्मा की किसी विशेष शक्ति का आभास होता है जो सृष्टि की कल को सामान्यतया चलाने से अधिक कठिन है? क्या इन चमत्कारों से परमात्मा के प्यारों की किसी विशेष महानता का आभास होता है जिससे उनकी पदवी बुद्धिमानों की दृष्टि में ऊँची हो? कहीं इन प्रकृति नियम के विरुद्ध कर्मों से यह तो प्रकट नहीं होता कि प्रकृति का नियम बेदाद नगरी अन्यायी नगरी का सा कानून है जो तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है।

यहाँ कर्मों की इतनी परवाह नहीं जितनी अपने प्यारों की प्रतिष्ठ व अपमान की है। लोगों ने एक मार्गदर्शक का कहना नहीं माना। बिना यह विचारे कि वह उपदेशक कैसे चरित्र का है। लोगों के लिए खून की वर्षा, नूह का तूफ़ान और न जाने क्या-क्या तैयार है। लोगों को अपना श्रद्धालु बनाने के लिए उपाय क्या-क्या प्रयोग किए जा सकते हैं। जादूगरी, डण्डे को साँप बना दिया। क्या इसी को धर्म व सत्य का प्रचार कहते हैं? इन खेलों से कहीं महान् गौरवशाली सच्चे कार्य सृष्टि-रचना में दिन-रात हो रहे हैं।

क्या बिना बाप के सन्तान उत्पन्न होने में परमात्मा की महानता का अनुमान होता है और माता- पिता दोनों के होते सन्तानोत्पत्ति होने में परमात्मा का कोई हाथ नहीं? बूढ़े के बच्चा हो जाना परमात्मा का चमत्कार है और युवक के पुत्र होना परमात्मा की कारीगरी का खण्डन है? ऊँटनी ने हज़रत सालिह के व्यक्तित्व में किस बड़प्पन की वृद्धि की? सच्चाई यह है कि परमात्मा पर विश्वास की निर्भरता यदि नित्य प्रति के साधारण कार्यों व घटनाओं पर रखो तो आज भी स्थिर रहेगा कल भी और जो किसी बीते काल के चमत्कारी कथानकों पर निर्भरता ठहरी तो जिस समय के लोग कहानियों से ऊपर उठकर वर्तमान परिस्थितियों के अभिलाषी हुए जैसे आज कल हैं उस काल में नास्तिकता ही नास्तिकता का सिक्का बैठ जाएगा। मनुष्य चरित्र से पूजा जा सकता है तथा परमात्मा अपने नियमों की सुदृढ़ता व अटलता से। जिसे न उसके (मत के अनुयायी) अपने तोड़ सकें न पराये ही।

कयामत की रात

 

एकदम अल्लाह को क्या सूझा?—पिछले अध्याय में अल्लाताला के न्याय के रूपों को तो एक दृष्टि से देख ही लिया गया! क्या ठीक हिसाब किया जाता है। अब हम इस न्याय की कार्य पद्धति देखेंगे। इसके लिए कयामत के दिन पर एक गहरी दृष्टि डाल जाना आवश्यक है, क्योंकि न्याय का दिन वही है।

मुसलमानों की मान्यता है कि सृष्टि का प्रारम्भ है। सृष्टि एक दिन प्रारम्भ हुई थी। पहले अल्लाह के अतिरिक्त सर्वथा अभाव था। एक दिन ख़ुदा ने क्या किया कि अभाव का स्थान भाव ने ले लिया। किसी के दिल में विचार आ सकता है कि इससे पूर्व अल्लाह मियाँ क्या करते थे? उनके गुण क्या करते थे? जो काम पहले कभी न किया था वह अकस्मात सूझा कैसे? क्या यह अल्लामियाँ के जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन नहीं था कि पहले अकेले विद्यमान थे और अब अपनी सत्ता में किसी और को भी सम्मिलित कर लिया? एकत्व से उकता गए थे क्या? वृद्धावस्था कुछ मनोरंजन चाहती थी? कुछ हो संसार पैदा हो गया।

इसमें असमान तत्त्व भी रख दिए। क्योंकि उसके बिना संसार का कारोबार न चलता था। असमानता में क्या नियम कार्य करता था? प्रकटरूप से अल्लाह मियाँ की इच्छा के अतिरिक्त और कोई नियम बरता ही नहीं गया। यह भी हुआ। हज़रत ने आत्माएँ उत्पन्न कीं। उनको काम करने की सामर्थ ही नहीं प्रदान की। कार्य भी निश्चित कर दिए। किसी के भाग्य लेख में पवित्रता लिखी गई। किसी के भाग्य में पाप करना। पाप कर्म का साधन शैतान को निश्चित किया गया। दोज़ख़ भर देने का निर्णय ख़ुदाई न्यायालय से प्रारम्भ से ही कर दिया गया था, इसमें जाने वाले, जलने वाले सब निश्चित हैं।

परन्तु अब एक दिन आना है जब अल्लामियाँ न्याय की कुर्सी को शोभा प्रदान करेंगे और कर्मों का फल दिया जाएगा। हम परेशान हो रहे हैं कि कर्म किसके? बदला क्यों? परन्तु अल्लाह मियाँ की इच्छा है कि करे कराए तो आप ही परन्तु बदला हमें दे। दे दें। इसके लिए दरबार लगाना क्या आवश्यक है? भाग्य लेख तो हमारा प्रारम्भ से ही निश्चित है फिर इस दिन नूतन क्या होगा? यदि इस दरबार लगाने का नाम ही न्याय है तो हमारा विनम्र निवेदन है कि यह न्याय का स्वांग एक ही दिन क्यों किया जाता है? कहीं इससे अल्लामियाँ के न्याय के गुण में अस्थाई होने का दोष तो लागू नहीं होगा 1?

[1. डॉ॰ जेलानी पहले मुस्लिम विचारक हैं जो अल्लाह द्वारा प्रतिपल न्याय देना मानते हैं। देखिये उनकी पुस्तक ‘अल्लाह की आयत’।   —‘जिज्ञासु’]

कयामत से पूर्व इस गुण का कोई प्रयोग नहीं और इसके पश्चात् भी कोई प्रयोग की अवस्था नहीं होगी।

ख़ैर आइए! इस दरबार का दर्शन करें। इस दरबार की भूमिका रूप में अवस्थाएँ बयान की गई हैं—

व तरल जिबाला तहसबहा जामिदतुन वहिया तमरुमर्रा अस्सहाबे।

—(सूरते नमल आयत 88)

और देखेगा तू पहाड़ों को कि अनुभव करेगा तू उनको जमे हुए और वह चलेंगे बादलों की भाँति।

व इज़ा रुज्जतिल अरज़ो रज्जन, व बुस्सतिल जवालो बुस्सन।

—(सूरते वाकिया आयत 4-5)

जब हिलाई जाएगी भूमि भली प्रकार और टुकड़े हों पहाड़ टूटकर।

व इज़श्शमसो कुर्रिरत व इज़न्नजूमो उन्कदिरत व इजल जवालो सुय्यरत व इज़स्समाओ कुशितत।

—(सूरते तकवीर आयत 1-2-3,11)

जब सूरज को लपेटा जाएगा और तारे गदले हो जाएँगे और जब पहाड़ चलेंगे और जब आसमान की खाल उतारी जाएगी।

सूरज लपेट दिया गया तो प्रकाश न हो सकेगा रात हो जायेगी। इसी विचार से स्वामी दयानन्द कयामत का दिन नहीं ‘रात’ लिखते हैं। अन्तिम आयत पर जलालैन ने लिखा है—

जैसे बकरी का चमड़ा उतारा जाता है।

व इज़स्समाउन्कतरनो, व इज़लकवाकिबो उन्तरसरत व इज़ल बिहार फुज्जिरत व इज़ल कबूरो बुइसरत।

—(सूरते इनफ़ितार आयत 1-4)

जब आसमान फट जावे, जब तारे झड़ जाएँ जब दरिया चीरे जाएँ, जब कबरें उठाई जाएँ।

कबरों का अर्थ यहाँ भाष्यकारों ने कबरों में लेटे मुर्दे किया है। वे मुर्दे शरीरों के साथ उठेंगे या इसके बिना1 ?

[1. अब श्री फारूकी आदि ने ये अर्थ बदल दिये हैं।   —‘जिज्ञासु’]

उठना बिना शरीर के क्या होगा? इस्लाम के अनुयायियों का सिद्धान्त यही है कि शरीर के साथ उठेंगे। वह शरीर कहाँ से आएगा? शरीर तो जर्जरित हो चुका और वह कब्र में मिलजुल गया। अब कब्र का उठना या शरीर का उठना एक ही बात है। और जो कबरें इससे पूर्व नष्ट हो चुकेंगी वह? कुछ होगा। यह हुई कब्रों की बात। अब तारे। ऊपर तो तारों को गदला (बुझे हुए) ही किया था, यहाँ झाड़ दिया है और दरिया चीरने से न जाने, क्या आशय है?

वजउश्शमसे व लकमरे।

—(शूरते कयामत आयत 9)

और इकट्ठा किया जाएगा सूरज और चाँद।

इस पर तफ़सीरे हुसैनी में लिखा है—

यानी एशां रा बयक दीगर मज्तमअ साख्ता दर दरिया अफ़गन्द।

अर्थात् इन दोनों को इक्ट्ठा करके दरिया में डाल देंगे।

क्या उस चीरे हुए दरिया में? लीजिए अब तो प्रकाश का कोई साधन न रहा। सूरज का ही लपेटा जाना (इसके अर्थ कुछ भी हों) प्रकाश को समाप्त हो जाने के लिए पर्याप्त है, क्योंकि चाँद भी तो सूरज से ही प्रकाश पाता है। परन्तु यहाँ सूरज चाँद सितारे सब कुछ झड़ गया है। कोई लपेटा गया है, कोई दरिया में डाल दिया है। इसी कयामत के दिन को रात ही नहीं घुप अन्धेरी रात कहना चाहिए। यह सब निशानियाँ लिखते हुए हम एक बात भूल गए वह है नरसघे का फूँका जाना। वह पहली बार तो इन सारी अवस्थाओं के प्रकट होने से पहले बजेगा और एक बार कब्रों के उठने पर।

वनफ़ख़ा फ़िस्सूरे फ़इजाहुम मिनल अजदाते इलारब्वहुम यन्सिलून।

—(सूरते यासीन आयत 51)

और फूँका जाएगा नरसघा। फिर अचानक वह कबरों में से अपने परवरदिगार (परमात्मा) की ओर दौड़ेंगे।

इस आयत से तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सारी कब्र न दौड़ेगी उसका एक भाग शरीर बनकर दौड़ेगा। परन्तु हम तो यह देख रहे हैं कि एक कब्र क्या कब्रिस्तान के कब्रिस्तान नष्ट होते जाते हैं। उनके स्थान पर शहर बस रहे हैं। यह और बात है कि पहले पहल कब्रों के खुदने से रोग फैलने की आशंका होती है। वैज्ञानिकों की सम्मति है कि मुर्दे गाड़ने की रस्म स्वास्थ्य के नियमों के विरुद्ध है। इसी बात को ध्यान में रखकर योरोप व अमरीका में मुर्दे जलाने का रिवाज बढ़ रहा है। मुर्दों के उठने की भी एक योजना बताई है—

वल्लाहल्लज़ी अरसलर्रीहा फ़तुशीरो सहाबन फ़सुकानहू इलाबलदिन मय्यतिन फ़अहयैनाबिहिल अरज़ा बादो मौतिहा कज़ालिकन्नशूर।

—(सूरते फ़ातिर आयत 8-9)

और अल्लाह वह है जिसने भेजा हवाओं को, फिर उठाया बादलों को, फिर हाँक लाते हैं उसको शहरों की ओर फिर जीवित किया हमने उससे ज़मीन को उसकी मृत्यु के पश्चात्। इस प्रकार मुर्दे उठाए जाएँगे।

मिश्कात किताब फ़तन बाब नफ़ख़ फ़िस्सूर में लिखा है—

काला व लैसा मिनल इन्साने शैउन लायबली इल्लल उज़मा वाहिदहू व हुवा अजबुज़्ज़नबो व मिनहू यरकिबुल ख़लका योमिल कयामते।

कहा और नहीं मनुष्य में कोई ऐसी वस्तु जो पुरानी न हो जाए। एक हड्डी के अतिरिक्त और वह रीढ़ की हड्डी के नीचे की हड्डी है और इससे संसार की रचना होती है कयामत के दिन।

कहा जाता है कि यह हड्डी कयामत के दिन गले सड़े बिना सुरक्षित रहेगी। यह बीज का काम देगी जिससे सारा शरीर नवीन बनाया जायेगा। यह काम चालीस दिन की वर्षा से होगा जो अल्लाहताला भेजेगा। जो भूमि को आठ बलिश्त तक ढाँप लेगी और उसके इस काम से शरीर पौधों की भाँति उग आएँगे।

यह कयामत का प्रारम्भ है इसकी अवधि दो सूरतों में वर्णन की है—

सूरते सजदा में कहा है—

फ़ीयोमिन काना मिकदारहू अलफ़ा सिनत्तिन मिम्मात अदून।

—(सूरते सजदा आयत 4)

एक दिन में जिसकी मात्रा हज़ार वर्ष है तुम्हारे गणित से।

तफ़सीरे जलालैन में इस आयत पर लिखा है—

आशय हज़ार वर्ष के दिन से कयामत का दिन है। परन्तु सूरते मआरिज़ में हम एक और अवधि पाते हैं—

तअरजुल मलाइकतो वर्रुहो इलैहे फ़ीयोमिन काना मिकदारहू रवमसीना अलफ़ा सनतिन…….योमा यरवरजूना मिनल अजदाते सिराअनकअन्नहुम इलानुसुबिन युविफ़्फ़ज़ून।

—(सूरते मआरिज आयत 4)

चढ़ते हैं फ़रिश्ते और रूहें तरफ़ उसके उस दिन में जिसकी अवधि है पचास हज़ार साल………जिस दिन निकलेंगे कब्रों से दौड़ते हुए जैसे किसी निशानी पर दौड़ते हैं।

इन दो संख्याओं के मतभेद का निवारण कैसे हो? पहली संख्या के साथ गुण की वृद्धि की है और वह संख्या तुम्हारी गिनती के अनुसार है सम्भव है जो अवधि मनुष्यों की गिनती में एक हज़ार वर्ष होती है वह किसी और सृष्टि की गिनती में पचास हज़ार साल हो जाती हो।

गुत्थी सुलझा ली गई—तफ़सीरे जलालैन में इस गाँठ को यह कहकर खोला है—

दूसरी सूरत में पचास हज़ार साल फ़रमाया है यह लम्बाई कयामत की काफ़िरों को अनुभव होगी।

इन पचास हज़ार वर्षों में होगा क्या? मूजिह कुरान तो पचास हज़ार पर कहता है, जब से मुर्दे निकलेंगे जब तक दोज़ख़ बहिश्त भर जाएँगे।

तफ़सीरे हुसैनी में इस स्थान पर लिखा है—

दर अरसा हाए कयामत पंजाह मौतन व मौकफ़ ख़्वाहद बूद, व ख़लायक रा दर हर मौकफ़े हज़ार साल वाज़ दारन्द, व बयाने मवाकिफ़ दर जवाहरुत्तफ़ासीर अस्त।

कयामत के मैदान में पचास पड़ाव व ठहराव होंगे। लोगों को हर ठहराव पर पचास हज़ार साल रोका जाएगा। इन ठहरावों का वर्णन जवाहरुत्तफ़ासीर में है।

अब जरा कयामत की कार्यवाही के विवरण का दर्शन करें। चालीस दिन की बरसात से पौधों की भाँति कब्रों से उत्पन्न हुए मुर्दा मनुष्य दौड़कर न्यायालय के स्थान पर पहुँच चुके हैं। प्रत्येक को उसके भाग्य का पर्चा मिलता है। इसीलिए सूरते बनी इसराईल में आया है—

व कुल्ला इन्सानिन अलज़मनाहू ताइरतुन फ़ीउनकिही व युख़रजोलहु योमल कयामते किताबन यलकाहो मन्शूरन।

—(सूरते बनी इसराईल आयत 13)

और प्रत्येक व्यक्ति के लिए लगा दिया है हमने कर्म लेख उसका बीच उसकी गर्दन के और निकालेंगे हम उसके लिए कयामत के दिन एक पुस्तक (के रूप में) देखेगा उसको खुला हुआ।

इस पर तफ़सीरे जलालैन में लिखा है—

मुजाहिद ने कहा कि कोई बच्चा ऐसा नहीं जिसकी गर्दन में उसके एक कागज होता है उसमें यह लिखा होता है कि यह सौभाग्यशाली है या दुर्भाग्यशाली (अभागा)।

तफ़सीरे हुसैनी में इस वाक्य की भूमिका में लिखा है—

दर ज़ादुलमसीर अज़ मुज़ाहिद नकल मे कुनद।

जादुलमसीर में मुजाहिद से यह उद्धृत हुआ है।

इस कथन के बाद लिखा है—

यानी आँचे तकदीर करदा अन्द अज़ रोज़े अज़ल अज़ किरदारे ओ, लाज़िम साख्ता अन्द दर गर्दने ओ यानो ओ रा चारा नेस्त अज़ां।

अर्थात् जो भाग्य आरम्भ के दिन से उसके लिए कर्मों के लिए निश्चित कर दिए वह उसकी गर्दन में लटका दिया, अर्थात् उससे वह बच नहीं सकता।

दर ऐनुलमआनी गुफ़्ता कि तायर1 आं किताब अस्त कि रोज़े कयामत परां-परां बदस्ते बन्दा आयद।

1 [1. तायर शब्द का अर्थ पक्षी है। यह पक्षी रूपी पुस्तक कैसी होगी इसकी कल्पना करना अति कठिन है। न जाने इसके पृष्ठ कितने होंगे? —‘जिज्ञासु’]

तायर रूपी पुस्तक—ऐनुलमआनी में कहा है कि तायर  वह किताब है जो कयामत के दिन उड़ती-उड़ती बन्दे के हाथ आएगी।

प्रत्येक व्यक्ति के कर्म प्रारम्भ से ही नियत हैं। अटल भाग्य ने कर्मों का लेख बना दिया। इसमें हेर-फेर तो हो नहीं सकता। इसके अनुसार ही प्रत्येक व्यक्ति ने कार्य किया होगा। अब वह कर्मों का लेखा उसके हाथ में दे दिया जाता है।

व वज़अलकिताबा।

—(सूरते ज़मर आयत 67)

और रखे जाएँगे कर्म के हिसाब।

इस कर्म लेख के हिसाब में भी बहिश्त व जन्नत में जाने वालों में परस्पर अन्तर होगा। अतः सूरते हाका में कहा है—

कअम्मा मनओ किताबहु वियमोनिही फ़यकूली अकरऊ किताबहु व अम्मामन ऊती किताबहु बिशमालिही फ़यकूलो यालैतनी लमऊते किताबिहा।

—(सूरते हाका आयत 19 व 25)

तब जिसके दाएँ हाथ में उसका कर्मों का लेखा दिया जाएगा वह कहेगा लीजिए पढ़ो मेरा कर्म-लेख………..और जिसको कर्मों का लेखा बाएँ हाथ में दिया जाएगा वह कहेगा ऐ काश! न मिलता मेरा कर्मों का लेखा।

इस देने के ढंग से ही निर्णय का पता तो लग ही गया। अब आगे और कार्यवाही से क्या लाभ? दोज़ख़ वाले दोज़ख़ के लिए बहिश्त वाले बहिश्त के लिए तैयार हो गए। परन्तु कानून व्यवस्था फिर व्यवस्था है। इसे अल्लामियाँ भी निरस्त नहीं करते।

इधर तो इन भाग्य लेखों को नित्य कहा है। अब कहते हैं—

वल्लाहो यकतुबो मायुबेतून।

—(सूरते निसा आयत 81)

और अल्लाह लिखता है जो यह ठहराते हैं।

तफ़सीरे हुसैनी में इस पर लिखा है—

ख़ुदा मे नवीसद दरलोहे महफ़ूज़ या किरामुल कातिबीन ब अमरे ख़ुदा मे नवीसन्द।

ख़ुदा लोहे महफ़ूज़ में लिखता है या लिखने वालों में सम्मानीय ख़ुदा की आज्ञा से लिखते हैं।

नित्य लेख की पुष्टि की जाती है? या नया लेख लिखा जाता है? सम्भवतः पैंसिल के लेख पर स्याही या कोई रंग चढ़ाया जाता हो। इस प्रकार के स्मरण लेख रखने की उन्हें आवश्यकता होती है जिन्हें भूल जाने का भय हो, संसार का ज्ञान रखने वाले अल्लामियाँ को इतना दफ्तर रखने की क्या आवश्यकता पड़ी है? व्यर्थ की लेखकों में श्रेष्ठों की मेहनत। इतनी मात्रा में लेखन सामग्री का अपव्यय क्यों किया जाता है?

फिर यह भी तो आवश्यक नहीं कि स्मृतियाँ कर्मों का सही रोज़नामचा हों। क्योंकि एक और जगह फ़रमाया है—

व यमहू अल्लाहो मायशाओ।

—(सूरते रअद आयत 39)

और मिटा देता है अल्लाह जो चाहता है।

तफ़सीरे हुसैनी में इस आयत पर लिखा है—

आंचे अज़ बन्दा सादिर शुवद अज़ अकवालो अफ़आल हमा रा वनवीसन्द आं दफ्तर रा बमवमाकिफ़ अरज़ रसानन्द, हक्के सुबहानहू कोलो फ़ेले कि सवाबो व ख़ताए बदां मुतफ़र्रअनेस्त महव कुनद व बाकी रा मसबत बिगुज़ारद या सैय्याते ताइब रा महव कुनद।

जो कुछ बन्दे से काम होता है उसका लेखा वाणियों व कर्मों की दशा में वह सब लिखते हैं और उस रजिस्टर को पेश करते हैं। ख़ुदा-वन्द उस वाणी व कर्म को कि कोई पुरस्कार या दण्ड उससे कल्पनीय नहीं मिटा देते हैं व शेष को लिखा रहने देते हैं या तौबा करने वाले की बुराइयों को मिटा देते हैं।

जब यह शासकीय अधिकार भी काम में आते रहते हैं तो लिखना व्यर्थ है, परन्तु हाँ, कचहरी की परम्परा का पालन होना चाहिए। अल्लामियाँ ने स्वयं या फ़रिश्तों ने लिखा और अल्लामियाँ ने संशोधन करके पुष्टि कर दी, परन्तु कचहरियों में तो साक्षी भी होते हैं। अल्लाहमियाँ की कचहरी बिना साक्षियों के कैसे रहे? फ़रमाया है—

योमा नदऊ कुल्ला अनासिन बिइमामिहिम।

—(बनी इसराईल आयत 71)

जिस दिन बुलाएंगे सब मनुष्यों को उनके इमाम पेशवा मार्गदर्शकों के सहित।

बजाआ बिन्नबीयिन्ना व श्शुहदाए कज़ाबैनहुम बिलहक्के।

—(सूरते ज़ुमर आयत 69)

और लाए जाएँगे पैग़म्बर और साक्षी और निर्णय किया जाएगा उनमें न्याय से।

तफ़सीरे हुसैनी में लिखा है कि साक्षियों से तात्पर्य—

मुराद उम्मते मुहम्मद अस्त।

तात्पर्य हज़रत मुहम्मद की उम्मत से है।

परन्तु नहीं, साक्षी कुछ और भी है—

व योमा तशहदो अलैहिम अलसनतहुम व ऐदिहिम व औजलहुम बिमा कानूयअमलून।

—(सूरते नूर आयत 24)

जिस दिन साक्षी देंगी उन पर उनकी वाणियाँ और उनके हाथ और उनके पाँव। जिनसे वह काम करते थे।

व तशहदो अरजलहुम बिमा कानूयकसिबून।

—(सूरते यासीन आयत 65)

और गवाही देंगे पाँव उनके जो कुछ वह कमाते थे।

हत्ताइज़ामाजाऊहा शहिदा अलैहिम समउहुम व अवसारिूहुम व जलूदुहुम बिमाकानूयअमलून। वा कालूलजुलूदहुम लिमा शाहिदा तुम अलैना कालू अन्तकनल्लाहुल्लज़ी अन्तका कुल्लाशैअन।

—(सूरते हम सजदा आयत 20-21)

यहाँ तक कि जब जाएँगे पास उसके, साक्षी देंगे उन पर कान उनके और आँखें उनकी और चमड़े उनके, जो कुछ करते थे और वह कहेंगे अपने चमड़ों से क्यों साक्षी दी तुमने हमारे ऊपर। वह कहेंगे बुलवाया हमको अल्लाह ने जिसने बुलवाया प्रत्येक वस्तु को।

एक एक अंग बोलेगा!—यह अन्तिम साक्षियाँ खूब रहीं, शरीरों के यह अंग कबर की मिट्टी में मिट्टी हो चुके। रहा केवल रीढ़ की हड्डी का निचला भाग। इस पर वर्षा पड़ने से शरीर उगेगा। कयामत की कचहरी में पहुँचे तो इन अंगों को वाणी भी मिल गई, क्या यह वही अंग नहीं जो संसार में थे? परन्तु अब तो मिट्टी नहीं रही। बनाएँगे किससे? यदि यह सारी वाक्य रचना केवल अलंकारिक है तो वह तो नित्य प्रति हो ही रहा है।

अपराधी की आँखें अपराध की स्वीकृति तो देती हैं? कयामत में विशेष क्या होना है? चमड़ा कहता है। मुझे बुलवाता है अल्लाह मियाँ। क्या वही बात बुलवाता है जो चाहता है या बोलने की स्वतन्त्रता है? स्वतन्त्रता न रही तो साक्षी विश्वसनीय न रही। अल्लाहमियाँ की इच्छा हो तो क्या स्वयं कर्त्ता अपने अपराध को स्वीकार करने को तैयार नहीं? वह विचारा तो बाएँ हाथ में कर्मों का लेखा मिलते ही काँप गया था। फिर और साक्षी की आवश्यकता क्या पड़ी थी? क्या केवल औपचारिकता पूरा करनी थी? यह तो केवल कम ज्ञान वालों के लिए होता है।

सर्वज्ञ का अपना ज्ञान पर्याप्त है फिर यहाँ तो प्रत्येक के कार्यों का लेखा स्वयं बना दिया है प्रारम्भ से ही जिससे बाल बराबर भी इधर-उधर नहीं हो सकता। इसके बाद ख़ुदा के अपने हिसाब रखने वाले निश्चित हैं। वे इस बात के उत्तरदायी हैं कि जो कुछ भी नित्य सत्ता का लेख है वह पूरी तरह कार्यान्वित हुआ है। सम्भव है कि वह दूसरा रजिस्टर तैयार करते हों जिसकी लोहे महफ़ूज़ से मिलान की जाती हो फिर अल्लामियाँ अपने पवित्र हाथों से उसमें घट बढ़ करते हैं।

नबियों व उनके समुदाय की साक्षी अलग है। फिर प्रत्येक कर्त्ता को वाणी प्रदान की जाती है और वह कर्त्ता की इच्छा के विरुद्ध पर्चा फड़वा देते हैं। साक्षी के विषय का स्वयं निर्णय देते हैं या कोई और? इसमें सन्देह है।

कचहरी की कार्यवाही पूरी है। हाँ! कमी है तो केवल वकील की व युक्ति की, भला सर्वज्ञ न्यायकारी को इसकी क्या आवश्यकता है? मगर फिर दूसरे प्रावधानों की क्या आवश्यकता? और यदि यह आवश्यकता का प्रश्न एक बार चल पड़े तो फिर प्रारम्भ में ही अभाव से भाव में लाने की क्या आवश्यकता? पाप कराने की भी अच्छे भले अल्लामियाँ को क्या आवश्यकता? प्रारम्भ से अन्त काल तक अल्लामियाँ की इच्छा के चमत्कार हैं। यदि अब इन साक्षियों के पश्चात् कर्त्ता को बोलने की आज्ञा हो तो वह कहे— मुझसे अल्लाह ताला ने कराया है जो सबसे कराता है—

वही कातिल वही मुख़बिर वही मुन्सिफ़ भी।

अकरिबा मेरे करें ख़ून का दावा किस पर॥1

[1. अर्थात् हत्यारा भी वही है, सूचना देने वाला भी वही है और इस अपराध के निर्णय के लिए न्यायाधीश भी उसीको बनाया जाता है। मेरे सगे-सम्बन्धी मेरी हत्या का केस किस पर करें? उर्दू के इस प्रसिद्ध पद्य का अर्थ देना हमने आवश्यक जाना।     —‘जिज्ञासु’]

अंगों ने साक्षी देने को दे दी, अब उन पर भी ‘फ़तवा’ ख़ुदाई आदेश लागू होता है। फ़रमाया है—

कल्लइल्लन लम यन्तही लनसफ़अन, नासियतुन काज़िबतिन ख़ातियतिन।

—(सूरते अलक आयत 15-16)

निश्चय ही हम उसको पेशानी के साथ घसीटेंगे वह पेशानी जो अपराधी व झूठी है।

दण्ड की विचित्र प्रक्रिया!—ऊपर मनुष्य को उसके अंगों से पृथक् कर दिया था। अनुमान हुआ था कि आर्य दर्शन की भाँति कुरान शरीफ़ भी मानव को चेतन कर्त्ता और उसके अंगों को अचेतन साधन निर्धारित करता है, परन्तु पेशानी (सिर का अग्र भाग) को दण्ड दिये जाने से अनुमान होता है कि सम्भव है नास्तिकों के सिद्धान्त के अनुसार यहाँ भी मस्तिष्क को कर्त्ता मानते हों।

क्योंकि आत्मा का स्वरूप कुरान शरीफ़ में वर्णन नहीं किया गया। यदि पेशानी भी शरीर के दूसरे अंगों की भाँति आत्मा से पृथक् है तो इस विचारी को दण्ड के लिए क्यों चुना गया? क्या दण्ड देते समय दूसरे अंगों को जो सरकारी साक्षी बने थे बरी कर दिया जाएगा? सांसारिक न्यायालयों में यह परम्परा है ख़ुदाई न्यायालय में भी सम्भव है ऐसा ही हो।

इस दशा में नरक की पीड़ा उठाने वाले मनुष्य का रूप व दशा क्या होगी? वाणी छूट गई, कान नहीं, आँखें निरस्त, चमड़ा अलग हो गया। पाँव भी गये। पेशानी भी बिना चमड़े की होगी जो घसीटी जायेगी। यदि कुछ अंगों को इसलिए छुट्टी मिल जाए कि उन्होंने सत्य साक्षी दी है और कुछ इसलिए कि उनका दुरुपयोग हुआ है तो दण्ड की पात्र केवल आत्मा ही रह जाए जो दर्शन के अनुसार उचित है, अचेतन के दण्ड के क्या अर्थ?

No comments:

Post a Comment

ধন্যবাদ

বৈশিষ্ট্যযুক্ত পোস্ট

যজুর্বেদ অধ্যায় ১২

  ॥ ও৩ম্ ॥ অথ দ্বাদশাऽধ্যায়ারম্ভঃ ও৩ম্ বিশ্বা॑নি দেব সবিতর্দুরি॒তানি॒ পরা॑ সুব । য়দ্ভ॒দ্রং তন্ন॒ऽআ সু॑ব ॥ য়জুঃ৩০.৩ ॥ তত্রাদৌ বিদ্বদ্গুণানাহ ...

Post Top Ad

ধন্যবাদ