শিক্ষক ও শিষ্যের ব্যবহারঃ
য়া ত ইত্যস্য পরমেষ্ঠী বা কুৎস ঋষিঃ । রুদ্রো দেবতা । স্বরাডার্ষ্যনুষ্টুপ্ ছন্দঃ । গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
য়া তে॑ রুদ্র শি॒বা ত॒নূরঘো॒রাऽপা॑পকাশিনী ।
তয়া॑ নস্ত॒ন্বা᳕ শন্ত॑ময়া॒ গিরি॑শন্তা॒ভি চা॑কশীহি ॥ ২ ॥
अन्वयः हे गिरिशन्त रुद्र! या ते तवाघोराऽपापकाशिनी शिवा तनूरस्ति, तया शन्तमया तन्वा नस्त्वमभिचाकशीहि॥२॥
पदार्थः (या) (ते) तव (रुद्र) दुष्टानां भयङ्कर श्रेष्ठानां सुखकर (शिवा) कल्याणकारिणी (तनूः) शरीरं विस्तृतोपदेशनीतिर्वा (अघोरा) अविद्यमानो घोर उपद्रवो यया सा (अपापकाशिनी) अपापान् सत्यधर्मान् काशितुं शीलमस्याः सा (तया) (नः) अस्मान् (तन्वा) विस्तृतया (शन्तमया) अतिशयेन सुखप्रापिकया (गिरिशन्त) यो गिरिणा मेघेन सत्योपदेशेन वा शं सुखं तनोति तत्सम्बुद्धौ। गिरिरिति मेघनामसु पठितम्॥ (निघं॰१।१०) (अभि) सर्वतः (चाकशीहि) भृशं कक्ष्व पुनः पुनः शाधि। अयं कशधातोर्यङ्लुगन्तः प्रयोगः। वा छन्दसि (अष्टा॰३। ४। ८८) इति पित्त्वादीट्॥२॥
भावार्थः शिक्षकाः शिष्येभ्यः धर्म्यां नीतिं शिक्षित्वा निष्पापान् कल्याणाचरणान् सम्पादयन्तु॥२॥
पदार्थ
हे (गिरिशन्त) मेघ वा सत्य उपदेश से सुख पहुँचाने वाले (रुद्र) दुष्टों को भय और श्रेष्ठों के लिये सुखकारी शिक्षक विद्वन्! (या) जो (ते) आप की (अघोरा) घोर उपद्रव से रहित (अपापकाशिनी) सत्य धर्मों को प्रकाशित करने हारी (शिवा) कल्याणकारिणी (तनूः) देह वा विस्तृत उपदेश रूप नीति है (तया) उस (शन्तमया) अत्यन्त सुख प्राप्त कराने वाली (तन्वा) देह वा विस्तृत उपदेश की नीति से (नः) हम लोगों को आप (अभि, चाकशीहि) सब ओर से शीघ्र शिक्षा कीजिये॥२॥
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