অথর্ববেদ ৪/৫/১ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

সাম্প্রতিক প্রবন্ধ

Post Top Ad

স্বাগতম

24 July, 2023

অথর্ববেদ ৪/৫/১

 सूक्त - ब्रह्मादेवता - वृषभः, स्वापनम्छन्दः - अनुष्टुप्सूक्तम् - स्वापन सूक्त

स॒हस्र॑शृङ्गो वृष॒भो यः स॑मु॒द्रादु॒दाच॑रत्। तेना॑ सह॒स्ये॑ना व॒यं नि जना॑न्त्स्वापयामसि ॥সহস্রশৃঙ্গো বৃষভো য়ঃ সমুদ্রাদুদাচরৎ। 

                                তেনা সহস্যেনা বয়ং নি জনান্তস্বাপয়ামসি।।১।।

অনুবাদঃ (সহস্রশৃঙ্গঃ) সহস্র রশ্মিযুক্ত (বৃষভঃ) বর্ষণকারী (যঃ) যে সূর্য (সমুদ্রাৎ) অন্তরিক্ষ হতে (উদাচরৎ) উদিত হয়, (তেন) সেই (সহস্যেন) সূর্যের দ্বারা (বয়ম) আমরা (জনান) গৃহজনদেরকে (নিস্বাপয়ামসি) গৃহ মধ্যে সর্বত্র শুইয়ে দেই।।১।। ভাষ্যকারঃ পন্ডিত বিশ্বনাথ বিদ্যালংকার
২.অথর্ববেদ (৪/৫/১) -- (সহস্রশংগঃ) সহস্র রশ্মিযুক্ত (বৃষভঃ) বৃষ্টিজলের বর্ষাকারী (যঃ) যে সূর্য (সমুদ্রাৎ) উদয়াচলের সমীপস্থ অন্তরিক্ষ প্রদেশ হতে (উদাচরৎ) উদিত হয় (তেন) সেই (সহস্যেন) শত্রুদের অভিভূতকারক শক্তিকে প্রাপ্ত করতে উত্তম সূর্যের সাথে (বয়ম) আমরা (জনান্) লোকজনদেরকে (নিস্বাপয়ামসি) শুইয়ে দেই।।১।। ভাষ্যকারঃ পন্ডিত হরিশরণ সিদ্ধান্তালংকার

আর্য ভাষ্যকারগণ "সমুদ্র" শব্দের অর্থ অন্তরিক্ষ করেছে এবং "সহস্রশৃঙ্গঃ বৃষভঃ" শব্দের অর্থ করেছেন সহস্র কিরণযুক্ত বর্ষণকারী সূর্য।।

নিঘন্টু (১/৩)- এ বলা হয়েছে সমুদ্র এটি অন্তরিক্ষের একটি নাম - "সমুদ্র ইতি অন্তরিক্ষনামানি"।।
বৃষভ শব্দের অর্থ শুধুই ষাড় নয় বরং বৈদিক সংস্কৃতে বৃষভ শব্দের অর্থ বর্ষণকারীও হয়। নিরুক্ত (৪/৮)- এ বলা হয়েছে " বৃষভ বর্ষিতাপাম"।।

विषय

सूर्यास्त के साथ सोने की तैयारी

पदार्थ

१. (सहस्त्रशंग:) हज़ारों रश्मियोंवाला (वृषभ:)-वृष्टिजल का वर्षक य:-जो सूर्य समुद्रात् उदयाचल के परिसरवर्ति [समीपस्थ] अन्तरिक्ष प्रदेश से (उदाचरत्) = उदित होता है, (तेन) = उस (सहस्येन) = शत्रुओं को अभिभूत करनेवाले बल को प्राप्त कराने में उत्तम सूर्य के साथ (वयम्) = हम (जनान्) = लोगों को (निस्वापयामसि) = सुलाते हैं, अर्थात् सूर्यास्त होता है-सूर्य सोता-सा है और हम लोगों को भी सुला देता है। २. राजा राष्ट्र में ऐसा प्रयत्न करे कि प्रजा सूर्योदय के साथ जाग उठे और सूर्यास्त के साथ कार्य-विरत हो सोने की तैयारी करे। इस स्वाभाविक जीवन के परिणामस्वरूप लोग न केवल शरीर में अपितु मन में भी स्वस्थ बने रहेंगे।

भावार्थ

राजा राष्ट्र में ऐसी व्यवस्था करे कि सभी प्रजा सर्यास्त होने पर सोने की तैयारी करे। शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह आवश्यक है।


पदार्थ

(यः) जो (वृषभः) सुख बरसानेवाला (सहस्रशृङ्गः) सहस्रों तेज अर्थात् नक्षत्रोंवाला चन्द्रमा [अथवा सहस्रों किरणोंवाला सूर्य] (समुद्रात्) आकाश से (उदाचरत्) उदय हुआ है, (तेन) उस (सहस्येन) बल के लिये हितकारक [चन्द्रमा] से (वयम्) हम लोग (जनान्) सब जनों को (नि स्वापयामसि) सुलादें ॥१॥

भावार्थ

माता पिता आदि बच्चों को चन्द्रमा के दर्शन कराते हुए सुलावें, जिससे उनके शरीर की पुष्टि और नेत्रोंकी ज्योति बढ़े [(सहस्रशृङ्गः) का अर्थ सूर्य भी है, अर्थात् सूर्य का प्रकाश आने से यह घर स्वास्थ्यकारक है। हम सब सोवें] ॥१॥ इस सूक्त के चार मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद म० ७। सू० ५५ के हैं, जिनका इन्द्र देवता है, इससे यहाँ भी सूक्त का इन्द्र ही देवता है। यह मन्त्र उक्त सूक्त का मन्त्र ७ है ॥ पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

टिप्पणी

१−(सहस्रशृङ्गः) सहो बलम्-निघ० २।९। रो मत्वर्थे। सहस्रं बहुनाम-निघ–० ३।१। शृणातेर्ह्रस्वश्च। उ० १।१२६। इति शॄ हिंसायाम्-गन्, स च कित्, नुडागमः। शृङ्गाणि ज्वलतोनामसु-निघ० १।१७। शृङ्गं श्रयतेर्वा शृणातेर्वा शम्नातेर्वा शरणायोद्गतमिति वा शिरसो निर्गतमिति वा निरु० २।७। सहस्राणि बहूनि शृङ्गाणि तेजांसि नक्षत्राणि किरणा वा यस्य स बहुतेजाः। अंसख्यातनक्षत्रः। चन्द्रः। सूर्यः (वृषभः) ऋषिवृषिभ्यां कित् उ० ३।१२३। इति वृषु सेचने-अभच्। यद्वा, वृह वृद्धौ-अभच, हस्य षकारः। वृषभः प्रजां वर्षतीति वातिवृहति रेत इति वा तद् वृषकर्मा वर्षणाद् वृषभः-निरु० ९।२२। किरणद्वारा सुखस्य वर्षकः (यः) (समुद्रात्) अ० १।३।८। अन्तरिक्षात्-निघ० १।३। (उत्+आ+अचरत्) उदागात् (तेन) प्रसिद्धेन तादृशेन (सहस्येन) तस्मै हितम्। पा० ५।१।५। इति सहस्-यत् सहसे बलाय हितेन चन्द्रेण (वयम्) (नि) नित्यम्। सर्वथा (जनान्। गृहस्थप्राणिनः (स्वापयामसि) स्वापयामः। निद्रापयामः ॥- पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

No comments:

Post a Comment

ধন্যবাদ

বৈশিষ্ট্যযুক্ত পোস্ট

যজুর্বেদ অধ্যায় ১২

  ॥ ও৩ম্ ॥ অথ দ্বাদশাऽধ্যায়ারম্ভঃ ও৩ম্ বিশ্বা॑নি দেব সবিতর্দুরি॒তানি॒ পরা॑ সুব । য়দ্ভ॒দ্রং তন্ন॒ऽআ সু॑ব ॥ য়জুঃ৩০.৩ ॥ তত্রাদৌ বিদ্বদ্গুণানাহ ...

Post Top Ad

ধন্যবাদ