ঋগ্বেদ ১/১৫৪/২ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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স্বাগতম

24 October, 2021

ঋগ্বেদ ১/১৫৪/২

ऋषिः - दीर्घतमा औचथ्यःदेवता - विष्णुःछन्दः - विराट्त्रिष्टुप्स्वरः - धैवतः

प्र तद्विष्णु॑: स्तवते वी॒र्ये॑ण मृ॒गो न भी॒मः कु॑च॒रो गि॑रि॒ष्ठाः। 

यस्यो॒रुषु॑ त्रि॒षु वि॒क्रम॑णेष्वधिक्षि॒यन्ति॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥

প্র তদ্বিষ্ণুঃ স্তবতে বীর্যেণ মৃগো ন ভীমঃ কুচরো গিরিষ্ঠাঃ।

যস্যোরুষু ত্রিষু বিক্রমণেষ্বধিক্ষিয়ন্তি ভুবনানি বিশ্বা॥

 হে মনুষ্যো! (যস্য) যেই জগদীশ্বরের নির্মাণ কৃত (ত্রিষু) জন্ম, নাম এবং স্থান এই তিন (বিক্রমণেষু) বিবিধ প্রকারের সৃষ্টিকর্মে (বিশ্বা) সমস্ত (ভূবনানি) লোক- লোকান্তর (অধিক্ষিয়ন্তি) আধাররূপে নিবাস করে (তত) তিনি (বিষ্ণুঃ) সর্বব্যাপী পরমাত্মা নিজ (বীর্যেন) পরাক্রম দ্বারা (কুচরঃ) কুটিলগামী অর্থাৎ উচু নিচু নানা প্রকার বিষম স্থলে চলনশীল এবং (গিরিষ্ঠাঃ) পর্বতে স্থিত (মৃগঃ) সিংহের (ন) সমান (ভীমঃ) ভয়ংকর সমস্ত লোক লোকান্তরকে (প্রস্তবতে) প্রসংশিত করেন।


ভাবার্থঃ কোনও পদার্থ ঈশ্বর এবং সৃষ্টির নিয়ম কে উলঙ্ঘন করতে পারে না। যিনি ধার্মিক জনকে মিত্রের সমান আনন্দ দানকারী ,দুষ্টকে সিংহের সমান ভয় দানকারী এবং ন্যায়াদি গুণের ধারনকারী পরমাত্মা, তিনিই সবার অধিষ্ঠাতা এবং ন্যায়াধীশ, ইহা জানা উচিৎ। (ভাষ্যঃ মহর্ষি দয়ানন্দ সরস্বতী)


पदार्थ (হরিশরণ সিদ্ধান্তলঙ্কার)

१. (तत् विष्णुः) = वे विष्णु (वीर्येण) = अपने शक्तिशाली कर्मों से (प्र स्तवते) = प्रकर्षेण स्तुति किये जाते हैं। प्रभु की शक्ति का सब कोई स्तवन करता है। वे प्रभु (मृगः) = स्तोताओं के जीवन का शोधन करनेवाले हैं [मृजू शुद्धौ] (भीमः न) = उपासकों के लिए वे भयंकर नहीं हैं। उपासकों को प्रभु से भय नहीं होता। उपासक का जीवन शुद्ध और परिणामतः निर्भय बना रहता है। २. (कुचर:) = [क्वायं न चरति] वे प्रभु कहाँ नहीं हैं, अर्थात् वे सर्वव्यापक हैं, (गिरिष्ठः) = वेदवाणियों में स्थित हैं, ज्ञान की सब वाणियों के वे ही अधिष्ठाता हैं। इन्हीं के द्वारा हमें प्रभु का प्रकाश मिलता है। ३. ये विष्णु वे हैं (यस्य) = जिनके (उरुषु त्रिषु विक्रमणेषु) = तीन विशिष्ट चरणों में उत्पत्ति, स्थिति, संहाररूप कार्यों में अथवा ज्ञान, कर्म, उपासना के उपदेशों में विश्वा भुवनानि = सब लोक अधिक्षियन्ति निवास करते हैं। सब प्राणियों का आधार प्रभु के ये तीन कदम ही हैं। 

भावार्थ

भावार्थ - प्रभु के तीन कदमों में ही सब प्राणियों व लोकों का निवास है।


भावार्थ

( यस्य ) जिस जगदीश्वर के ( त्रिषु उरुषु विक्रमणेषु ) तीनों, महान् विक्रमणों, तीनों प्रकार के जगत्सर्गों में, सत्व, रजस, तमस् इन तीनों से बने सर्गों में या सृष्टि, स्थिति, प्रलय इन तीन क्रियाओं में ( विश्वा भुवना ) समस्त भुवन ( अधि क्षियन्ति ) आश्रय पा रहे हैं । और जो ( वीर्येण ) बल, पराक्रम और शक्ति में (मृगः न) सिंह के समान ( भीमः ) पापकारियों को भय देने हारा ( कुचरः ) सम विषम आदि नाना स्थानों में भी विचरने हारा, सर्वत्र व्यापक ( गिरिष्ठाः ) पर्वतादि में स्थित सिंह के समान ( गिरिष्ठाः ) पर्वत वा मेघ के समान सर्वोच्च देश में विद्यमान, या स्तुतिकर्ता जनों की मन्त्रादि स्तुति, वाणी में स्थित है ( तत् ) वह ( विष्णुः ) व्यापक परमेश्वर ( प्र स्तवते ) अच्छी प्रकार स्तुति करने योग्य है । अथवा, वही सब लोकों को उपदेश देता है। জয়দেব শর্মাকৃত ভাষ্য


মন্ত্রটিতে "মৃগ" শব্দটি উল্লেখযোগ্য। মৃগ এখানে "সিংহ" বা "বাঘ" অভিপ্রেত। মৃগ অর্থে বিভিন্ন বন্যপশুর নাম। এই জন্য সিংহকে মৃগেন্দ্র বলা হয়। মন্ত্রে মূলতো সিংহের উপমা দেওয়া হয়েছে। নিরুক্তকার যাস্ক এ সমন্ধ্যে বলেন - " মৃগো ন ভীমঃ কুচরো গিরিষ্ঠাঃ। মৃগ ইব ভীমঃ কুচরো গিরিষ্ঠা, নিরুঃ ১।২০" এখানে "ন" উপমা অর্থে এইজন্য মৃগ ইব ভীমো কুচরো গরিষ্ঠাঃ করা হয়েছে।

অর্থাৎ মন্ত্রে সিংহের উপমা দিয়ে বলা হয়েছে ঈশ্বর সিংহের সমান দুষ্টকে ভয় প্রদান করেন। এখানে "নৃসিংহের " কোন প্রসঙ্গই আসে নি যে সিংহের অর্ধেক মানুষের মতো। মন্ত্রটিতে "সিংহ" শুধু উপমা মাত্র। যেমন কোন ব্যক্তিকে যদি কোন প্রানীর সাথে উপমা দিয়ে বর্ণনা করা হয় তার মানে সেই ব্যক্তিটি উল্লেখিত সেই প্রাণী হয়ে যায় না। উদাহরনস্বরূপ- মাতা সীতার স্বয়ংম্বরে বিশ্বামিত্র রাম ও লক্ষণকে নিয়ে জনকপুরীতে উপস্থিত হলে রাজা জনক তাদের দেখে একথা বলেন-

গজসিংহগতী বীরৌ মার্ভূল বৃষভৌপমৌ।
যদমপত্রবিশালাক্ষী খঙ্গাতুণীর্ধনুর্ধারী।।
(বাল্মিকী রামায়ণ বাল কাণ্ড ৫০।১৮)

" হে মুনিবর! হস্তি এবং সিংহের সমান চলনশীল, দেবতার সমান পরাক্রমি তথা অশ্বিনী কুমারের মতো সমান সুন্দর এবং যৌবন কে প্রাপ্ত এই দুই কুমার কে?

এস্থলে রাম ও লক্ষণকে হস্তি এবং সিংহের সাথে তুলনা করা হয়েছে। তাহলে কি রাম এবং লক্ষনকে "নরহস্তি" অথবা "নরসিংহ" বলতে হবে?

অথর্ববেদ ৭।২৬।২ এর প্রথমাংশে ঋগবেদের উক্ত মন্ত্রটি এসেছে। মন্ত্রটির ভাবার্থে পণ্ডিত ক্ষেমকরণ দাস ত্রিবেদী ব্যাখ্যা করেছেন -

" যেমন সিংহের পরাক্রম জঙ্গলী পশুর মধ্যে বিদিত হয়, ওইরূপই সর্বব্যাপী, পাপীদের দণ্ডদানকারী পরমাত্মার সামর্থের নিকট এবং দূর সব লোক প্রসিদ্ধ।"

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