क्या ऋषि दयानंद मूर्ति विरोधी थे ? - ধর্ম্মতত্ত্ব

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22 June, 2023

क्या ऋषि दयानंद मूर्ति विरोधी थे ?

क्या ऋषि दयानंद मूर्ति विरोधी थे ?

 

आज लोगों में ऐसी भ्रान्ति हो गई है कि ऋषि दयानन्द मूर्ति भंजक थे, वे मूर्तियों को तोड़ने में विश्वास रखते थे आदि। समाज में इस प्रकार के अनेक मिथ्या बातें ऋषि दयानंद को बदनाम करने के लिए प्रचारित की जाती हैं। अतः हमें इन भ्रांतियों का निवारण व सत्य का प्रकाश करना आवश्यक जान पड़ा।

ऋषि दयानन्द ने मूर्तिपूजा का खंडन किया था क्योंकि लोग मूर्तियों को ईश्वर मान कर उनसे चेतनवत व्यवहार करते हैं, प्राण प्रतिष्ठा इत्यादि अनेक तर्क प्रमाण विरुद्ध कार्य करते हैं, मूर्तियों के नाम पर भोले भाले लोगों से धन लेते हैं। लेकिन ऋषि ने कहीं भी ऐसा नहीं कहा कि मूर्ति बनाना गलत है या मूर्तियों को रखना पाप है।

जो लोग कहते हैं कि ऋषि दयानन्द मूर्ति भंजक थे, उनके लिए हम देवेन्द्र नाथ मुखोपाध्याय जी कृत महर्षि दयानन्द का जीवन चरित से प्रमाण देते हैं -

देवेन्द्र नाथ मुखोपाध्याय कृत महर्षि दयानन्द सरस्वती का जीवन चरित भाग 2 Pg. 579 (संवत् 1990 में आर्य साहित्य प्रचार मंडल लिमिटेड अजमेर से प्रकाशित)


यहां आप देख सकते हैं कि जब मूर्ति को हटाने के लिए ऋषि से कहा गया तो ऋषि स्पष्ट कहते हैं कि मेरा उद्देश्य लोगों के मन मंदिर से मूर्तियों को निकालना है अर्थात् जो मूर्तियों को चेतन ईश्वर मानते हैं उन्हें सत्य से अवगत करवाना है, पत्थरों आदि से निर्मित मूर्तियों को तोड़ना नहीं।

एक व्यक्ति मंदिर बना कर उसमें गंगा की मूर्ति स्थापित कर देता है उसपर ऋषि कहते हैं -

क्या ऋषि दयानंद मूर्ति विरोधी थे ?
पंडित लेखराम जी कृत जीवन चरित महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती
विक्रम संवत् २०४६ में आर्ष साहित्य प्रचार ट्रष्ट से प्रकाशित
Pg. २३२
यहां ऋषि ने स्पष्ट कहा है कि मूर्ति उसकी रखते हैं जिसका अभाव हो। यानि श्री राम आदि योगी महापुरुषों के संस्मरण हेतु मूर्ति रख सकते हैं ऋषि ने उसका मना नहीं किया प्रत्युत् उस मूर्ति को परमात्मा मान कर पूजने वालों का खंडन किया है।

अब हम पत्र व्यवहार से प्रमाण देते हैं-
क्या ऋषि दयानंद मूर्ति विरोधी थे ?

ऋषि दयानंद सरस्वती का पत्र व्यवहार और विज्ञापन भाग २
चतुर्थ संस्करण (सं० २०५०, आश्विन, पूर्णिमा अक्टूबर सन् १९९३)
पूर्ण संख्या - ५७९
Pg. ६४१
(अष्टाध्यायी ५.३.९९ पर महर्षि दयानंद जी की संशोधित टिप्पणी)
यहां ऋषि ने पूर्णतः साफ लिखा है कि मूर्ति को पूजना गलत है किंतु उन्हें रख कर वह मूर्ति जिस महापुरुष की है उस महापुरुष के गुणों को अपने में धारण करने का यत्न करें तो कुछ बुरा नहीं है बल्कि उत्तम है।


संदर्भित एवं सहायक ग्रंथ
  • महर्षि दयानन्द का जीवन चरित (देवेन्द्र नाथ जी मुखोपाध्याय)
  • जीवन चरित महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (पं० लेखराम जी)
  • ऋषि दयानंद सरस्वती का पत्र व्यवहार और विज्ञापन (पण्डित भगवतदत्त जी द्वारा संपादित)

लेखक - यशपाल आर्य


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