आज लोगों में ऐसी भ्रान्ति हो गई है कि ऋषि दयानन्द मूर्ति भंजक थे, वे मूर्तियों को तोड़ने में विश्वास रखते थे आदि। समाज में इस प्रकार के अनेक मिथ्या बातें ऋषि दयानंद को बदनाम करने के लिए प्रचारित की जाती हैं। अतः हमें इन भ्रांतियों का निवारण व सत्य का प्रकाश करना आवश्यक जान पड़ा।
ऋषि दयानन्द ने मूर्तिपूजा का खंडन किया था क्योंकि लोग मूर्तियों को ईश्वर मान कर उनसे चेतनवत व्यवहार करते हैं, प्राण प्रतिष्ठा इत्यादि अनेक तर्क प्रमाण विरुद्ध कार्य करते हैं, मूर्तियों के नाम पर भोले भाले लोगों से धन लेते हैं। लेकिन ऋषि ने कहीं भी ऐसा नहीं कहा कि मूर्ति बनाना गलत है या मूर्तियों को रखना पाप है।
जो लोग कहते हैं कि ऋषि दयानन्द मूर्ति भंजक थे, उनके लिए हम देवेन्द्र नाथ मुखोपाध्याय जी कृत महर्षि दयानन्द का जीवन चरित से प्रमाण देते हैं -
देवेन्द्र नाथ मुखोपाध्याय कृत महर्षि दयानन्द सरस्वती का जीवन चरित भाग 2 Pg. 579 (संवत् 1990 में आर्य साहित्य प्रचार मंडल लिमिटेड अजमेर से प्रकाशित)
एक व्यक्ति मंदिर बना कर उसमें गंगा की मूर्ति स्थापित कर देता है उसपर ऋषि कहते हैं -
- महर्षि दयानन्द का जीवन चरित (देवेन्द्र नाथ जी मुखोपाध्याय)
- जीवन चरित महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (पं० लेखराम जी)
- ऋषि दयानंद सरस्वती का पत्र व्यवहार और विज्ञापन (पण्डित भगवतदत्त जी द्वारा संपादित)
लेखक - यशपाल आर्य
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