ঋগ্বেদ ৪/৪৭/৬ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

সাম্প্রতিক প্রবন্ধ

Post Top Ad

স্বাগতম

05 February, 2024

ঋগ্বেদ ৪/৪৭/৬

ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - सीता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

अ॒र्वाची॑ सुभगे भव॒ सीते॒ वन्दा॑महे त्वा। यथा॑ नः सु॒भगास॑सि॒ यथा॑ नः सु॒फलास॑सि ॥ 

ঋগ্বেদ ৪/৪৭/৬

অর্বাচী সুভগে ভব সীতে বন্দামহে ত্বা।

যথা নঃ সুভগাসসি যথা নঃ সুফলাসসি।।

ভাবার্থঃ এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার রয়েছে। হে মনুষ্য! যেমন ভালো চাষের ক্ষেতের মাটি উৎকৃষ্ট শস্য উৎপন্ন করে, তেমনি ব্রহ্মচর্যের মাধ্যমে জ্ঞান অর্জনকারী ব্যক্তি উৎকৃষ্ট সন্তান উৎপন্ন করেন, আর ভূমির রাজ্য যেমন ঐশ্বর্যকারক, তেমনি পরস্পর প্রসন্ন স্ত্রী ও পুরুষ বড় ঐশ্বর্যযুক্ত হয়ে থাকে॥

হরিশরণ সিদ্ধান্তলঙ্কারকৃত হিন্দি ভাষ্যঃ👇

पदार्थ

[१] हे (सीते) = भूमिकर्षिके [द०] - हल की फाली! तू (अर्वाची भव) = [अर्वाक् अञ्चति] भूमि में पर्याप्त नीचे जानेवाली हो। कुछ गहरी ही भूमि खुदेगी तो उसकी उपजाऊ शक्ति बढ़ेगी, सूर्य की किरणों का अधिक भूभाग तक सम्पर्क होगा, यह सम्पर्क उसे उपजाऊ बनाएगा। हे (सुभगे) = उत्तम ऐश्वर्य की कारणभूत (सीते त्वा वन्दामहे) = तेरा हम स्तवन- गुणवर्णन करते हैं। इस स्तवन से तेरे महत्त्व को समझकर हम तेरा ठीक प्रयोग करते हैं। 

[२] यह हम इसलिए करते हैं कि (यथा) = जिससे तू (नः) = हमारे लिए (सुभगा) = उत्तम ऐश्वर्य को देनेवाली (अससि) = होती है, (यथा) = जिससे (नः) = हमारे लिये (सुफला) = उत्तम फलोंवाली (अससि) = होती है।

भावार्थ- हम सीता [लांगल पद्धति] के महत्त्व को समझकर गहराई तक भूमि को जोतें,जिससे उत्तम कृषि होकर हमारा ऐश्वर्य बढ़े।

মহর্ষি দয়ানন্দকৃত সংস্কৃত ভাষ্যঃ👇

अन्वयः

हे सुभगे ! यथाऽर्वाची सीते सीतास्ति तथा त्वं भव यथा भूमिः सुभगास्ति तथा त्वं नोऽससि यथा भूमिः सुफलास्ति तथा त्वं नोऽससि, अतो वयं त्वा वन्दामहे ॥

पदार्थः

(अर्वाची) याऽर्वागधोऽञ्चति (सुभगे) सुष्ठ्वैश्वर्य्यवर्द्धिके (भव) (सीते) हलादिकर्षणावयवायोनिर्मिता (वन्दामहे) कामयामहे (त्वा) त्वाम् (यथा) (नः) अस्माकम् (सुभगा) सौभाग्ययुक्ता (अससि) असि। अत्र बहुलं छन्दसीति शपो लुगभावः। (यथा) (नः) अस्माकम् (सुफला) शोभनानि फलानि यस्यां सा (अससि) ॥

भावार्थः

अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्या ! यथा सुष्ठु सम्पादिता क्षेत्रभूमिरुत्तमानि शस्यानि जनयति तथैव ब्रह्मचर्य्येण प्राप्तविद्यः सुसन्तानान् सूते यथा भूमिराज्यमैश्वर्य्यकरं वर्त्तते तथा परस्परं प्रीतौ स्त्रीपुरुषौ महैश्वर्य्यौ भवतः ॥

No comments:

Post a Comment

ধন্যবাদ

বৈশিষ্ট্যযুক্ত পোস্ট

ব্রহ্মচর্যের সাধনা ভোজন

  নবম ভাগ ভোজন ভূমিকা - "ধর্মার্থকামমোক্ষাণামারোগ্যম্ মূলমুত্তমম্" . ধর্ম-অর্থ-কাম আর মোক্ষ এই পুরুষার্থচতুষ্টয় হল মানব জীবনের উ...

Post Top Ad

ধন্যবাদ