ভদ্রো ভদ্রয়া সচমান আগাত্স্বসারম্ জারো অভ্যেতি পশ্চাত্।।
पदार्थ
(भद्रया-सचमानः-भद्रः-अग्निः-स्वसारम्-आगात्) भास-श्वेत प्रकाश से गति करनेवाली उषा से सम्पृक्त हुआ और भास-शुभ्र प्रकाश-ज्योति को फैलाता हुआ सूर्याग्नि सुगमतया हटा देने योग्य रात्रि को प्राप्त होता है, उसके पिछले भाग में (जारः पश्चात्-अभ्येति) रात्रि का जरण-क्षय करनेवाला सूर्य उषा को आगे करके पीछे आता है (सुप्रकेतैः-द्युभिः-वितिष्ठन्) सुप्रसिद्ध दिनों के साथ विशेषरूप से प्रभुत्व प्राप्त करता हुआ (उशद्भिः-वर्णैः-रामम् अभि-अस्थात्) शुभ्र वर्णों से-प्रकाशमय रूपों से अन्धकार को दबा लेता है ॥॥ऋग्वेद भाष्य (स्वामी ब्रह्ममुनि परिव्राजक)॥
भावार्थ
सूर्य प्रकाशरूप शक्ति से सङ्गत है। वह जब आगे-आगे भागनेवाली रात्रि को प्राप्त होता है, तो क्षीण-जीर्ण होनेवाली वह उस-उस स्थान से क्षीण होती चली जाती है। जब उषा-प्रकाश शक्ति के पीछे प्रकाशमान सूर्य ऊपर चढ़ता जाता है, उसके ऊपर चढ़ने से पृथिवी आदि लोकों के पृष्ठ पर सुपात्र होकर दिन होते हैं। प्रकाशमय रंगों से अन्धकार में सूर्य घुस बैठता है। ऐसे ही विद्यासूर्य विद्वान् अपनी ज्ञानज्योति से युक्त-ज्ञान-ज्योतिष्मान् बना हुआ अविद्या भ्रान्ति को हटाता है। ज्ञान प्रकाशों से अज्ञानान्धकारवाले स्थानों में घुसकर उसे भगा देता है ॥ऋग्वेद भाष्य (स्वामी ब्रह्ममुनि परिव्राजक)॥
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