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29 February, 2024

मांसाहार के पक्ष में बोले जाने वाले झूंठ

मांसाहार के पक्ष में बोले जाने वाले झूंठ

मांसाहार के पक्ष में बहुत सारा झूठ बोला जाता है। मांसाहारी तो इन झूंठों के बारे में ध्यान देने की अपेक्षा इनको सच मान कर मांसाहार को उचित मानते हैं। शाकारियों के दो भाग हैं। शाकाहारियों के एक भाग में उदासीन संख्या है और दूसरे भाग में वे लोग हैं, जो मांसाहार को ठीक तो नहीं मानते, पर मांसाहार गलत क्यों हैं, यह न जानने के कारण मांसाहार के झूठों के सामने चुप रह जाते हैं। मांसाहार के पक्ष में मुख्य रूप से बोले जाने वाली झूठ हैं -

1. मांसाहार नहीं करेंगे, तो पशुओं की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जायेगी।
2. सभी शाकाहारी हो जायें, तो सबको भोजन नहीं मिल सकता।
3. जहाँ शाकाहार उपलब्ध नहीं है, वहाँ मांसाहार करना पड़ता है।
4. कुछ स्थानों पर मांसाहार सस्ता पड़ता है।
5. मनुष्य को पशु के प्रोटीन (animal protein) की आवश्यकता होती है।

इन झूंठों में पशु प्रोटीन वाली झूंठ को डाॅक्टर और स्र्पोट्स के प्रशिक्षक अधिक बोलते हैं, तो दूसरे लोग इसको वैज्ञानिक तथ्य मान लेते हैं। प्रस्तुत नोट में पशु-प्रोटीन वाले झूंठ के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। इसको समझने के लिए चार बातों पर विचार करना अनिवार्य है।

पहली बात यह है कि किसी भी शरीर का भोजन उसकी बनावट के अनुसार होता है। मनुष्य शरीर की रचना शाकाहारियों के शरीर रचना जैसी है, तो मनुष्य शरीर को मांसाहार की आवश्यकता नहीं होती।

दूसरी बात यह है कि मनुष्य का शरीर शाकाहारियों के शरीर के समान बनावट वाला है। दूसरे शाकाहारी शरीर जैसे गाय, घोड़ा, हाथी, ऊँट, बैल आदि, तो क्या उन्हें पशु-प्रोटीन की आवश्यकता नहीं होती? यदि होती है, तो पशु-प्रोटीन कहाँ से लेते हैं? और नहीं लेते, तो क्या उनके शरीर में कोई न्यूनता देखने को मिलती है?

तीसरी बात यह है कि जो व्यक्ति शुद्ध शाकाहारी है और पूरी आयु स्वस्थ रहते हैं। उनके शरीर की पशु-प्रोटीन की आवश्यकता कहाँ से पूरी हुई और आवश्यकता पूरी नहीं हुई, तो वे स्वस्थ कैसे रहे?

चैथी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मांस की पशु-प्रोटीन हमारे शरीर में ज्यों की त्यों शरीर का भाग नहीं बनती। मांस के प्रोटीन के अणु बहुत बड़े होते हैं। हमारा पाचन संस्थान पहले मांस के प्रोटीन के अणुओं को छोटे अणुओं में विभाजित करता है और फिर उन छोटे अणुओं का संश्लेषण करके शरीर के लिए उपयोगी प्रोटीन बनाता है। ऐसा नहीं होता कि मांस खाया और शरीर के प्रोटीन की आवश्यकता पूरी हो गई।

एक बात और विचारणीय है कि जिस पशु-प्रोटीन की आवश्यकता की बात की जा रही है, वह पशु के मांस में कहाँ से आया? मांस आमतौर पर शाकाहारी पशुओं का खाया जाता है। शाकाहारी पशु उस प्रोटीन को शाकाहार के सेवन से ही बनाते हैं। मनुष्य शरीर की रचना शत-प्रतिशत शाकाहारियों के शरीर रचना जैसी है, तो जब शाकाहारी पशु अपनी आवश्यकता के अनुसार शाकाहार से प्रोटीन बना लेते हैं, तो मनुष्य शाकाहार से आवश्यक प्रोटीन क्यों नहीं बना सकता? एक तथ्य और ध्यान देने का है। मांस के अणु मुख्य रूप से वसा व प्रोटीन अणु होते हैं और ये अणु लम्बी श्रंखला वाले होते हैं (Long Chained Molecules), जबकि शाकाहार के किसी भी आईटम (दूध, फल, सब्जी, अनाज, दालें) के अणु छोटी चैन (Short Chained) वाले होते हैं। प्रत्येक शरीर में भोजन के पाचन के समय भोज्य पदार्थ के बड़े अणुओं को तोड़ कर छोटे अणुओं में बदला जाता है और फिर इन छोटे अणुओं के मेल से शरीर उपयोगी पदार्थों का निर्माण होता है। इससे स्पष्ट हुआ कि मांस के पाचन के बाद ही मांस शरीर का भाग बनेगा और मांस का पाचन शाकाहार के मुकाबले कठिन होता है, तो शरीर को उपयोगी पदार्थ का निर्माण करना शाकाहार से आसान है और मांस से निर्माण कठिन है। जैसे कि सभी दालों में मांसाहार के किसी भी आईटम (मांस, मछली, अण्डा) से अधिक प्रोटीन होती है, जो सुगमता से पच जाती है, तो मनुष्य शरीर को पशु-प्रोटीन की आवश्यकता होती है, इसलिए मांसाहार करना चाहिये, इस झूंठ का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। डाॅक्टरों को तो पाचन क्रिया के बारे में पता होना चाहिए और मांसाहार के पक्ष में यह बात कहने से बचना चाहिये। स्र्पोट्स के प्रशिक्षकों को भी शरीर की सामान्य जानकारी होनी चाहिए और अपने खिलाड़ियों और स्वयं को मांसाहार जैसी अवैज्ञानिक और हानिकारक आदत से बचना चाहिए।

अन्य किसी नोट में बाकी झूठों का पर्दाफाश किया जायेगा।

✍️ डाॅ. भूपसिंह, रिटायर्ड एसोशिएट प्रोफेसर, भौतिक विज्ञान
भिवानी (हरियाणा)

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