ऋषिः - अरुणो वैतहव्यः देवता - अग्निः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः
यस्मि॒न्नश्वा॑स ऋष॒भास॑ उ॒क्षणो॑ व॒शा मे॒षा अ॑वसृ॒ष्टास॒ आहु॑ताः ।
की॒ला॒ल॒पे सोम॑पृष्ठाय वे॒धसे॑ हृ॒दा म॒तिं ज॑नये॒ चारु॑म॒ग्नये॑ ॥
যস্মিন্নশ্বাস ঋষভাস উক্ষণো বশা মেষা অবসৃষ্টাস আহুতাঃ।
কীলালপে সোমপৃষ্ঠাঃ বেধসে হৃদা মতিং জনয়ে চারুমগ্ময়ে "।।
शब्दार्थ
(यस्मिन्) जिस सृष्टि में परमात्मा ने ( अश्वास :) अश्व ( ऋषभास: ) साँड ( उक्षण:) बैल (वशा:) गौएँ (मेषा:) भेड़-बकरी (अवसृष्टासः) उत्पन्न किये और (आहुताः) मनुष्यों को प्रदान कर दिये वही ईश्वर (अग्नये ) अग्नि के लिए (कीलालपे१ ) वायु के लिए (वेधसे) आदित्य के लिए (सोमपृष्ठाय२) अङ्गिरा के लिए (हृदा) उनके हृदय द्वारा ( चारुम् ) सुन्दर (मतिम्) वेदज्ञान (जनये ) प्रकट करता है । १. कीलालं जलं पिबतीति कीलालपः । जल को पीने वाला कीलालप वायु है। २. सोमपृष्ठ: = चन्द्रमा । गोपथ पू० ५।२५ के अनुसार अथर्ववेद का देवता चन्द्रमा विद्युत् है । अत: चन्द्रमा ही अङ्गिरस है ।
भावार्थ
सृष्टि के आदि में परमात्मा ने घोड़े, बैल, साँड, गौऍं और भेड़-बकरी आदि नाना पशुओं को उत्पन्न किया और इन सबको मनुष्य के उपयोग के लिए - गौ आदि का दूध पीने के लिए, घोड़े पर सवारी करने के लिए, बैल से भूमि जोतने और भार उठाने के लिए, मनुष्य को प्रदान कर दिया । ईश्वर ने मनुष्य के ज्ञान के लिए आदि सृष्टि से ही चार ऋषियों द्वारा वेदज्ञान भी मनुष्यों को दिया - अग्नि के द्वारा ऋग्वेद का ज्ञान दिया । वायु द्वारा यजुर्वेद का ज्ञान दिया । आदित्य के द्वारा सामवेद को प्रकट किया । अङ्गिरा के द्वारा अथर्ववेद को प्रकट किया । বেদ সৌরভঃ স্বামী জগদীশ্বরানন্দ
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